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Thursday, March 17, 2016

नियम पर भारी भावना

जब  बात भावना की हो, राष्ट्रीय भावना की हो, राष्ट्रीय स्वाभिमान की हो, मन-मस्तिष्क व दिल से जुड़ी भावना की हो, तब नियम स्वत: भावना के लिए मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। यह एक पक्ष है। इससे जुड़ा दूसरा पक्ष भावना बनाम संभावना की।  संभावना खतरनाक है।
'भारत माता की जय' नहीं बोलने के दंड स्वरुप एमआईएम के विधायक वारिस पठान का महाराष्ट्र विधानसभा से निलंबन ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या नियम की अवहेलना कर भावना का सम्मान किया जा सकता है। विधानसभा अध्यक्ष ने सफाई दी है कि नियम संबंधी कोई प्रावधान नहीं होने के बावजूद उन्होंने सदन की भावना का आदर करते हुए विधायक वारिस पठान को सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया है। लोकतंत्र में विधायिक के सर्वोच्च स्थान को देखते हुए सदन की भावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आलोच्य मामले में चूंकि विधानसभा में सर्वसम्मति से निलंबन की मांग की, विधानसभा अध्यक्ष ने उसे स्वीकार किया। किंतु, एक बड़ा सवाल पैदा हो गया कि क्या भविष्य में भी नियमों को ताक पर रखकर सदन की भावना को सम्मान दिया जाता रहेगा। चूंकि, इस सवाल और उत्तर में परंपरा का समावेश है, गंभीर  चिंतन-मनन और बहस के बाद निर्णय लेना होगा। संसदीय व विधायिका मामलों से जुड़े विशेषज्ञ एकमत हैं कि वारिस पठान के निलंबन को विधानसभा के स्थापित नियम स्वीकृति प्रदान नहीं करते। विधानसभा अध्यक्ष को किसी सदस्य को निलंबित करने का अधिकार तो प्राप्त है किंतु, उसके साथ शर्तें जुड़ी हैं। नियामनुसार जब कोई सदस्य विधानसभा की कार्यवाही में व्यवधान पैदा करता है या अध्यक्ष के आदेश को मानने से इंकार करता है तब विधानसभा अध्यक्ष उसे निलंबित कर सकते हैं। वारिस पठान के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। विधानसभा में चर्चा हो रही थी, महापुरुषों के स्मारक के लिए सरकारी धन खर्च करने की। एमआईएम के एक विधायक की आपत्ति पर उत्पन्न तू-तू, मैं-मैं के बीच वारिस पठान ने शिवसेना के एक विधायक के पूछने पर जवाब दिया कि हमें 'भारत माता की जय' कहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हम संविधान के अनुसार 'जयहिंद'  बोलेंगे पर 'भारत माता की जय' नहीं। इस वक्तव्य पर सभी दल के सदस्यों ने एकमत से वारिस पठान के निलंबन की मांग की। अध्यक्ष ने ठीक ही मांग को स्वीकार कर लिया। सर्वसम्मत भावना का आदर किया उन्होंने।
'भारत माता की जय' स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों के बीच एक लोकप्रिय नारा था। यह नारा आज भी लोगों की भावना के साथ जुड़ा हुआ है। जब हम 'भारत  माता की जय' उद्घोष करते हैं तब भारत की धरती के प्रति आदर भाव प्रकट करते हैं। इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। दु:खद रूप से कतिपय अज्ञानी इस पर धर्म का मुलम्मा चढ़ा सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करते हैं। असदुद्दीन ओवैसी और वारिस पठान जब 'जयहिंद' का उद्घोष करते हैं तब 'भारत माता की जय' पर आपत्ति क्यों? देश के किसी भी नागरिक को अगर इस पर आपत्ति है तो वह निश्चय ही भारत और भारतीयता की भावनात्मक अवमानना का दोषी है। महाराष्ट्र विधानसभा में नियम के ऊपर भावना को प्रमुखता इसीलिए दी गई है। वारिस पठान हो या और कोई, सभी इस हकीकत को स्वीकार कर लें कि पहले सम्मान देश का होता है बाद में किसी सोच, विचारधारा या व्यक्ति का। 

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