मैं एक हिंदू हूं।
मैं दुर्गा का उपासक हूं।
मुझे इस पर गर्व है।
किंतु, आज मैं शर्मिंदा हूं। मेरे अंदर का हिंदू उपासक मन शर्मिंदा है। और शर्मिंदा है पूरा का पूरा भारतीय मन, जो लोकतंत्र के मंदिर 'संसद' के अंदर दुर्गा को अपमानित होते देखने को विवश हुआ। किसने किया ऐसा, क्यों हुआ ऐसा? ऊंगलियां उठ रहीं हैं देश की मानव संसाधन मंत्री स्मृति जुबीन ईरानी की ओर। क्या यह विडंबना नहीं!
अपने जमाने की सुख्यात छोटे पर्दे की बड़ी अभिनेत्री स्मृति ईरानी के लिए पटकथा -संवाद आखिर कौन लिख रहा है? पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के छात्र रोहित की आत्महत्या और दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रांगण में कथित देश-द्रोही गतिविधियों पर विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए ईरानी की आक्रामकता, वकृत्व- कला और भाव-भंगिमा को प्रशंसाएं तो मिलीं, किंतु दुर्गा-महिषासुर प्रसंग ने उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया।
पूरा देश हतप्रभ है कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति, आस्था और निजता के नाम पर देश में आखिर ये हो क्या रहा है? लोकतंत्र के मंदिर- संसद- में दुर्गा अपमान और सड़क से मिल रही चुनौती के खतरनाक स्वर! विस्मयकारी ही नहीं, पूर्वाभास हैं आने वाले अराजक दिनों की। अगर ऐसा हुआ तो तय मानिए, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत देश एक अराजक देश बन कर रह जाएगा। और इसके लिए जिम्मेदार होंगे हमारे सभी राजदल और कथित राजनेता। बावजूद इसके मौजूद जन-शक्ति से आशावान हूं कि खरोंचें तो लगेंगी किंतु, जनता टूटने-बिखरने नहीं देगी।
सड़क से संसद तक के शोर-शराबे के बीच देश का चिंतक वर्ग स्तब्ध है कि ऐतिहासिक जनादेश प्राप्त भाजपा की नींव में मट्ठा डालने का काम स्वयं कुछ भाजपायी ही कैसे और क्यों कर रहे हैं? दलीय प्रतिबद्धता या विचारधारा के आधार पर कोई खंडन-मंडन ना करे। इस कड़वे सच पर मंथन कर, दोषी की पहचान कर ही 'भाजपा-गृह' को सुरक्षित रखा जा सकेगा। जब परिवार बड़ा होता है तब मतभेद के साथ-साथ विघ्नसंतोषी भी पैदा हो जाते हैं। ऐसे में शांति और अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी परिवार के मुखिया की होती है। भाजपा नेतृत्व इस आवश्यकता को अच्छी तरह समझ ले।
भाजपा को सत्ता सौंपने वाली जनता का बड़ा वर्ग अगर आज यह पूछ रहा है कि आखिर भाजपा को हो क्या गया है, तो इसकी चीर-फाड़ जरूरी है। भाजपा में तो योग्य, समझदार, ईमानदार चिंतकों की एक लंबी पंक्ति है। क्या कर रहे हैं ये लोग? कहीं ऐसा तो नहीं कि परस्पर संवाद-हीनता की स्थिति पैदा हो गई है। या फिर घर के अंदर कोई ऐसा गुट सक्रिय हो गया है, जो किन्हीं अनजान कारणों से पार्टी नींव को कमजोर कर रहा है। शायद सच यही है।