नहीं, ऐसा नहीं होना चाहिए !
केंद्रीय मंत्री गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़णवीस दोनों सावधान हो जाएं! यह एक ऐसा अरुचिकर प्रसंग है जिसका विस्तार न केवल महाराष्ट्र की राजनीति, बल्कि केंद्रीय राजनीति भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है! जबकि, यह सचाई मौजूद है कि इन दोनों नेताओं में से कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा। उनकी नीयत साफ है। प्रदेश और राष्ट्रहित में एक साथ कदमताल करते ये दोनों भाजपा के नेता बेहतर जनहित और विकास के पक्षधर हैं- निज स्वार्थ से कोसों दूर। फिर ऐसी भ्रांति क्यों ?
इनकार दोनों करेंगे। बावजूद इसके लोगों के बीच ऐसा संदेश गया कि महाराष्ट्र के इन दो दिग्गज भाजपा नेताओं के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। शत-प्रतिशत गलत इस भ्रांति की उत्पत्ति तब कैसे हो गई? 'दुर्घटना' का कारण कतिपय शब्द, अवसर और विध्न संतोषियों द्वारा शब्दों को (कु) परिभाषित करना है। दोनों दिग्गज विदर्भ की अघोषित राजधानी और महाराष्ट्र की घोषित उपराजधानी नागपुर का क्रमश: संसद और विधान सभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में दोनों की अपनी-अपनी उपलब्धियां हैं, सकारात्मक भूमिकाएं हैं, और बेदाग राजनीतिक पाश्र्व है। आलोचना के लिए आलोचना करने वालों को छोड़ दें तो दोनों के प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है। मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व में विकास की नई-नई योजनाएं बनीं और बिलकुल व्यवहारिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर उनके क्रियान्वयन प्रगति पर हैं। केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद गडकरी महाराष्ट्र, विशेषकर विदर्भ, के हित को लेकर चिंतित रहत हैं। उनकी ऐसी चिंता सकारात्मक है। उनकी महाराष्ट्र के प्रति ऐसी सक्रियता, बल्कि हाल के दिनों की कतिपय अतिसक्रियता के कारण हर घटनाक्रम में राजनीति व स्वार्थ ढूंढऩे वाले समीक्षक सक्रीय हो उठे हैं। गडकरी ने जब राज्य की सिंचाई परियोजनाओं के लिए बजट में आबंटित धन राशि को अपर्याप्त बताया तो समीक्षकों के इस खास वर्ग ने उनकी अवधारणा को प्रदेश सरकार विरोधी निरुपित कर डाला। दूसरे शब्दों में कहें तो सिंचाई को लेकर गडकरी की चिंता को फड़णवीस सरकार विरोधी करार दे डाला। जबकि सचाई के धरातल पर तथ्य यह है कि फड़णवीस की तरह गडकरी भी विकास की एक मजबूत रीढ़़ सिंचाई को सकारात्मक व्यवहारिक दिशा देने को उत्सुक हैं। इसी चिंता के अंतर्गत उन्होंने टिप्पणी कर डाली थी कि सिंचाई के मद में एक छोटे से राज्य तेलंगाना में जहां 25 हजार करोड़ का बजट प्रावधान रखा है, वहीं महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में यह प्रावधान मात्र 7 हजार करोड़ का है। महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने इस मुद्दे पर स्थिति साफ करते हुए यह तय्थ सार्वजनिक किया कि वस्तुत: सिंचाई व इससे जुड़ी योजनाओं पर 12 हजार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की जा रही है। मुनगंटीवार ने विस्तार में सिंचाई संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों की जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि धनराशि के अभाव में किसी भी योजना का क्रियान्वयन नहीं रूकेगा। उन्होंने धनराशि के आबंटन और शत-प्रतिशत उपलब्धता को भी चिंहित किया। मुनगंटीवार के स्पष्टीकरण के बाद लोग आश्वस्त हो गये कि राज्य सरकार सिंचाई योजनाओं के क्रियान्वयन में कोई कोताही नहीं बरत रही है।
