कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने खबरिया चैनलों पर होनेवाली बहसों पर एक तल्ख टिप्पणी की है। आजाद का कहना है कि चैनलों पर चर्चा वाला जो माहौल बन गया है वह देश की बर्बादी का कारण बनेगा। हालांकि आजाद ने यह टिप्पणी कश्मीर के हालात पर की है किंतु यह प्राय: हर संदर्भ में पूरे देश के लिए लागू है। आजाद ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। विभिन्न टीवी चैनलों पर अलग - अलग क्षेत्र अथवा विधा के अतिथि विशेषज्ञों को बुलाकर ताजा घटनाओं पर बहस का एक फैशन चल पड़ा है। आरम्भिक दौर मे ंतो सबकुछ ठीकठाक था किंतु हाल के दिनों में, बल्कि और अधिक साफ-साफ कहा जाए तो केंद्र में नई सरकार के गठन के बाद चैनलों पर होनेवाली बहसें साफतौर पर 'प्रायोजित' और पूर्वाग्रही दिखती हैं। चैनलों के संपादक या कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता वृहद्तर राष्ट्र या समाजहित में नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष अथवा राजदल विशेष के हित में विषय चयन करते हैं। बहस में भाग लेने के लिए अतिथि भी अपनी सुविधानुसार ही आमंत्रित किए जाते हैं। बहस को संचालित करनेवाले या संचालित करनेवाली एंकर बिलकुल जज की भूमिका में नजर आते हैं। निष्पक्ष जज नहीं 'प्रभावित' जज। अनेक बार महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों को छोड़ महत्वहीन मुद्दों पर बहसें कराई जाती हैं। उद्देश्य होता है, किसी व्यक्ति अथवा दल विशेष की लानत मलामत या फिर अतिश्योक्ति आधारित महिमामंडन। सर्वाधिक दुखद और खतरनाक बात यह कि राष्ट्रहित को बलाए ताक रख कभी-कभी ऐसे विषयों पर बहसें कराईं जाती हैं जिनसे न केवल समाज में परस्पर सद्भाव को तोड़ा-बिखेरा जाता है बल्कि, देश-समाज में सांप्रदायिक आधार पर तनाव भी पैदा किए जाते हैं। कानून की दृष्टि से ऐसे आपराधिक आचरण का खुलेआम टीवी चैनलों पर प्रदर्शन क्या राष्ट्रद्रोह नहीं है? आम दर्शक अवाक रह जाता है, जब वह अतिथि वक्ताओं के साथ-साथ ही एंकरों को भी पक्षपाती भूमिका में देखता है। कभी-कभी तो जब कोई अतिथि वक्ता एंकर की सोच के विपरीत अपनी बातों को प्रभावी ढंग से रखने की कोशिश करता है तब या तो उसे बोलने नहीं दिया जाता या फिर इतनी टोका-टाकी की जाती है कि उसकी बात साफ-साफ दर्शकों तक पहुंच नहीं पाती। संभवत: गुलाम नबी आजाद ने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उपरोक्त टिप्पणी की होगी।
चूंकि गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर की ताजा घटनाओं के संबंध में यह टिप्पणी की है, चर्चा जरूरी है। कश्मीर की ताजा घटना अपने अतिसंवेदनशील राजनीतिक पाश्र्व के कारण अत्यंत ही खतरनाक प्रतीत होने लगी है। भारत के अनेक प्रयासों के बावजूद घाटी में आतंकवादी घटनाओं में कमी की जगह खतरनाक वृद्धि हुई है। सीमा पार पाकिस्तान प्रशिक्षित व प्रायोजित आतंकवादी घुसपैठ कर हिंसक आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। पिछले दिनों 22 वर्षीय बुरहान वाणी की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद स्वयं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने न केवल उसे शहीद घोषित किया बल्कि आतंकवादियों के विरुद्ध हमारी कार्रवाई को मानवाधिकार का उल्लंघन तक