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Friday, July 1, 2016

'सवाल भी मेरा, जवाब भी मेरा' की निंदनीय प्रस्तुति


आज जब मीडिया को बाजारू, वेश्या और चापलूस निरूपित किया जा रहा है, मुझे बरबस 'बाबूजी', लोकमत समूह के संस्थापक जवाहरलाल दर्डा, की याद आ रही है। बात 1988 की है जब हम 'लोकमत समाचार ' के प्रकाशन के उनके सपने को मूर्त रूप देने में व्यस्त थे। चूंकि 'बाबूजी' का राजनीतिक पाश्र्व था, महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार में मंत्री थे, मैं नीति को लेकर असमंजस में था। कुछ शंकाएं थीं जिनका निराकरण मैं प्रकाशन पूर्व ही चाहता था। एक दिन मैंने पूछा, 'बाबूजी, हमारी नीति क्या होगी?' बाबूजी ने प्रतिप्रश्न किया, '....  मुझे यह बताईए कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी आपकी बहुत प्रशंसा करें किंतु पाठक अस्वीकार कर दे, तो आप किसकी चिंता करेंगे?' मेरा जवाब था, ' नि:संदेह पाठकों की।' बाबूजी मुस्कुराए, बोले- 'यही हमारी नीति है। चिंता पाठकों की कीजिए, राजनेताओं की नहीं।' मैं आश्वस्त हो गया था।
किंतु आज दुखी हूं कि पत्रकारीय आत्मा व दायित्व के साथ बलात्कार करने में राजनेता सफल हैं तो इसलिए कि मीडिया संस्थान उनके लिए सुसज्जित बिस्तर उपलब्ध करा रहे हैं। कुछ अपवाद छोड़ दें तो वर्तमान की 'मीडिया' वास्तविकता यही है।  पिछले दिनों एक ऐसे ही 'पाप' का मंचन हुआ।
ऊंची 'टीआरपी' वाले अंग्रेजी के खबरिया चैनल 'टाइम्स नाऊ' पर प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 'खास बातचीत' प्रसारित की गई। चूंकि प्रधानमंत्री बनने के बाद यह पहला अवसर था कि जब नरेंद्र मोदी ने किसी खबरिया चैनल को विशेष साक्षात्कार दिया, लोग उत्सुक थे सवाल-जवाब सुनने को। प्रसारण के पूर्व कार्यक्रम को खूब प्रचारित किया गया। लोगों की उत्सुकता बढ़े इसे लेकर चैनल ने डिजिटल मीडिया के सारे मंचों का उपयोग किया। अर्नब गोस्वामी को लेकर मीडिया, दर्शक, पाठक हमेशा विभाजित रहे हैं। उनके लिए प्रशंसा और गालियों का दौर साथ-साथ चलता रहा है। चैनल के लिए प्रधानमंत्री के साक्षात्कार को उपलब्धि निरूपित कर अर्नब वाहवाही लूटने को व्यग्र थे। लेकिन अफसोस , प्रतिस्पर्धी चैनलों की बात छोड़ दें, दर्शक भी हताश-निराश हुए। पूरा का पूरा साक्षात्कार 'सवाल भी मेरे, जवाब भी मेरे' की तर्ज पर पूर्णत: प्रायोजित नजर आया। 'पेड न्यूज', 'पेड एडिट', 'पेड लीड' से आगे बढ़ते हुए 'पेड इंटरव्यू'! टिप्पणी कड़वी है किंतु , आधारहीन नहीं। सूचनाएं सार्वजनिक हो चुकी हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने अर्नब से प्रस्तावित सवाल मंगाए, उन्हें देखा, संशोधन किया, जोड़ा-घटाया और प्रधानमंत्री के जवाब लिखे गए। यही नहीं अर्नब को यह भी बताया गया कि कब  कब,  कहां-कहां उन्हें क्या टोकना है, कैसे टोकना है और क्या पूछना है? क्या इसे आमने-सामने का बेबाक साक्षात्कार कहा जा सकता है? बिलकुल नहीं! पूरा का पूरा साक्षात्कार प्रधानमंत्री के 'मन की बात' का छोटेे पर्दे पर प्रसारण सा दिखा। चैनल ने प्रधानमंत्री को मंच प्रदान किया उनके मन की बात को आम लोगों तक पहुंचाने का। आश्चर्य है कि प्रधानमंत्री ने ऐसी बातों के लिए चैनल का मंच चुना ही क्यों? जिन बातों को प्रधानमंत्री ने चैनल के माध्यम से देश-विदेश के लोगों तक पहुंचाया उसके लिए सर्वथा उपयुक्त मंच कोई मीडिया कांफ्रेंस होता। जहां देश-विदेश के विभिन्न चैनलों और समाचार पत्रों के पत्रकार मौजूद होते, लेकिन ऐसा नहीं किया गया तो संभवत: इसलिए कि प्रधानमंत्री स्वयं कतिपय असहज सवालों से बचना चाहते होंगे।