नितिन गडकरी का आशय कभी आलोचना का नहीं था। उन्होंने अपनी जानकारी और गणित के आधार पर राज्यहित में सिंचाई को लेकर पीड़ा व्यक्त की थी, नीयत साफ थी। उनका आशय ध्यानाकर्षण था। शत-प्रतिशत एक शुभचिंतक के रूप में उन्होंने फड़णवीस सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। जानकार पुष्टि करेंगे कि नितिन गडकरी एक सामान्य राजनेता से बिलकुल पृथक व्यवहारिक विकास पुरुष हैं। उसी प्रकार मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस भी सत्ता के चुंबकीय आकर्षण से दूर जनहितकारी राजनीति के पक्षधर रहे हैं। प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर उन्होंने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए जो कदम उठाए उसके दूरगामी सुपरिणाम तय हैं। कथित सस्ती राजनीतिक लोकप्रियता के लिए तात्कालिक लुभावने कदम उठाने से इनकार कर फड़णवीस ने किसान और कृषि हित में लाभकारी योजनाओं को मूर्त रुप देने की दिशा में कदम उठाए हैं। किसान, कृषि, सिंचाई के मोर्चे पर गडकरी और फड़णवीस की सोच एक है। राजनीतिक गुटबाजी के पक्षधर नहीं चाहते कि महाराष्ट्र के ये दो दिग्गज समान सोच के साथ समान पथ पर कदमताल करेें। गडकरी-फड़णवीस की जोड़ी से सिर्फ महाराष्ट्र को ही नहीं, भारत राष्ट्र को भी अनेक आह्लादकारी अपेक्षाएं हैं। पक्षपाती मीडिया के कुछ हस्ताक्षरों के सहयोग से ये तत्व दोनों के बीच मतभेद पैदा करने पर उतारू हैं। जबकि दोनों को नजदीक से जानने वाले गडकरी-फड़णवीस परिवार के बीच अटूट संबंधों की पुष्टि करेेंगे। राजनीति के क्षेत्र में भी दोनों के संबंध न केवल विचारधारा आधारित हैं, बल्कि भावनात्मक भी। बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े देवेंद्र के पिता गंगाधरराव फड़णवीस ही नितिन गडकरी को राजनीति के क्षेत्र में लेकर आये थे। तत्कालीन विधान परिषद सदस्य रामजीवन चौधरी ने भी गडकरी के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाई थी। और, युवा देवेंद्र फड़णवीस को राजनीति की जमीन उपलब्ध कराने में नितिन गडकरी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सबसे कम उम्र में नागपुर के महापौर बनने वाले देवेंद्र फड़णवीस को नितिन गडकरी का निर्णायक समर्थन मिला था । पिछले लोकसभा और विधान सभा चुनाव में दोनों ने एक-दूसरे के पक्ष में जीत के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। केंद्रीय मंत्री के रूप में गडकरी और प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में देवेंद्र फड़णवीस दोनों को प्रदेश के विकास के मार्ग पर कंधे से कंधे मिला कदमताल करते पूरा प्रदेश देख रहा है। इस पाश्र्व में दोनों के बीच मतभेद पैदा करने के कुत्सित प्रयास को तत्काल जमींदोज कर दिया जाये। हालांकि आवश्यकता नहीं है, फिर भी बेहतर होगा कि इस दिशा में पहल गडकरी और फड़णवीस स्वयं करें। शुभचिंतक के रूप में सुझावों को आलोचना मान संदेश प्रसारित करने वाले तत्व भी अपने पैर पीछे खींच लें। अन्यथा एक दिन उन्हें चौहारे पर नग्नावस्था में अपनी भूल के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ेगी।
केंद्रीय मंत्री गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री फड़णवीस दोनों सावधान हो जाएं! यह एक ऐसा अरुचिकर प्रसंग है जिसका विस्तार न केवल महाराष्ट्र की राजनीति, बल्कि केंद्रीय राजनीति भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है! जबकि, यह सचाई मौजूद है कि इन दोनों नेताओं में से कोई भी ऐसा नहीं चाहेगा। उनकी नीयत साफ है। प्रदेश और राष्ट्रहित में एक साथ कदमताल करते ये दोनों भाजपा के नेता बेहतर जनहित और विकास के पक्षधर हैं- निज स्वार्थ से कोसों दूर। फिर ऐसी भ्रांति क्यों ?
