Saturday, July 24, 2010
असहनीय है गृहिणियों का ऐसा अपमान!
तो अब यही देखना-सुनना शेष रह गया है! आग लगा दें इस तथाकथित सभ्य समाज को जो नारी को सर्वोच्च सम्मान, पूजनीय का दर्जा देने का स्वांग रचता है! धिक्कार है इस देश पर जो अपनी कथित गौरवशाली संस्कृति-सभ्यता का ढिंढोरा पिटता हुआ अपने लिए वैश्विक आयाम की चाहत रखता है! कहां हैं वे जो नारी सशक्तिकरण, विधायिका में एक तिहाई आरक्षणऔर हर मोर्चे पर नारी को पुरुषों के समकक्ष देखना चाहते हैं? सामने लाएं उन्हें! और सामने लाएं उन गैरजिम्मेदार, असंवेदनशील नालायकों को जिन्होंने भारतीय गृहिणियों को वेश्या की पंक्ति में खड़ा कर दिया। गृहिणियों को अनुत्पादक घोषित कर दिया। यह असहनीय है। जनगणना के दौरान भारत सरकार ने यह करिश्मा कर दिखाया है। सर्वाधिक आश्चर्य तो इस बात का है कि सन् 2001 की जनगणना के समय से ही गृहिणियों को वेश्या और भिखारी की श्रेणी में रखा जाता रहा है, किन्तु किसी का भी ध्यान इस घोर आपत्तिजनक तथ्य की ओर नहीं गया। न तो किसी राजनीतिक दल का, न नारी सशक्तिकरण आंदोलन के प्रति समर्पित किसी महिला संगठन का, न महिला आयोग का और न ही किसी तसलीमा नसरीन, मेधा पाटकर, शबाना आजमी, वृंदा कारत, तिस्ता सीतलवाड या शोभा डे का। नारी उत्पीडऩ के खिलाफ सड़कों पर मोर्चा निकालने वाली नेत्रियों का भी नहीं। यहां तो मामला उत्पीडऩ से भी कहीं गंभीर है। घर-परिवार को सजाने-संवारने और एकजुटता के प्रति समर्पित सभी गृहिणियों को वेश्या और भिखारी के समकक्ष रख उन्हें अनुत्पादक निरूपित करने वालों की पहचान जरूरी है। इस मामले को किसी लिपिक की भूल बता खारिज नहीं किया जा सकता। मैं यहां सर्वोच्च न्यायालय की इस टिप्पणी के साथ हूं कि 'यह रवैया महिलाओं के खिलाफ लैंगिक पूर्वाग्रह का प्रतीक है।' क्या यही पुरुष-प्रधान समाज का वास्तविक सच है? धिक्कार है कि खाना पकाने, बर्तन साफ करने, बच्चों की देखभाल करने, पानी लाने, जलावन एकत्र करने जैसे घरेलू काम करने वाली महिलाओं को अश्रमिक वर्ग में शामिल कर भिखारियों, वेश्याओं और कैदियों की श्रेणी में रख दिया गया। जनगणना के अनुसार उन्हें आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य के योग्य नहीं माना गया। नतीजतन सन्ï 2001 की जनगणना में भारत की करीब 36 करोड़ महिलाओं को अश्रमिक वर्ग में शामिल कर दिया गया। यह तो भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने गृहिणियों की इस अपमानजनक अवस्था को रेखांकित कर आपत्ति दर्ज की है। अन्यथा नारी के पक्ष में भाषण, लेखन और आंदोलन कर महिमामंडित होने वाले संगठन तो इस तथ्य से अंजान ही थे। या फिर यह कह लें कि उन्हें इस 'अपमान' से कोई फर्क नहीं पड़ा था। अब भी विलंब नहीं हुआ है। ऐसी अपमानजनक स्थिति के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उन्हें दंडित तो किया ही जाए, जनगणना के लिए किए गए इस वर्गीकरण को तत्काल निरस्त कर दिया जाए।
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5 comments:
शर्मनाक है....
महिला और अनुत्पादक ..
ऐसी सोंच रखनेवालों पर ताज्जुब होता है !!
धिक्कार है,धिक्कार है,धिक्कार है।
ऐसे निति-नियामको को,और ऐसे मामलों को नजरअंदाज़ करने वालों को। सौ बार धिक्कार है।
अवश्य ही दंडित किया जाना चाहिये...
जिन्होंने ये किया उनपर लानत है -
लज्जास्पद कुकर्मों में लिप्त नेताओं से और क्या आशा की जाये- जो तिलक पटेल सुभाष भगतसिंह रामप्रसाद बिस्मिल की परंपरा के वाहक थे वे तो अब दिखाई देते नहीं
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