'मीडिया मंडी' के साहूकारों के मेनका गांधी पर मौन से सभी अचंभित हैं। मेनका गांधी फिलहाल भारतीय जनता पार्टी में हैं और केंद्र में मंत्री हैं, और यह भी कि उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत एक पत्रकार के रुप में की थी। तब श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। आज वही मेनका गांधी जब दो पत्रकारों की मान्यता रद्द करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय को अनुशंसा करती हैं तो, आखिर क्यों? तकनीकी आधार पर उनकी अनुशंसा बिलकुल गलत है। तथ्यों के आधार पर भी वे गलत हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि, स्वयं उनकी भारत सरकार ने अनुशंसा अथवा अनुरोध को ठुकरा दिया। फिर मेनका गांधी ने ऐसी बेवकूफी की तो क्यों? 'मीडिया मंडी' में चर्चा है कि दो वरिष्ठ पत्रकारों की मान्यता रद्द करने संबंधी मेनका गांधी की अनुशंसा सिर्फ एक 'पब्लिसिटी स्टंट' था। यह संभव है।
जानकार पुष्टि करेंगे कि मेनका गांधी में यह 'गुण' आरंभ से ही विद्यमान है। पति संजय गांधी की मृत्यु के पश्चात मेनका ने संजय विचार मंच की स्थापना कर खबरों में बने रहकर वस्तुत: खुद को इंदिरा गांधी की उत्तराधिकारी के रूप में स्थापित करना चाहती थीं। उसी क्रम में उन्होंने अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका 'सूर्या' का प्रकाशन-संपादन शुरू किया। आज सरकार की कथित रुप से आलोचना को आधार बना विदेशी समाचार एजेंसी 'रायटर्स' के दो वरिष्ठ पत्रकारों की सरकारी मान्यता रद्द करने की पहल करने वाली मेनका गांधी की 'पत्रकारीय पसंद' की एक याद। इंदिरा गांधी के विरोधी जगजीवन राम के पुत्र सुरेश की निजी जिंदगी पर 'सूर्या' में एक बड़ी सनसनीखेज खबर प्रकाशित हुई थी। खबर के साथ ऐसे 'अंतरंग' चित्र लगाए गये थे, जिन्हें उस रूप में छापने के लिए कोई जिम्मेदार संपादक शायद ही तैयार होता, लेकिन संपादक मेनका गांधी ऐसा कर गुजरीं। तब उस खबर और चित्रों की व्यापक आलोचना हुई थी। लेकिन 'पब्लिसिटी' ऐसी मिली कि 'सूर्या' रातोरात चर्चित हो गई। आज मीडिया मंडी अगर 'सूर्या' की याद कर रहा है तो प्रभाव उस 'पब्लिसिटी स्टंट' का ही।
हालांकि अब बिलकुल परिवर्तित मेनका गांधी एक सफल राजनीतिक और कुशल मंत्री के रूप में उल्लेखनीय हैं। आलोच्य प्रसंग 'प्रहरी' को इसीलिए व्यथित कर रहा है कि मेनका गांधी ने इन दो पत्रकारों के खिलाफ घोर गैर वाजिब कार्रवाई के 'आदेश' दिये तो क्यों ? वह भी ऐसी खबर को लेकर जो बहुत पहले ही प्रकाशित हो चुकी थी। तब तो उन्होंने कोई संज्ञान नहीं लिया था। फिर आज क्यों ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि ताजा खबर उनके हवाले से प्रकाशित की गई थी? हां, सच यही है !
अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन एक्सप्रेस' में हाल में प्रकाशित एक खबर के अनुसार मेनका गांधी 'रायटर्स इंडिया' के दो पत्रकारों की पीआईबी मान्यता रद्द करवाना चाहती थी। कहते हैं कि विगत 19 अक्टूबर 2015 को 'रायटर्स' ने एक खबर जारी की थी, जिसमें मेनका गांधी के हवाले से सरकार की आलोचना की गई थी कि, उसने उनके मंत्रालय का बजट कम कर दिया है। संवाददाता ने अपनी रिपोर्ट में मेनका गांधी से हुई बातचीत का हवाला दिया था। इसी खबर से चिढ़ कर मेनका गांधी दो पत्रकारों आदित्य कालरा और एंड्रयू मैकेस्किल की मान्यता रद्द करवाना चाहती थीं। अब दिलचस्प यह कि 19 अक्टूबर की जिस रिपोर्ट में मेनका के हवाले से जो बातें कही गई थीं वे सभी बातें मेनका गांधी द्वारा मार्च और अप्रैल 2015 में वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे दो पत्रों का हिस्सा थीं, जिस पर आदित्य कालरा के नाम से 'रायटर्स' पर एक 'खास खबर' छपी थी। अब सवाल यह उठता है कि मेनका को अगर अपने कहे को गलत तरीके से छापे जाने पर आपत्ति है तो उन्होंने 19 मई 2015 की 'रायटर्स' की उस रिपोर्ट पर आपत्ति क्यों नहीं जताई, जिसमें वही बातें छपी हैं जबकि उसका आधार बातचीत नहीं, बल्कि 'लीक' हुए उनके ही दो पत्र हैं, जो सबसे ज्यादा विश्वसनीय हैं।
'मीडिया मंडी' के सदस्य इस बात पर भी चकित हैं कि 'इंडियन एक्सप्रेस' की खबर में असली बात क्यों छिपा ली गई? और, असली बात यह कि अक्टूबर से काफी पहले मई में ही आदित्य कालरा ने 'रायटर्स' पर एक खास रिपोर्ट की थी, जिसमें मेनका द्वारा वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखे दो पत्रों का उद्धरण दिया गया है। एक पत्र 27 अप्रैल 2015 का है और दूसरा पत्र 5 मार्च 2015 यानी बजट के ठीक बाद का है। अगर पांच महीने के अंतराल पर छपी दो रिपोर्ट, 19 मई और 19 अक्टूबर, को मिलाकर पढ़ा जाये तो दोनों में तथ्य एक ही समान नजर आएंगे। मेनका गांधी के जो विचार बजट कटौती पर 19 मई की रिपोर्ट में दो पत्रों के आधार पर शामिल किये गये हैं, तकरीबन वही बातें 19 अक्टूबर की रिपोर्ट में भी हैं। हां यह जरुर है कि उनका आधार मेनका गांधी से संवाददाताओं की हुई बातचीत है।
19 मई की 'रायटर्स' की 'खास खबर' और मेनका की दो चिट्ठियां 'लीक' होने के बाद तो कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन 19 अक्टूबर को साक्षात्कार के आधार पर ऐसी खबर 'रायटर्स' पर छपने के बाद मेनका के मंत्रालय ने इस बात का जोरदार खंडन किया कि बजट कटौती पर मेनका की टिप्पणी प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की कोई आलोचना है और मंत्रालय ने खबर को 'गलत व खुराफाती' करार दिया। उसी दिन मंत्रालय ने एक सफाई दी, जिसे 'रायटर्स' ने 20 अक्टूबर को ही छाप दिया, लेकिन इस घोषणा के साथ कि वह अपनी खबर पर कायम है। नाराज मेनका गांधी को इससे संतोष नहीं मिला। उसी दिन उनके निजी सचिव मनोज अरोड़ा ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव सुनील अरोड़ा को एक पत्र भेजकर कहा कि उन्हें ''आदेश मिले हैं कि आपसे कालरा और मैकेस्किल की पीआईबी मान्यता को रद्द करने का अनुरोध किया जाये''। मंत्रालय ने मामला पीआईबी को सौंप दिया। शाबाश कि, पीआईबी ने कहा कि मान्यता के प्रावधानों के तहत वह दोनों पत्रकारों की मान्यता को रद्द नहीं कर सकता। प्रहरी प्रसन्न है कि भारत सरकार का यह अंग पीआईबी किसी दबाव में न आकर नियमों के तहत सरकार के मंत्री की अनुशंसा को अस्वीकार कर देता है।
No comments:
Post a Comment