बता डाला। यह सीधे-सीधे हमारे आंतरिक मामलों में पाकिस्तान का हस्तक्षेप है। लेकिन, घाटी की वारदातों को विभिन्न चैनलों ने अपनी बहसों में कुछ इस तरह पेश किया मानो वहां युद्ध की स्थिति कायम है और विभिन्न राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक गोटियां सेंक रहे हैं। चैनलों द्वारा घाटी में शांति स्थापित करने की दिशा में संदेश न देकर भड़काऊ बहस कराए गए, कराए जा रहे हैं। पूरी घटनाओं को कुछ इस रूप में पेश किया जा रहा है मानो कश्मीर और कश्मीरी भारत से अलग हैं, उनका अलग अस्तित्व है। युवा - किशोर बेरोजगारों को गुमराह कर प्रदर्शन में शामिल कर हिंसक घटनाओं को असामाजिक तत्व अंजाम दे रहे हैं। प्रशासन, सेना और अर्धसैनिक बल अपने दायित्व का निर्वाह तो कर रहे हैं किंतु, कभी-कभी वे भी भूल जाते हैं कि घाटी की जिस धरती पर वे तैनात हैं वह धरती भारत की ही धरती है। प्रदर्शनकारी भी भारतीय ही हैं। दुखद रूप से खबरिया चैनल भी एक भारतीय की जगह कश्मीरी और भारतीय दो खेमे पैदा कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं कि प्रदर्शन में भाग ले रहे कश्मीरी युवा भ्रमित हैं उन्हें गुमराह किया गया है। वे भूल जाते हैं कि ऐसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी, बदले चरित्र के साथ होती रही हैं। कश्मीर क्षेत्र चूंकि अतिसंवेदनशील क्षेत्र है वहां के मुद्दों पर बहस अथवा समाचार प्रसारण के समय जहां चैनलों को संयम से काम लेना चाहिए वहीं वे एक पक्ष बनकर भड़काऊ भूमिका में आ जाते हैं। यह अनुचित ही नहीं अपराध है। गुलाम नबी आजाद ने बिलकुल सही कहा है कि समाचार पत्र तो फिर भी कुछ संयम बरतते हैं लेकिन, चैनल जो माहौल बना रहे हैं वे देश की बर्बादी का कारण बन सकते हैं। आजाद की इस बात से कोई भी असहम नहीं होगा कि तस्लीमा नसरीन या तारिक फतेह जैसे लोगों को क्रमश बांग्लादेश और पाकिस्तान ने तो देश निकाला दे दिया किंतु हमने उन्हें शरण ही नहीं दी बल्कि, आग व जहर उगलने की छूट भी दे दी है। तस्लीमा भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करते हुए ज्वलंत मुद्दों में पेट्रोल तेल डाल आग भड़काती रही हैं। तारिक फतेह पाकिस्तान से निष्कासित होकर भारत में शरण पाता है और हमारे देश के खबरिया चैनल उसे आरमदेह कुर्सी प्रदान करते हैं ताकि वह इस्लाम के बारे में जहर उगले। निसंदेह टीवी चैनलों का ऐसा आचरण आपत्तिजनक ही नहीं राष्ट्रहित के विरुद्ध होने के कारण राष्ट्रद्रोह सरीखा है । ये दो उदाहरण तो मामूली हैं, देश के अन्य भागों में घोर सांप्रदायिक आचरण में लिप्त लोगों को अतिथि बना चैनलों पर जो शब्द उगलवाए जाते हैं उनसे देश का सांप्रदायिक माहौल बिगड़ता रहा है। सांप्रदायिक तनावों पर होनेवाली बहसों में भी विभिन्न चैनल आग पर पानी डालने की जगह पेट्रोल तेल डालते दिख रहे हैं। यह निंदनीय है।