असहज सवाल से ध्यान में आया कि अर्नब गोस्वामी स्वयं कभी तीखे सवालों व दो टूक विश्लेषण के लिए जाने जाते थे। जब प्रधानमंत्री के साक्षात्कार की खबर आई तब ऐसा लगा था कि अर्नब  अपने खोजी सवालों के जरिए प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर बहुत कुछ उगलवा लेंगे। अनेक ऐसे ज्वलंत मुद्दे आज देश में मौजूद हैं जिन पर प्रधानमंत्री से सीधे सवाल किए जा सकते थे। लेकिन, 'असहाय अर्नब' ऐसा कुछ नहीं कर पाए। कुछ सवाल पूछे भी गए तो, प्रधानमंत्री के जवाब के बाद प्रतिप्रश्न नहीं पूछे गए। साफ-साफ दिख रहा था कि  प्रधानमंत्री को असहज स्थिति में डालने से अर्नब बच रहे थे। पत्रकारिता और संपादकीय दायित्व के विपरीत अर्नब का आचरण नयी पीढ़ी के पत्रकारों के लिए निराशा का संदेश दे गया।
साक्षात्कार में उन ताजा विषयों पर जोर दिया गया जिन्हें लेकर प्रधानमंत्री मोदी को देश कटघरे में खड़ा कर रहा है। प्रधानमंत्री नेे साक्षात्कार के माध्यम से अर्थात 'टाइम्स नाऊ' के मंच से एनएसजी को लेकर भारतीय कूटनीति, सक्रिय विदेशी नीति, पाकिस्तान पर भारतीय रुख और रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन जैसे मामलों पर अपने विचार तो रखे किंतु, एक साक्षात्कार में जैसे  पूरक प्रश्न पूछे जाते हैं अर्नब ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की। जबकि प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए जवाबों पर अनेक सवाल पूछे जा सकते थे। रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन के खिलाफ सुब्रमण्यम स्वामी के आक्रमण अभियान पर अर्नब ने सवाल तो पूछे किंतु, प्रधानमंत्री ने जब बगैर स्वामी का नाम लिए उन पर आक्षेप लगाए और राजन को सर्वथा योग्य और राष्ट्रभक्त बताया तब स्वाभाविक रूप से पूरक प्रश्न पूछा जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री ने आरम्भ में ही अर्थात स्वामी द्वारा राजन की आलोचना किए जाने के तत्काल बाद ही ये बातें क्यों नहीं कहीं? राजन को राष्ट्रभक्त तब क्यों नहीं बताया जब स्वामी उन्हें राष्ट्रद्रोही निरूपित कर रहे थे? और जब राजन इतने ही योग्य हैं तब उन्हें गवर्नर के रूप में दूसरा अवसर देने का निर्णय क्यों नहीं लिया गया? पूरक प्रश्न यह भी बनता था कि स्वामी की आलोचनाओं से क्षुब्ध और अपने बचाव में सरकार की ओर से किसी को सामने आता न देख जब राजन ने दूसरे कार्यकाल के लिए स्वयं को अनुपलब्ध घोषित कर दिया तब ही उनके पक्ष में प्रधानमंत्री क्यों बोल रहे हैं?
बात सिर्फराजन की ही नहीं  शत प्रतिशत सांप्रदायिक, सद्भाव बिगाडऩे हेतु भड़काऊ बयान देनेवाले कथित संतों-साध्वियों की जानकारी से स्वयं को अनजान बतानेवाले प्रधानमंत्री मोदी से पूरक प्रश्न के रूप में क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री अपने ही सहयोगियों, सांसदों को पहचानते कैसे नहीं? अर्नब को आपत्ति इस बात पर भी व्यक्त करनी चाहिए थी जब प्रधानमंत्री ने कहा कि भड़काऊ बयान देनेवालेे लोगों को ज्यादा तूल देकर उन्हें हीरो न बनाएं। साफ था कि प्रधानमंत्री नहीं चाहते कि ऐसे भड़काऊ बयानों पर मीडिया कोई विवाद पैदा करे। अर्थात उनकी उपेक्षा करे ताकि वे अपने बयानों से देश, समाज में  सांप्रदायिक सद्भाव को बेलगाम बिगाड़ते रहें। यह विश्वास करना कठिन है कि अर्नब जैसा पत्रकार इन बातों को समझ नहीं रहा हो। अर्नब के ज्ञान और तेवर के अनेक प्रशंसक मौजूद हैं। लेकिन, इस साक्षात्कार से उन्हें भी निराशा मिली है। अर्नब का पूरा का पूरा आचरण प्रधानमंत्री के एक जनसंपर्क अधिकारी की तरह रहा। इससे उत्पन्न निराशा के कारण ही वे आलोचना के शिकार हो रहे हैं। 'डिजीटल संसार ' में साक्षात्कार के द्वारा कीर्तिमान स्थापित करने का दावा करनेवाले अर्नब और चैनल 'टाइम्स नाऊ' यह न भूलें कि  किसी प्रायोजित कार्यक्रम पर अपने संसाधनों व स्त्रोतों दवारा कीर्तिमान अर्जित करना आसान है, किंतु तब आप पाठकों-दर्शकों की नजरों में घोर अविश्वसनीय बन जाते हैं। अब पसंद आपकी कि आप कथित कीर्तिमान के आग्रही बनना चाहते हैं या पत्रकारीय जगत के एक विश्वसनीय हस्ताक्षर?

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