centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Friday, July 29, 2016

सलमान: कटघरे में न्यायपालिका


'दबंग' और 'सुल्तान' की ख्याति अर्जित कर चुके फिल्म अभिनेता सलमान खान का मामला अब न्यायपालिका की विश्वसनीयता के साथ जुड़ गया है। पुलिस और जांच एजेंसियां भी कटघरे में हैं। लोकतांत्रिक भारत में 'न्याय मंदिर' की विश्वसनीयता को कोष्ठक में रखने को हम तैयार नहीं। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा अंतत: इसी न्याय मंदिर से अपेक्षित है। इस पाश्र्व में जब न्यायपालिका पर उंगली उठती है तो पूरा का पूरा देश पीड़ादायक अवस्था में चला जाता है।
 मुंबई में जब फुटपाथ पर रात्रि में सो रहे कुछ लोगों को सलमान द्वारा कुचलकर मार दिये जाने के आरोप में जिस प्रकार पहले निचली अदालत ने सजा दी और फिर आनन-फानन में उसी दिन बंबई उच्च न्यायालय ने सजा पर रोक लगाते हुए सलमान को जमानत पर बरी कर दिया और अंतत: निचली अदालत के फैसले को निरस्त करते हुए दोषमुक्त करार दे दिया गया, संदेह तब भी पैदा हुआ था। ताजातरीन राजस्थान में काले हिरण के शिकार के मामले में भी निचली अदालत द्वारा सजा पाये सलमान को जिस प्रकार जोधपुर उच्च न्यायालय ने दोषमुक्त करार कर बरी कर दिया, लोगबाग अचंभित हैं। दोनों मामले में चूंकि अब सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की अपेक्षा है, फिलहाल उच्च न्यायालयों के आदेश पर कोई प्रतिकूल टिपण्णी न करते हुए हम यह कहने को मजबूर हैं कि इन दोनों मामलों में न्याय की अवधारणा कि 'न्याय न केवल हो, बल्कि होता हुए दिखे भी' लांछित हुई है। उच्च न्यायालयों द्वारा सलमान को संदेह का लाभ दिये जाने पर संदेह प्रकट किया जाना स्वभाविक है।
ध्यान रहे, दोनों मामलों में संबंधित उच्च न्यायालयों ने प्रमुख गवाहों के बयानों की अनदेखी की। दिलचस्प यह कि जिन बयानों के आधार पर निचली अदालतों ने सलमान खान को दोषी पाया था, उन्हीं बयानों के आधार पर उच्च न्यायालयों ने सलमान को दोषमुक्त करार दिया। कानून अथवा न्याय के इस पेंच की गुत्थी सुलझनी ही चाहिए।
हिरण शिकार के मामले में ताजा तथ्य चौंकाने वाला है। अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया था कि प्रमुख गवाह, सलमान खान का ड्राइवर हरीश दुलानी लापता है, इसलिए अदालत में उससे पूछताछ नहीं की जा सकी। लेकिन एक हिंदी दैनिक के पत्रकार ने उस 'लापता' ड्राइवर को ढूंढ निकाला। बातचीत में ड्राइवर ने साफ-साफ कहा कि वह गायब नहीं है बल्कि उसे अदालत में बुलाया नहीं गया। ड्राइवर ने दो टूक कहा कि काले हिरण का शिकार सलमान खान ने ही किया था। सचमुच पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए यह मामला शर्म के रूप में उजागर हुआ है। कोई भी समझ सकता है कि किसी 'प्रभाव', 'दवाब' या 'प्रलोभन' के अंतर्गत जानबूझकर मुख्य गवाह ड्राइवर दुलानी को 'गायब' घोषित किया गया। जानबूझकर अदालत को गुमराह किया गया। यह आचरण स्वयं में एक संगीन अपराध है। राजस्थान गृह विभाग को इसकी अलग से जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। मुंबई पुलिस की तरह राजस्थान पुलिस ने भी सलमान खान को बचाने की कोशिश की है। मुख्य गवाह दुलानी ने कहा भी है कि सलमान खान को बचाने के लिए उसे अदालत में पेश नहीं किया गया।
अब, चूंकि महाराष्ट्र सरकार के साथ राजस्थान सरकार भी सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने जा रही है, पीडि़तों के पक्ष में न्याय की अपेक्षा की जा सकती है। ध्यान रहे, न्याय अगर होता हुआ न दिखे तो लोग यह मान लेते हैं कि सामथ्र्र्यवान कोई भी अपराध कर स्वयं को बचा लेते हैं। यह अवस्था लोकतंत्र और न्यायपालिका के माथे पर कलंक के रुप में न स्थापित हो जाये, यह सुनिश्चित करना अब न्यायपालिका के हाथों में है।

No comments: