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Thursday, December 17, 2009

अज्ञानी नेता, बेबस मनसे विधायक!

आगामी 15 दिनों में समाप्त हो रहे वर्ष 2009 की दो सर्वाधिक रोचक खबरें! पहली- महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे इन दिनों पृथक विदर्भ राज्य की मांग को लेकर अध्ययन, परीक्षण और सर्वेक्षण की अहम् भूमिका में व्यस्त हैं। दूसरी- विधानसभा के अंदर 'गुंडागर्दी' के कारण निलंबित उनके विधायकों को दुख है कि जनता ने तो उन्हें चुना किंतु, निलंबन के कारण वे उनकी आवाज, उनकी समस्याएं विधानसभा में नहीं उठा पा रहे हैं। क्या इससे बड़ी कोई रोचक खबर हो सकती है? विदर्भ के दौरे पर आए राज ठाकरे ने दोटूक शब्दों में जब ऐसी घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी अलग विदर्भ राज्य के गठन के खिलाफ है, तब फिर कैसा अध्ययन, कौन सा परीक्षण और किस तरह का सर्वेक्षण? दरअसल, वे नागपुर में पत्रकारों के सटीक सवालों का जवाब अपनी अज्ञानता के कारण नहीं दे पा रहे थे। उनसे तथ्य आधारित, वैचारिक बातों की अपेक्षा करनी भी नहीं चाहिए। विदर्भ क्षेत्र की समस्याओं और जरूरतों से अनभिज्ञ राज जब विदर्भ के दौरे पर आए हैं, तब पहले उन्हें अच्छी तरह 'होमवर्क' कर लेना चाहिए था। तब वे अध्ययन, परीक्षण, सर्वेक्षण के मकडज़ाल में नहीं फंसते। यह उनकी अज्ञानता ही है कि उन्होंने इस मुद्दे पर विदर्भ में मतदान अर्थात आत्मनिर्णय का जुमला उछाल दिया। अगर राज ठाकरे अपने शब्दों पर कायम रहते हैं, तब चुनौती है उन्हें कि किसी भी स्तर पर मतदान करा लें। 90 प्रतिशत से अधिक विदर्भवासी पृथक विदर्भ राज्य के गठन के पक्ष में मतदान करेंगे। क्या तब ठाकरे 'जय विदर्भ' के नारे का साथ देंगे? शायद नहीं। तब हठी और अज्ञानी राज ठाकरे कोई नया बहाना ढूंढ़ विदर्भ आंदोलनकारियों को गालियां देते नजर आएंगे। गाली, हुड़दंग, मारपीट और झूठ इनकी स्थायी फितरत है। रचनात्मकता से दूर तोडफ़ोड़ की राजनीति करने वाले राज ठाकरे, बेहतर हो, मुंबई के अपने पिंजड़े में ही गरजें- विदर्भ में नहीं। यहां की शांतिप्रिय जनता धर्म, भाषा, जाति में भेदभाव भी नहीं बरतती। पश्चिम महाराष्ट्र की तुलना में अपने लिए सौतेला व्यवहार से खिन्न विदर्भवासियों ने पृथक विदर्भ राज्य का झंडा उठाया है। क्षेत्र के विकास के लिए, विदर्भवासियों के सम्मान के लिए पृथक विदर्भ राज्य एक मात्र उपाय है।
अब बात निलंबित मनसे विधायकों के मगरमच्छी आंसुओं की। अपनी 'गुंडागर्दी' पर अभी भी गर्व करने वाले इन अज्ञानियों को अब कौन समझाए कि इन चारों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के करीब 20 लाख मतदाताओं ने इन्हें इसलिए नहीं चुना था कि वे विधानसभा के अंदर 'गुंडागर्दी' का मंचन करें। उन्हें दुख है कि वे जनता की समस्याओं को, विकास से संबंधित मांगों को विधानसभा में नहीं उठा पा रहे हैं। आश्चर्य है कि एक ओर तो ये जनता की समस्याओं, क्षेत्र के विकास आदि मुद्दों को विधानसभा में उठाए जाने संबंधी अपने दायित्व को रेखांकित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुंबई में विधानसभा के अंदर अपने घोर आपत्तिजनक व असंसदीय कृत्य पर गर्व भी महसूस कर रहे हैं। कौन करेगा इन पर विश्वास? उन्हें चुनने वाली जनता भी अब इन पर विश्वास नहीं करेगी। निलंबन के आदेश की शर्तों के अनुसार ये निलंबित विधायक विधान मंडल परिसर के आस-पास भी नहीं फटक सकते। बावजूद इसके ये विधान मंडल के सिर्फ दरवाजे तक ही नहीं पहुंचे, बल्कि गालियां बकते हुए सुरक्षा कर्मियों के साथ बदतमीजियां भी कीं। निश्चय ही जनता ने इस हेतु इन्हें नहीं चुना है। निलंबन वापस लिए जाने के अनुरोध के पूर्व ये पश्चाताप करें। आचरण में सुधार लाएं। और जनता को विश्वास दिलाएं कि वे एक सही, अनुशासित जनप्रतिनिधि के रूप में आगे से पेश आएंगे। मनसे विधायक ऐसा कर पाएंगे, यह संदिग्ध है। कारण स्पष्ट है। अपने कृत्य पर शर्म की जगह गर्व का सार्वजनिक प्रदर्शन करने वाले ये विधायक बेचारे अपने नेतृत्व के हाथों भी मजबूर हैं। जब निलंबन के पश्चात नेता राज ठाकरे इनका सार्वजनिक अभिनंदन करते हैं, तब ये बेचारे अपनी 'गुंडागर्दी' पर गर्व कैसे न करें!

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