क्या नितिन गडकरी दिल्ली की कथित भाजपा चौकड़ी की मौजूदगी में पार्टी को प्रभावी नेतृत्व दे पाएंगे? क्या दिल्ली का समर्थन-सहयोग गडकरी को मिल पाएगा? ये सवाल हवा में उछाले जा रहे हैं। लोग जान लें कि ये सवाल न तो भाजपा संगठन के लोग पूछ रहे हैं और न ही पार्टी के अन्य नेता। वस्तुत: सवाल पूछे जा रहे हैं मीडिया की ओर से-संदेह के रूप में। इसमें कोई कारण नहीं। कारण साफ है। चूंकि, नितिन गडकरी दिल्ली के बाहर के हैं, मीडिया परेशान है। वह अचंभित है कि 'दिल्ली संस्कृति' से दूर 'झुनका भाकर ' संस्कृति वाले गडकरी राजधानी की चिकनी सड़कों पर पैर जमाएंगे तो कैसे? लेकिन, दिल्ली मीडिया और उसके सुर में सुर मिलाने वाले किसी गफलत में न रहे। गडकरी जरूरत पडऩे पर कारपोरेट संस्कृति और आवश्यकतानुसार गली-कूचों की संस्कृति को न केवल सरलतापूर्वक अपना लेते हैं बल्कि इनकी वेश-भूषा में सफल नेतृत्व भी भली-भांति कर लेते हैं। वह भी यूं कि लोग-बाग स्वत: अनुकरण को आतुर हो जाएं। गडकरी राजनीति के लिए नहीं, बल्कि विकास के लिए राजनीति करने वाले अद्वितीय राजनीतिक हैं। इनकी दृष्टि स्पष्ट है। गडकरकहते हैं कि अगर हम राज्य के विकास के लिए सिर्फ सरकार पर निर्भर करेंगे, तब लक्ष्य-प्राप्त करना सरल नहीं होगा। गडकरी को जानने वाले सादे कागज पर हस्ताक्षर कर प्रमाण-पत्र देने को तैयार मिलेंगे कि गडकरी सदृश सांगठनिक क्षमता का धनी व्यक्तित्व विरले ही धरती पर आता है। निर्धारित नीति और लक्ष्य का क्रियान्वयन और प्राप्ति की वांछित कर्मठता गडकरी के रोम-रोम में मौजूद है। ईमानदारी इनकी पूंजी है और इंसानियत धर्म। नागपुर के एक छोटे से मोहल्ले की गली से निकल रायसीना का रास्ता कोई यूं ही तय नहीं कर सकता।
रही बात दिल्ली चौकड़ी और सहयोग-समर्थन की, तब मैं यह बता देना चाहूंगा कि ये सारी बातें कपोल-कल्पित हैं। दिल्ली में मौजूद सभी वरिष्ठ नेता पार्टी के अनुशासन से ही नहीं बंधे हुए हैं, बल्कि पार्टी हित में उनके समर्पण को कोई चुनौती नहीं दे सकता। हां, मानव हैं तो मानवीय भूल के अपराधी यदाकदा वे बन जा सकते हैं। लेकिन, उनकी नीयत असंदिग्ध है। जिस बिखराव के दौर से भाजपा अभी गुजर रही है, उसे समेट एक सार्थक दिशा देने को सभी आतुर हैं- दिल्ली और बाहर के सभी नेता-कार्यकर्ता। कोई भी परिवर्तन से उभरे नए नेतृत्व के पीठ में छुरा नहीं भोंकेगा। परिवर्तन की सचाई को सभी जान लें। यह कहना बिलकुल गलत है कि दिल्ली का कोई धड़ा अध्यक्ष पद पर नितिन गडकरी के चयन से नाराज है। दिल्ली में प्रविष्ट एक नए चेहरे के प्रति उत्सुकता को नाराजगी निरूपित करना गलत है और फिर यह सच भी तो चिन्हित है कि भारतीय जनता पार्टी में ताजा परिवर्तन संघ की इच्छा-पूर्ति व योजना का कार्यान्वयन है। प्रेरक शक्ति के रूप में लालकृष्ण आडवाणी मौजूद हैं- अटलबिहारी वाजपेयी के आशीष के हाथ उपलब्ध हैं। राजनाथसिंह का अनुभव और सुषमा स्वराज तथा अरूण जेटली की प्रखरता कायम है। कोई शक-शुबहा नहीं, किंतु-परंतु की भी गुंजाइश नहीं। जिस आशा और विश्वास के साथ नितिन गडकरी का चयन किया गया है, वे पूरे होंगे। गडकरी पार्टी की दशा-दिशा को संवारने के लिए सार्थक संवाहक बनेंगे- समय आने पर देश के भी।
1 comment:
मान्यवर,
आशा करता हू कि आप का लिखा हुआ सच हो और परमत्मा से प्रार्थना भी
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