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Saturday, January 30, 2010

ठाकरे जी! नेतागीरी करें, दादागीरी नहीं!!

अगर 'सठियाना' आज भी प्रासंगिक है, तब यही कहा जा सकता है कि शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे पूरी तरह सठिया गए हैं। समझ में नहीं आता कि उन्होंने यह भ्रम कैसे पाल लिया है कि मुंबई उनकी जागीर है? जब भी कोई मुंबई के संदर्भ में राष्ट्रीयता अथवा भारतीयता की बातें करता है, ठाकरे उसे मुंबई विरोधी व मराठी विरोधी निरूपित कर देते हैं। मुंबई को भारतीयता से पृथक पेश कर ठाकरे आखिर क्या सिद्ध करना चाहते हैं? उनकी सोच अत्यंत ही संकुचित है। यह तो अब दोहराना ही होगा कि वे जातीयता और क्षेत्रीयता की खतरनाक राजनीति को सिंचित कर रहे हैं। उस जहरीली प्रवृत्ति को ऊर्जा दे रहे हैं ठाकरे, जिस पर तत्काल काबू नहीं पाया गया तो वह एक दिन सांप्रदायिकता का तांडव ही मंचित नहीं करेगा बल्कि देश को खंडित करने का कारण भी बनेगा। दुख और आश्चर्य यह भी कि महाराष्ट्र जैसे आदर्श प्रदेश में एक निर्वाचित मजबूत सरकार तो है किन्तु ठाकरे एवं उन जैसे अलगाववादी तत्वों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। क्या मजबूरी है उनकी? वरुण गांधी अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित रूप से भड़काऊ भाषण देते हैं तो उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार जेल भेज देती है। यहां प्रदेश में बाल ठाकरे एवं उनके भतीजे राज ठाकरे सार्वजनिक रूप से जातीयता, सांप्रदायिकता और क्षेत्रीयता का जहर उगलते हैं और बेखौफ विचरने के लिए स्वतंत्र हैं। क्यों?
बाल ठाकरे उद्योगपति मुकेश अंबानी को चेतावनी देते हैं कि वे बिजनेस करें, राजनीति नहीं। मुकेश अंबानी को ठाकरे ने इस लिए निशाने पर लिया कि उन्होंने मुंबई को सभी भारतीयों का शहर बता दिया। क्या गलत कहा था अंबानी ने? क्या मुंबई भारतीय संघ से बाहर है? इस पर ठाकरे का बिफरना हास्यास्पद है। इसके पूर्व जब सचिन तेंदुलकर ने यही बात कही थी तब भी ठाकरे क्रोधित हो उठे थे। ठाकरे का यह कहना कि मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी है और रहेगी तथा यह कि मुंबई, चेन्नई और दिल्ली सभी भारतीयों की है तब अंबानी अहमदाबाद, जामनगर और राजकोट जैसे शहरों को क्यों छोड़ देते हैं, ठाकरे के दिमागी दिवालिएपन का सूचक है। अव्वल तो महाराष्ट्र की राजधानी के रूप में मुंबई को कोई चुनौती नहीं दे रहा। दूसरे मुंबई, चेन्नई और दिल्ली का उदाहरण देने वाले वस्तुत: महानगरों की चर्चा करते हैं। अहमदाबाद, जामनगर और राजकोट या फिर बंगलुरु, अहमदाबाद, लखनऊ आदि नगर तो भारतीय संघ के अंग हैं ही, सभी शहरों पर सभी भारतीयों का अधिकार है। इसकी चर्चा ही व्यर्थ है। मुंबई और मराठी मानुस को आहत करने का सवाल ही नहीं उठता। मुंबई में या देश के अन्य शहरों में कार्यरत रिलायंस कंपनियां भारतीय औद्योगिक विकास की प्रतीक हैं। उन पर सभी का अधिकार है। कोई इस बात को भी चुनौती नहीं दे सकता कि अंबानी के औद्योगिक साम्राज्य का विस्तार मुंबई और महाराष्ट्र की वजह से ही हुआ। अंबानी परिवार ने इस तथ्य से कभी इंकार नहीं किया। फिर बाल ठाकरे क्यों तिलमिलाए? जवाब बाल ठाकरे को ही देना है। लोग-बाग यह तो पूछ ही रहे हैं कि जब आस्टे्रलिया में हो रहे भारतीयों पर हमले की निंदा बाल ठाकरे करते हैं और आस्टे्रलियाई क्रिकेट खिलाडिय़ों के भारत में खेलने के खिलाफ आवाज उठाते हैं तब खुद मुंबई में उनके लोग गैर मराठियों को निशाना क्यों बना रहे हैं। लोग तो अब यहां तक पूछने लगे हैं कि क्या बाल ठाकरे तमाम गैर मराठी उद्योगपतियों और हिंदी फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं, अभिनेत्रियों को मुंबई व महाराष्ट्र से निकल जाने का अभियान चलाएंगे? बाल ठाकरे इसकी परिणति की कल्पना कर लें। शेष मुंबई का अवशेष तब ठाकरे एवं उनके सहयोगियों को समुद्र की ओर मुंह करने को विवश कर देगा। बेहतर हो ठाकरे नेतागीरी करें, दादागीरी नहीं।

1 comment:

संजय बेंगाणी said...

आपने सही लिखा है.