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद जरूरी है कि विवाद के पटकथा-संवाद लेखक और निर्देशक की पहचान की जाए। स्मृति ईरानी ने संसद के अंदर जिन तथ्यों के आधार पर चिल्ला-चिल्लाकर विपक्ष को शांत करने की कोशिश की, उनमें से अधिकांश तथ्य गलत निकले। रोहित आत्महत्या पर उन्होंने आक्रामक और भावुक शब्दावली के मिश्रण से आरोप लगाया कि आत्महत्या के बाद उसके पास किसी डॉक्टर या पुलिस को फटकने नहीं दिया गया। किसी ने उसकी श्वास वापसी की कोशिश नहीं की। ईरानी द्वारा दी गई यह एक ऐसी जानकारी थी जो पूरे मामले की जांच की दिशा को प्रभावित कर सकती थी। लेकिन वहां की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजश्री का बयान आ गया कि वे तुरंत घटनास्थल पर पहुंची थीं । उन्होंने रोहित के शरीर की परीक्षा कर उसे मृत घोषित किया, मृत्यु प्रमाणपत्र भी दिया था। सबूत उपलब्ध है कि तब मौके पर पुलिस भी पहुंची थी। निश्चय ही गलत जानकारी के आधार पर संवाद लेखक ने केंद्रीय मंत्री के लिए संवाद लिखे। यह एक ऐसी चूक है जो केंद्रीय मंत्री को संसद और पूरे देश को गुमराह करने का आरोपी बनाती है। यही नहीं, बांग्लादेश की ऑक्सफोर्ड शोधकर्ता शर्मिला बोस ने भी स्मृति ईरानी पर गलतबयानी के आरोप लगाए हैं। सुश्री बोस का आरोप है कि भारतीय संसद के अंदर स्मृति ईरानी ने उनके नाम और उनकी पुस्तक 'डेड रिकॉनिंग : मेमोरीज ऑफ द 1971 बांग्लादेश वॉर' का उल्लेख करते हुए वैसी बातें संसद में बताई जो उनके पुस्तक का अंश है ही नहीं। साफ है कि किसी ने या तो बगैर पढ़े या फिर जान-बूझकर स्मृति ईरानी को गुमराह किया। हैदराबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति को लिखे पत्र के संबंध में भी ईरानी की गलतबयानी साबित हो चुकी है। राज्यसभा में बहस के दौरान ईरानी ने मायावती को ऊंची आवाज में शांत करते हुए कहा था कि'...अगर आप मेरी बातों से संतुष्ट नहीं होंगी, तो मैं अपना सिर काट आपके चरणों में रख दूंगी।'
दूसरे दिन जब मायावती ने ईरानी की बातों से असंतुष्टि जाहिर करते हुए ईरानी को चुनौती दी कि वे अपना वादा पूरा करें, तो आक्रोश भरे शब्दों में ईरानी ने बसपा कार्यकर्ताओं का आवाहन किया कि वे आएं और उनका सिर काटने की हिम्मत दिखाएं।
बिल्कुल हास्यास्पद प्रतिक्रिया थी ईरानी की ! वादा तो खुद से सिर काट चरणों में रखने का था। कांग्रेस के एक नेता कपिल सिब्बल की बात यहां सही लग रही है कि 'संसद एक थियेटर बन गई है।'
हद तो तब हो गई जब जेएनयू प्रकरण पर चर्चा के दौरान ईरानी ने एक मुद्रित पर्चे को संसद में पढ़ते हुए बताया कि परिसर के अंदर मां दुर्गा को '.....' (अश्लील संबोधन) और महिषासुर को पूजने की बात कही गई है। घोर आपत्तिजनक है यह, संसद के बाहर किसी सिरफिरे के पर्चे में मुद्रित अश्लील व आपत्तिजनक शब्दों को मंत्री ईरानी ने पढ़ा क्यों? अध्यक्ष ने पर्चे को पढऩे की इजाजत कैसे दी? ईरानी, संसद में मां दुर्गा के विषय में अश्लील संबोधन की जानकारी दे पूरे देश में दुर्गा के विषय में गलत प्रचार करने की अपराधी बन गर्इं। एक स्थापित परंपरा है कि आपत्तिजनक अथवा अश्लील शब्दों को हूबहू न तो लिखा जाए, न तो बोला जाए। अगर बताना जरूरी ही हो तो संकेत का सहारा लिया जाए। ऐसे 'शब्द' उच्चारित नहीं किए जाते। विशेषकर जब प्रसंग 'धार्मिक आस्था' का हो। ईरानी यहां स्वयं मां दुर्गा के अपमान की अपराधी बन गर्इं। लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र के मंदिर में मां दुर्गा को लांछित किया गया। प्रभु निंदा का अक्षम्य अपराध है यह!
चूंकि यह सब कुछ घटित हुआ उस भारतीय जनता पार्टी के मंच से जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के प्रति समर्पित है, इस बात की पूरी पड़ताल जरूरी है कि स्वयं के पैरों में कुल्हाड़ी मारनेवाली ऐसी घटना का असली जिम्मेदार कौन है? अगर यह सामान्य मानवीय भूल है, अति उत्साह व अल्पज्ञान-अद्र्धज्ञान की परिणति है, तो इन्हें स्पष्ट किया जाए। सार्वजनिक क्षमा मांगी जाए। और अगर किसी अदृश्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुनियोजित 'मंचन' है यह, तब देश यह मानने पर विवश हो जाएगा कि भारत में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं, कुछ असामान्य घटित होनेवाला है।
मैं दुर्गा का उपासक हूं।
मुझे इस पर गर्व है।
किंतु, आज मैं शर्मिंदा हूं। मेरे अंदर का हिंदू उपासक मन शर्मिंदा है। और शर्मिंदा है पूरा का पूरा भारतीय मन, जो लोकतंत्र के मंदिर 'संसद' के अंदर दुर्गा को अपमानित होते देखने को विवश हुआ। किसने किया ऐसा, क्यों हुआ ऐसा? ऊंगलियां उठ रहीं हैं देश की मानव संसाधन मंत्री स्मृति जुबीन ईरानी की ओर। क्या यह विडंबना नहीं!
अपने जमाने की सुख्यात छोटे पर्दे की बड़ी अभिनेत्री स्मृति ईरानी के लिए पटकथा -संवाद आखिर कौन लिख रहा है? पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के छात्र रोहित की आत्महत्या और दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के प्रांगण में कथित देश-द्रोही गतिविधियों पर विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए ईरानी की आक्रामकता, वकृत्व- कला और भाव-भंगिमा को प्रशंसाएं तो मिलीं, किंतु दुर्गा-महिषासुर प्रसंग ने उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया।
पूरा देश हतप्रभ है कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति, आस्था और निजता के नाम पर देश में आखिर ये हो क्या रहा है? लोकतंत्र के मंदिर- संसद- में दुर्गा अपमान और सड़क से मिल रही चुनौती के खतरनाक स्वर! विस्मयकारी ही नहीं, पूर्वाभास हैं आने वाले अराजक दिनों की। अगर ऐसा हुआ तो तय मानिए, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत देश एक अराजक देश बन कर रह जाएगा। और इसके लिए जिम्मेदार होंगे हमारे सभी राजदल और कथित राजनेता। बावजूद इसके मौजूद जन-शक्ति से आशावान हूं कि खरोंचें तो लगेंगी किंतु, जनता टूटने-बिखरने नहीं देगी।
सड़क से संसद तक के शोर-शराबे के बीच देश का चिंतक वर्ग स्तब्ध है कि ऐतिहासिक जनादेश प्राप्त भाजपा की नींव में मट्ठा डालने का काम स्वयं कुछ भाजपायी ही कैसे और क्यों कर रहे हैं? दलीय प्रतिबद्धता या विचारधारा के आधार पर कोई खंडन-मंडन ना करे। इस कड़वे सच पर मंथन कर, दोषी की पहचान कर ही 'भाजपा-गृह' को सुरक्षित रखा जा सकेगा। जब परिवार बड़ा होता है तब मतभेद के साथ-साथ विघ्नसंतोषी भी पैदा हो जाते हैं। ऐसे में शांति और अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी परिवार के मुखिया की होती है। भाजपा नेतृत्व इस आवश्यकता को अच्छी तरह समझ ले।