इनकार दोनों करेंगे। बावजूद इसके लोगों के बीच ऐसा संदेश गया कि महाराष्ट्र के इन दो दिग्गज भाजपा नेताओं के बीच सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा है। शत-प्रतिशत गलत इस भ्रांति की उत्पत्ति तब कैसे हो गई? 'दुर्घटना' का कारण कतिपय शब्द, अवसर और विध्न संतोषियों द्वारा शब्दों को (कु) परिभाषित करना है। दोनों दिग्गज विदर्भ की अघोषित राजधानी और महाराष्ट्र की घोषित उपराजधानी नागपुर का क्रमश: संसद और विधान सभा में प्रतिनिधित्व करते हैं। राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में दोनों की अपनी-अपनी उपलब्धियां हैं, सकारात्मक भूमिकाएं हैं, और बेदाग राजनीतिक पाश्र्व है। आलोचना के लिए आलोचना करने वालों को छोड़ दें तो दोनों के प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है। मुख्यमंत्री बनने के बाद देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व में विकास की नई-नई योजनाएं बनीं और बिलकुल व्यवहारिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर उनके क्रियान्वयन प्रगति पर हैं। केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद गडकरी महाराष्ट्र, विशेषकर विदर्भ, के हित को लेकर चिंतित रहत हैं। उनकी ऐसी चिंता सकारात्मक है। उनकी महाराष्ट्र के प्रति ऐसी सक्रियता, बल्कि हाल के दिनों की कतिपय अतिसक्रियता के कारण हर घटनाक्रम में राजनीति व स्वार्थ ढूंढऩे वाले समीक्षक सक्रीय हो उठे हैं। गडकरी ने जब राज्य की सिंचाई परियोजनाओं के लिए बजट में आबंटित धन राशि को अपर्याप्त बताया तो समीक्षकों के इस खास वर्ग ने उनकी अवधारणा को प्रदेश सरकार विरोधी निरुपित कर डाला। दूसरे शब्दों में कहें तो सिंचाई को लेकर गडकरी की चिंता को फड़णवीस सरकार विरोधी करार दे डाला। जबकि सचाई के धरातल पर तथ्य यह है कि फड़णवीस की तरह गडकरी भी विकास की एक मजबूत रीढ़़ सिंचाई को सकारात्मक व्यवहारिक दिशा देने को उत्सुक हैं। इसी चिंता के अंतर्गत उन्होंने टिप्पणी कर डाली थी कि सिंचाई के मद में एक छोटे से राज्य तेलंगाना में जहां 25 हजार करोड़ का बजट प्रावधान रखा है, वहीं महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में यह प्रावधान मात्र 7 हजार करोड़ का है। महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने इस मुद्दे पर स्थिति साफ करते हुए यह तय्थ सार्वजनिक किया कि वस्तुत: सिंचाई व इससे जुड़ी योजनाओं पर 12 हजार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च की जा रही है। मुनगंटीवार ने विस्तार में सिंचाई संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में राज्य सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदमों की जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि धनराशि के अभाव में किसी भी योजना का क्रियान्वयन नहीं रूकेगा। उन्होंने धनराशि के आबंटन और शत-प्रतिशत उपलब्धता को भी चिंहित किया। मुनगंटीवार के स्पष्टीकरण के बाद लोग आश्वस्त हो गये कि राज्य सरकार सिंचाई योजनाओं के क्रियान्वयन में कोई कोताही नहीं बरत रही है।
