90 के दशक के मध्य की बात है अंग्रेजी दैनिक 'एशियन एज' के तत्कालीन प्रधान संपादक, देश के प्रख्यात पत्रकार , अब सांसद भी एम.जे. अकबर को अवमानना के एक मामले में बम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने तलब किया। आरोप था कि उनके अखबार ने एक आपत्तजिनक, भड़काऊ खबर प्रकाशित की थी। अकबर ने अपने बचाव में दलील दी कि खबर समाचार एजेंसी 'पीटीआई' द्वारा जारी की गई, जिसे छापा गया। इस तर्क के आधार पर अकबर ने स्वयं को निर्दोष साबित करने की कोशिश की। न्यायाधीश ने इस पर टिप्पणी की थी कि ''खबर का स्त्रोत चाहे कोई भी हो, प्रकाशन के बाद जिम्मेदारी अखबार व संपादक की बनती है।'' तात्पर्य कि योग्यता के आधार पर खबरों की सचाई जांच कर ही उसे प्रकाशित की जानी चाहिए। और आशय यह भी कि जिम्मेदारी संपादक की है कि वह अवांछित खबरों के प्रकाशन की अनुमति नहीं दे।
खेद है कि आज 'मीडिया मंडी' का भरपूर 'उपयोग' ऐसी ही आपत्तिजनक, भड़काऊ खबरों के माध्यम से देश, समाज में अराजकता पैदा करने के लिए किया जा रहा है। पीड़ा तब गहरी हो जाती है जब ऐसी आपत्तिजनक कृत्य के प्रणेता 'मीडिया मंडी' के बड़े हस्ताक्षर पाए जाते हैं। खबरिया चैनल इंडिया टीवी के सर्वेसर्वा रजत शर्मा ऐसे ही एक कृत्य के दोषी के रूप में चर्चित हुए हैं। अपने रसूख और राजनीतिक पाश्र्व के कारण पिछले दिनों पद्मभूषण जैसे सम्मान से सम्मानित रजत शर्मा कभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता थे। न्यूज पोर्टल 'मीडिया बिजी' की मानें तो शर्मा को यह सम्मान उनके इसी पाश्र्व के कारण मिला।
मुंबई में तब उपेक्षित फाके की जिंदगी गुजार रहे रजत शर्मा ने जब राष्ट्रीय चैनल इंडिया टीवी को जन्म दिया तभी विवादास्पद बन गए। विद्यार्थी परिषद के घोष वाक्य ज्ञान, शील, एकता के ठीक विपरीत चैनल में उन्होंने शील के नाम पर सेक्स समस्याओं और कुछ अनजान नेताओं के अंतरंग रिश्तों के एमएमएस दिखाना शुरू कर दिया। ज्ञान का आलम यह कि इंडिया टीवी ने सबसे पहले बताया कि एलियन धरती से गाय उठाकर ले जाते हैं। और भी बहुत सारा अनाप-शनाप। और बात अगर एकता की की जाए तो जितने भी आगलगाऊ नेता हैं वे उनकी मशहूर 'आपकी अदालत' में शामिल हो कर बगैर कोई सजा पाए बरी होते रहे हैं।
बात यहीं तक होती तब भी क्षम्य होता। लेकिन, जब देश में विशेषकर उत्तर प्रदेश की आबोहवा में जहर घोलनेवाले महंत आदित्यनाथ व उनके बोल को महिमामंडित कर रजत शर्मा प्रचारित -प्रसारित करते हैं तब मीडिया मंडी' शर्मसार हो उठता है। 2014 के चुनाव के पूर्व भी इंडिया टीवी ने आदित्यनाथ को और उनकी विचारधारा को काफी प्रमुखता दी थी। अब 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए रजत शर्मा अपने इंडिया टीवी पर उन्हें बार-बार प्रस्तुत कर रहे हैं। आदित्यनाथ इस अवसर का भरपूर उपयोग घर वापसी' और लव जिहाद' जैसे मसलों पर आग उगलने के लिए करते रहे हैं। आमंत्रित दर्शकों से तालियां बटोर चैनल यह बताने की कोशिश करता है कि तालियां वस्तुत: देश भर की नुमाइंदगी करती हैं। ऐसा छल रच रजत शर्मा बाद में शांति का उपदेश देने की औपचारिता निभा महंत को बाईज्जत बरी करवा देते हैं। क्या यह 'छल' देश की जनता और स्वयं मीडिया मंडी' के साथ 'महाछल' नहीं है। पिछले दिनों जून माह में महंत आदित्यनाथ का प्रसारित एपिसोड कई बार दिखाया गया, क्यों? क्या रजत शर्मा इसके औचित्य को साबित कर सकते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी खास उद्देश्य से एक दल विशेष के 'मिशन यूपी' के कार्यक्रम को रजत शर्मा अपने चैनल के माध्यम से आगे बढ़ा रहे हैं? प्रमाण इसकी सचाई की चुगली कर रहे हैं।
मीडिया मंडी में ही इस पर प्रतिक्रिया स्वाभाविक है। कई अखबारों और चैनलों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार नदीम अख्तर ने अपनी 'फेसबुक वाल' पर इस संबंध में जो टिप्पणी की है वह पठनीय है- '' इंडिया टीवी पर रजत शर्मा वाले आपकी अदालत वाले प्रोग्राम में सांसद योगी आदित्यनाथ खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ आग उगल रहे हैं। कह रहे हैं कि तुम एक मारोगे तो हम सौ मारेंगे। मुस्लिमों को हिंदू धर्म में वापस लाएंगे, ये 'घर वापसी' है। और स्टूडियो में मौजूद जनता आदित्यनाथ की हर बात पर ताली पीट रही है। इनमें कम उम्र की युवतियां भी शामिल हैं। बड़ा अजब माहौल है। खुलेआम भारत के संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इस तरह के भड़काऊ बयान वाले प्रोग्राम को न्यूज के नाम पर प्रस्तारित करके रजत शर्मा जी क्या संदेश दे रहे हैं? 'एडिटोरियल जजमेंट' नाम की कोई चीज रह भी गई है कि नहीं इस देश में?
माना कि योगी आदित्यनाथ की जबान पर रजतजी का कंट्रोल नहीं लेकिन, ऐसे भड़काऊ जहर उगलनेवाले इंटरव्यू को प्रसारित किया जाए या नहीं ये फैसला तो रजत ले ही सकते हैं? और मेरी ये जानने की तीव्र इच्छा है कि आदित्यनाथ के संविधान विरोधी बयानों पर स्टूडियो में ताली पीटनेवाली जनता कहां से बुलाई गई थी? क्योंकि खून-खराबे की बात करनेवाले गैरजिम्मेदार आदित्यनाथ की बातों पर ताली देश का कोई सामान्य नागरिक तो नहीं ही बजा सकता। ''
जवाब पद्मभूषण रजत शर्मा को ही देना होगा। संपादक के रूप में जिम्मेदारी तो उन्हीं की बनती है!
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