सुना आपने, बाल ठाकरे के ज्ञान-चक्षु की नई खोज के विषय में, नहीं तो सुन लीजिए। बाल ठाकरे की ताजा शोध के अनुसार, पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी में सिर्फ एक 'मर्द' है और वह है दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित। अर्थात, कांग्रेस पार्टी में शेष सभी 'नामर्द' हैं। सचमुच अद्वितीय खोज है यह- चाहें तो अद्भुत भी कह लें। अब कांग्रेस की इस पर क्या प्रतिक्रिया है, इसकी जानकारी फिलहाल नहीं मिली है किंतु यह तो तय है कि कांग्रेस अपनी झेंप मिटाने के लिए इसे मंद-बुद्धि खोज बताकर खारिज कर देगी। हाल के दिनों में अपने दड़बे से बाहर निकल राजनीतिक सक्रियता प्रदर्शित करने वाले बाल ठाकरे दुखद रूप से अब तक अर्जित अपनी प्रतिष्ठा, गरिमा, आभा खोते जा रहे हैं। वह भी किसलिए? अपने भतीजे राज ठाकरे की बढ़ती राजनीतिक ताकत को रोकने के लिए! ताकि उनके वारिस उद्धव ठाकरे को चुनौती देने वाला कोई न रहे। दूसरे शब्दों में भतीजे राज ठाकरे इतने ताकतवर न बनें कि पुत्र उद्धव ठाकरे को चुनौती दे सकें। राजनीतिक विरासत का यह नाटक सचमुच दिलचस्प है।
अब उस मुद्दे पर जिसे आधार बनाकर बाल ठाकरे ने यह ताजा टिप्पणी की है। शीला दीक्षित की प्रशंसा करने वाले ठाकरे कहते हैं कि किसी जमाने में कांग्रेस पार्टी में इंदिरा गांधी एकमात्र मर्द थीं। कांग्रेस में इन दिनों शीला दीक्षित एकमात्र मर्द हैं, इसलिए कि शीला दीक्षित ने दिल्ली में पर-प्रांतीयों की बढ़ती भीड़ के खिलाफ कठोर भूमिका अपनाई है। निर्भीक होकर शीला दीक्षित ने कहा है कि पड़ोसी राज्यों से आने वालों के कारण दिल्ली की समस्या बढ़ रही है। ठाकरे मतानुसार, शीला ने जो बात दिल्ली के लिए कही है, वही बात पूरी तरह से मुंबई पर भी लागू होती है। यहां दो बातें स्पष्ट हैं एक तो यह कि ठाकरे की स्मरण-शक्ति क्षीण हो गई है, दूसरी ठाकरे अभी भी मुंबई को अपनी जागीर समझने की भूल कर रहे हैं।
यह ठीक है कि शीला दीक्षित ने पर-प्रांतीयों के विषय में ऐसी टिप्पणी की थी किंतु ठाकरे साहब आपको याद दिला दूं कि उनकी टिप्पणी से जो बवाल उठा था, उसके 24 घंटे के अंदर शीला दीक्षित ने माफी मांगते हुए अपने शब्दों को वापस ले लिया था। निश्चय ही कोई निडर 'मर्द' ऐसा नहीं करता। यह कैसा मर्द जो 24 घंटे में ही अपने उगले को निगल माफी मांग ले। शीला दीक्षित ने वस्तुत: एक अच्छे व निष्पक्ष शासक की तरह गलती का एहसास करते हुए क्षमा मांगी थी। यह एक अच्छा राजनीतिक गुण है। अगर बाल ठाकरे पर-प्रांतीयों के कारण दिल्ली की समस्या को मुंबई की समस्या बताते हैं और शीला दीक्षित को मर्द मानते हैं तो अविलंब शीला की तरह सार्वजनिक रूप से क्षमा मांगें। तब वे भी मर्द कहलाएंगे। शीला को आदर्श मानने वाले बाल ठाकरे क्या ऐसा करने को तैयार है?
प्रसंगवश, इससे संबंधित एक और वाकये की बाल ठाकरे को याद दिला दूं। जिन दिनों शीला दीक्षित ने उपरोक्त टिप्पणी की थी, उन्हीं दिनों दिल्ली के उप राज्यपाल ने एक आदेश निकाल दिया था कि दिल्ली में किसी अन्य राज्यों द्वारा जारी 'ड्रायविंग लायसेंस' वैध नहीं माने जाएंगे। अर्थात, महाराष्ट्र राज्य में जारी लायसेंस को भी सही मानने से दिल्ली के उप राज्यपाल ने इनकार कर दिया था। यानी, दिल्ली के उप राज्यपाल की नजर में महाराष्ट्र भी अविश्वसनीय था। क्या बाल ठाकरे इस पर कोई टिप्पणी करना चाहेंगे? उक्त आदेश पर भी बवाल मचा और विवश उप राज्यपाल को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। इन तथ्यों की मौजूदगी के बावजूद बाल ठाकरे द्वारा शीला दीक्षित को उद्धृत करना निश्चय ही एक हास्यापद कृत्य है?
3 comments:
एक उम्र के बाद दिमाग ही नहीं जुबान पर काबू कहां रहता है
'नामर्द' हैंबाल ठाकरे nice
BTW: Curious to know under which category Bal treats himself ? :)
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