नितिन गडकरी का आशय कभी आलोचना का नहीं था। उन्होंने अपनी जानकारी और गणित के आधार पर राज्यहित में सिंचाई को लेकर पीड़ा व्यक्त की थी, नीयत साफ थी। उनका आशय ध्यानाकर्षण था। शत-प्रतिशत एक शुभचिंतक के रूप में उन्होंने फड़णवीस सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। जानकार पुष्टि करेंगे कि नितिन गडकरी एक सामान्य राजनेता से बिलकुल पृथक व्यवहारिक विकास पुरुष हैं। उसी प्रकार मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस भी सत्ता के चुंबकीय आकर्षण से दूर जनहितकारी राजनीति के पक्षधर रहे हैं। प्रदेश में किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर उन्होंने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए जो कदम उठाए उसके दूरगामी सुपरिणाम तय हैं। कथित सस्ती राजनीतिक लोकप्रियता के लिए तात्कालिक लुभावने कदम उठाने से इनकार कर फड़णवीस ने किसान और कृषि हित में लाभकारी योजनाओं को मूर्त रुप देने की दिशा में कदम उठाए हैं। किसान, कृषि, सिंचाई के मोर्चे पर गडकरी और फड़णवीस की सोच एक है। राजनीतिक गुटबाजी के पक्षधर नहीं चाहते कि महाराष्ट्र के ये दो दिग्गज समान सोच के साथ समान पथ पर कदमताल करेें। गडकरी-फड़णवीस की जोड़ी से सिर्फ महाराष्ट्र को ही नहीं, भारत राष्ट्र को भी अनेक आह्लादकारी अपेक्षाएं हैं। पक्षपाती मीडिया के कुछ हस्ताक्षरों के सहयोग से ये तत्व दोनों के बीच मतभेद पैदा करने पर उतारू हैं। जबकि दोनों को नजदीक से जानने वाले गडकरी-फड़णवीस परिवार के बीच अटूट संबंधों की पुष्टि करेेंगे। राजनीति के क्षेत्र में भी दोनों के संबंध न केवल विचारधारा आधारित हैं, बल्कि भावनात्मक भी। बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े देवेंद्र के पिता गंगाधरराव फड़णवीस ही नितिन गडकरी को राजनीति के क्षेत्र में लेकर आये थे। तत्कालीन विधान परिषद सदस्य रामजीवन चौधरी ने भी गडकरी के पक्ष में सकारात्मक भूमिका निभाई थी। और, युवा देवेंद्र फड़णवीस को राजनीति की जमीन उपलब्ध कराने में नितिन गडकरी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। सबसे कम उम्र में नागपुर के महापौर बनने वाले देवेंद्र फड़णवीस को नितिन गडकरी का निर्णायक समर्थन मिला था । पिछले लोकसभा और विधान सभा चुनाव में दोनों ने एक-दूसरे के पक्ष में जीत के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी थी। केंद्रीय मंत्री के रूप में गडकरी और प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में देवेंद्र फड़णवीस दोनों को प्रदेश के विकास के मार्ग पर कंधे से कंधे मिला कदमताल करते पूरा प्रदेश देख रहा है। इस पाश्र्व में दोनों के बीच मतभेद पैदा करने के कुत्सित प्रयास को तत्काल जमींदोज कर दिया जाये। हालांकि आवश्यकता नहीं है, फिर भी बेहतर होगा कि इस दिशा में पहल गडकरी और फड़णवीस स्वयं करें। शुभचिंतक के रूप में सुझावों को आलोचना मान संदेश प्रसारित करने वाले तत्व भी अपने पैर पीछे खींच लें। अन्यथा एक दिन उन्हें चौहारे पर नग्नावस्था में अपनी भूल के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ेगी।
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