centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Friday, July 1, 2016

स्पष्टवादी राहुल बजाज! सलाम राहुल बजाज!!

सहज नहीं, अत्यंत ही असहज है मुद्दा! सभी के लिए गंभीर चिंतन का विषय। 1975 के जून माह में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा के बाद देश के एक प्रमुख उद्योगपति के नेतृत्व में 1-सफदरजंग, नई दिल्ली (तत्कालीन प्रधानमंत्री निवास) पर आपातकाल के समर्थन में 'मार्च' देश देख चुका है। आज जून 2016 में एक अन्य प्रमुख उद्योगपति को यह बताते हुए देश देख रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ मंत्रियों की कमजोरी व अनुभवहीनता के कारण सत्ता प्रधानमंत्री तक सिमट गई है। लोकतांत्रिक भारत के लिए यह एक नया किंतु सुखद घटना विकासक्रम है। चाटुकारिता की जगह स्पष्टवादिता लोकतंत्र को मजबूत करती है। तब 1975 में प्रदर्शन चाटुकारिता आधारित था, आज मंतव्य स्पष्टवादिता आधारित है। जीवंत  लोकतंत्र की यह एक उल्लेखनीय पहल है।
कुछ दिनों पूर्व गोदरेज उद्योग समूह के प्रधान आदी गोदरेज ने सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हुए कतिपय सार्थक सुझाव दिए थे। राष्ट्रीय स्तर पर उनकी टिप्पणी पर अनुकूल-प्रतिकूल चर्चाएं हुईं। लेकिन अब बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज ने यह टिप्पणी कर राजनीतिक सनसनी पैदा कर दी है कि कुछ कमजोर मंत्रियों की वजह से सत्ता प्रधानमंत्री तक सिमट गई है। आज जब भारत उद्योग व्यापार के क्षेत्र में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर विश्व बाजार को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, वैश्विक स्पर्धा को नया आयाम दे रहा है, राहुल बजाज की टिप्पणी प्रधानमंत्री व उनके सलाहकारों के लिए एक बड़ा इशारा है। वाणी से उत्पन्न वैचारिक क्रांति के लिए भी राहुल बजाज ने विषय प्रदान किया है। बजाज की टिप्पणी को निश्चय ही राजनीतिक नहीं माना जा सकता। भारतीय अर्थव्यवस्था के एक प्रमुख स्तंभ राहुल बजाज के शब्दों में निहीत संदेश और पीड़ा पर मंथन आवश्यक है। जब तक सत्ता स्थिर व मजबूत नहीं होती देश का अपेक्षित विकास हो ही नहीं सकता। संख्याबल के आधार पर सरकार की स्थिरता पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते। किंतु, सरकार की मजबूती पर संदेह अकारण नहीं। यहां हम अन्य बातों को छोड़ राहुल बजाज द्वारा उद्धृत वजह 'कमजोर मंत्री' को चिन्हित करना चाहेंगे। यह शत प्रतिशत सही है कि कुछ अनुभवहीन मंत्रियों के कारण केंद्र सरकार द्वारा घोषित अनेक योजनाएं अभी भी क्रियान्वयन के स्तर पर लटकी पड़ी हैं  या फिर कुछ योजनाओं के 'सु-फल' संदिग्ध हैं।  मोदी सरकार का दो साल का कार्यकाल इसका प्रमाण है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित अनेक कल्याणकारी लाभदायक योजनाओं का क्रियान्वयन या तो खटाई में पड़ा है या फिर अपेक्षित गति प्राप्त नहीं कर पा रहा है। कुछ मंत्री या मंत्रालयों को छोड़ दें तो अधिकांश मंत्री और मंत्रालय सुस्त ही नजर आएंगे। इस घातक 'शिथिलता' का इलाज प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं।
अपनी स्पष्टवादिता में निहीत खतरे के प्रति भी राहुल बजाज सचेत हैं। अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा भी है कि अगर मैं यह कहूं कि यह एक व्यक्ति (मोदी) की सरकार है तो मैं परेशानी में आ जाऊंगा। हालांकि बजाज यह टिप्पणी करने से नहीं चुके हैं कि 2014 के चुनाव में एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी की जीत हुई थी, पार्टी की नहीं। लोकतांत्रिक भावना का आदर करते हुए हम यह विश्वास कर सकते हैं कि राहुल बजाज की टिप्पणी को स्वयं प्रधानमंत्री सकारात्मक दृष्टि से देखेंगे, नकारात्मक नहीं।

No comments: