सचाई के मुहाने पर पहुंच, सिर और आंखें पीछे कर निर्णय लेनेवाले को 'मूर्ख' के विशेषण से ही अलंकृत किया जाता है। और जो इस मूर्खता को स्वत: आत्मसात करते हैं उसे 'महामूर्ख' कहा जाता है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस ने स्वयं को इसी श्रेणी में डाल दिया है। बिल्कुल मुठ्ठी से सरकती रेत की तरह कांग्रेस महाराष्ट्र प्रदेश में उपलब्ध स्वर्णिम अवसर को हाथ से फिसल जाने की तत्परता दिखा रही है।
बदलते राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृष्य से उत्साहित कांग्रेस एक ओर जहां अपनी वापसी को देख रही है वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस हाथ आ रहे अवसर का लाभ उठाने में चूक कर रही है। संगठनात्मक ढांचे में परिवर्तन की जरुरत तो थी, किंतु जिस रुप में प्रदेश कांग्रेस का पुनर्गठन किया गया है वह स्वयं में हास्यास्पद है। 19 उपाध्यक्ष, 66 महासचिव, 60 सचिव! प्रदेश कांग्रेस का यह नया 'जम्बो' रुप कितना कारगर सिद्ध होगा यह तो भविष्य ही बताएगा, किंतु नये पदाधिकारियों की घोषणा के साथ ही पार्टी के अंदर असंतोष का जो लावा फूटा है वह पार्टी के भविष्य के लिए सुखद तो कदापि नहीं है। अनेक कर्मठ-समर्पित कार्यकर्ताओं, नेताओं की उपेक्षा और आयातित नेताओं, कार्यकर्ताओं को वरीयता देने से अनेक कांग्रेसी क्षुब्ध हैं। कुछ ने इस्तीफा भी दे दिया है। तर्क तो यह दिया जा रहा है कि विशाल महाराष्ट्र के हर क्षेत्र के लोगों को नवगठित समिति में स्थान देकर उन्हें नेतृत्व का अवसर दिया गया है। किंतु विक्षुब्ध आशंकित हैं कि घोर अवसरवादी और 'व्यापारी बुद्धि' धारक जिन लोगों को शामिल किया गया है वे पार्टी और पद का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आयेंगे । बल्कि आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि थोड़े से लालच में यह तत्व मौका मिलने पर पार्टी की पीठ में भी छुरा भोंकने से पीछे नहीं हटेंगे।
प्रदेश कांग्रेस का यह ताजा घटना विकासक्रम दुख:द है। अंदरुनी खींचतान से परेशान सत्तारूढ़ भाजपा नेतृत्व का गठबंधन जहां अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष कर रहा है तो वहीं कांग्रेस की अपेक्षित एकजुटता भंग होती है तो इसका असर भविष्य में चुनावी सफलता पर भी पड़ेगा। लगता है कांग्रेस आलाकमान को सलाहकारों ने महाराष्ट्र की जरूरत को लेकर गुमराह किया है। महाराष्ट्र एक ऐसा प्रदेश है जहां कि राजनीतिक सफलता-विफलता देश के अन्य भागों को प्रभावित करती है। इस पाश्र्व में प्रदेश कांग्रेस का नया 'जम्बो संगठन' पार्टी के पक्ष में अगर कुछ सकारात्मक परिणाम देने में विफल रहा तो तय मानें कि देश के अन्य राज्यों में भी कांग्रेस संगठन अफरा-तफरी के शिकार बनेंगे। और तब कांग्रेस नेतृत्व महाराष्ट्र प्रदेश के 'नये आकार' को लेकर विलाप और सिर्फ विलाप करता नजर आयेगा।
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