चूंकि गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर की ताजा घटनाओं के संबंध में यह टिप्पणी की है, चर्चा जरूरी है। कश्मीर की ताजा घटना अपने अतिसंवेदनशील राजनीतिक पाश्र्व के कारण अत्यंत ही खतरनाक प्रतीत होने लगी है। भारत के अनेक प्रयासों के बावजूद घाटी में आतंकवादी घटनाओं में कमी की जगह खतरनाक वृद्धि हुई है। सीमा पार पाकिस्तान प्रशिक्षित व प्रायोजित आतंकवादी घुसपैठ कर हिंसक आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। पिछले दिनों 22 वर्षीय बुरहान वाणी की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद स्वयं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने न केवल उसे शहीद घोषित किया बल्कि आतंकवादियों के विरुद्ध हमारी कार्रवाई को मानवाधिकार का उल्लंघन तक बता डाला। यह सीधे-सीधे हमारे आंतरिक मामलों में पाकिस्तान का हस्तक्षेप है। लेकिन, घाटी की वारदातों को विभिन्न चैनलों ने अपनी बहसों में कुछ इस तरह पेश किया मानो वहां युद्ध की स्थिति कायम है और विभिन्न राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक गोटियां सेंक रहे हैं। चैनलों द्वारा घाटी में शांति स्थापित करने की दिशा में संदेश न देकर भड़काऊ बहस कराए गए, कराए जा रहे हैं। पूरी घटनाओं को कुछ इस रूप में पेश किया जा रहा है मानो कश्मीर और कश्मीरी भारत से अलग हैं, उनका अलग अस्तित्व है। युवा - किशोर बेरोजगारों को गुमराह कर प्रदर्शन में शामिल कर हिंसक घटनाओं को असामाजिक तत्व अंजाम दे रहे हैं। प्रशासन, सेना और अर्धसैनिक बल अपने दायित्व का निर्वाह तो कर रहे हैं किंतु, कभी-कभी वे भी भूल जाते हैं कि घाटी की जिस धरती पर वे तैनात हैं वह धरती भारत की ही धरती है। प्रदर्शनकारी भी भारतीय ही हैं। दुखद रूप से खबरिया चैनल भी एक भारतीय की जगह कश्मीरी और भारतीय दो खेमे पैदा कर रहे हैं। वे भूल जाते हैं कि प्रदर्शन में भाग ले रहे कश्मीरी युवा भ्रमित हैं उन्हें गुमराह किया गया है। वे भूल जाते हैं कि ऐसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी, बदले चरित्र के साथ होती रही हैं। कश्मीर क्षेत्र चूंकि अतिसंवेदनशील क्षेत्र है वहां के मुद्दों पर बहस अथवा समाचार प्रसारण के समय जहां चैनलों को संयम से काम लेना चाहिए वहीं वे एक पक्ष बनकर भड़काऊ भूमिका में आ जाते हैं। यह अनुचित ही नहीं अपराध है। गुलाम नबी आजाद ने बिलकुल सही कहा है कि समाचार पत्र तो फिर भी कुछ संयम बरतते हैं लेकिन, चैनल जो माहौल बना रहे हैं वे देश की बर्बादी का कारण बन सकते हैं। आजाद की इस बात से कोई भी असहम नहीं होगा कि तस्लीमा नसरीन या तारिक फतेह जैसे लोगों को क्रमश बांग्लादेश और पाकिस्तान ने तो देश निकाला दे दिया किंतु हमने उन्हें शरण ही नहीं दी बल्कि, आग व जहर उगलने की छूट भी दे दी है। तस्लीमा भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करते हुए ज्वलंत मुद्दों में पेट्रोल तेल डाल आग भड़काती रही हैं। तारिक फतेह पाकिस्तान से निष्कासित होकर भारत में शरण पाता है और हमारे देश के खबरिया चैनल उसे आरमदेह कुर्सी प्रदान करते हैं ताकि वह इस्लाम के बारे में जहर उगले। निसंदेह टीवी चैनलों का ऐसा आचरण आपत्तिजनक ही नहीं राष्ट्रहित के विरुद्ध होने के कारण राष्ट्रद्रोह सरीखा है । ये दो उदाहरण तो मामूली हैं, देश के अन्य भागों में घोर सांप्रदायिक आचरण में लिप्त लोगों को अतिथि बना चैनलों पर जो शब्द उगलवाए जाते हैं उनसे देश का सांप्रदायिक माहौल बिगड़ता रहा है। सांप्रदायिक तनावों पर होनेवाली बहसों में भी विभिन्न चैनल आग पर पानी डालने की जगह पेट्रोल तेल डालते दिख रहे हैं। यह निंदनीय है।
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