भाजपा को सत्ता सौंपने वाली जनता का बड़ा वर्ग अगर आज यह पूछ रहा है कि आखिर भाजपा को हो क्या गया है, तो इसकी चीर-फाड़ जरूरी है। भाजपा में तो योग्य, समझदार, ईमानदार चिंतकों की एक लंबी पंक्ति है। क्या कर रहे हैं ये लोग? कहीं ऐसा तो नहीं कि परस्पर संवाद-हीनता की स्थिति पैदा हो गई है। या फिर घर के अंदर कोई ऐसा गुट सक्रिय हो गया है, जो किन्हीं अनजान कारणों से पार्टी नींव को कमजोर कर रहा है। शायद सच यही है।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद जरूरी है कि विवाद के पटकथा-संवाद लेखक और निर्देशक की पहचान की जाए। स्मृति ईरानी ने संसद के अंदर जिन तथ्यों के आधार पर चिल्ला-चिल्लाकर विपक्ष को शांत करने की कोशिश की, उनमें से अधिकांश तथ्य गलत निकले। रोहित आत्महत्या पर उन्होंने आक्रामक और भावुक शब्दावली के मिश्रण से आरोप लगाया कि आत्महत्या के बाद उसके पास किसी डॉक्टर या पुलिस को फटकने नहीं दिया गया। किसी ने उसकी श्वास वापसी की कोशिश नहीं की। ईरानी द्वारा दी गई यह एक ऐसी जानकारी थी जो पूरे मामले की जांच की दिशा को प्रभावित कर सकती थी। लेकिन वहां की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. राजश्री का बयान आ गया कि वे तुरंत घटनास्थल पर पहुंची थीं । उन्होंने रोहित के शरीर की परीक्षा कर उसे मृत घोषित किया, मृत्यु प्रमाणपत्र भी दिया था। सबूत उपलब्ध है कि तब मौके पर पुलिस भी पहुंची थी। निश्चय ही गलत जानकारी के आधार पर संवाद लेखक ने केंद्रीय मंत्री के लिए संवाद लिखे। यह एक ऐसी चूक है जो केंद्रीय मंत्री को संसद और पूरे देश को गुमराह करने का आरोपी बनाती है। यही नहीं, बांग्लादेश की ऑक्सफोर्ड शोधकर्ता शर्मिला बोस ने भी स्मृति ईरानी पर गलतबयानी के आरोप लगाए हैं। सुश्री बोस का आरोप है कि भारतीय संसद के अंदर स्मृति ईरानी ने उनके नाम और उनकी पुस्तक 'डेड रिकॉनिंग : मेमोरीज ऑफ द 1971 बांग्लादेश वॉर' का उल्लेख करते हुए वैसी बातें संसद में बताई जो उनके पुस्तक का अंश है ही नहीं। साफ है कि किसी ने या तो बगैर पढ़े या फिर जान-बूझकर स्मृति ईरानी को गुमराह किया। हैदराबाद विश्वविद्यालय के उपकुलपति को लिखे पत्र के संबंध में भी ईरानी की गलतबयानी साबित हो चुकी है। राज्यसभा में बहस के दौरान ईरानी ने मायावती को ऊंची आवाज में शांत करते हुए कहा था कि'...अगर आप मेरी बातों से संतुष्ट नहीं होंगी, तो मैं अपना सिर काट आपके चरणों में रख दूंगी।'
दूसरे दिन जब मायावती ने ईरानी की बातों से असंतुष्टि जाहिर करते हुए ईरानी को चुनौती दी कि वे अपना वादा पूरा करें, तो आक्रोश भरे शब्दों में ईरानी ने बसपा कार्यकर्ताओं का आवाहन किया कि वे आएं और उनका सिर काटने की हिम्मत दिखाएं।
बिल्कुल हास्यास्पद प्रतिक्रिया थी ईरानी की ! वादा तो खुद से सिर काट चरणों में रखने का था। कांग्रेस के एक नेता कपिल सिब्बल की बात यहां सही लग रही है कि 'संसद एक थियेटर बन गई है।'
हद तो तब हो गई जब जेएनयू प्रकरण पर चर्चा के दौरान ईरानी ने एक मुद्रित पर्चे को संसद में पढ़ते हुए बताया कि परिसर के अंदर मां दुर्गा को '.....' (अश्लील संबोधन) और महिषासुर को पूजने की बात कही गई है। घोर आपत्तिजनक है यह, संसद के बाहर किसी सिरफिरे के पर्चे में मुद्रित अश्लील व आपत्तिजनक शब्दों को मंत्री ईरानी ने पढ़ा क्यों? अध्यक्ष ने पर्चे को पढऩे की इजाजत कैसे दी? ईरानी, संसद में मां दुर्गा के विषय में अश्लील संबोधन की जानकारी दे पूरे देश में दुर्गा के विषय में गलत प्रचार करने की अपराधी बन गर्इं। एक स्थापित परंपरा है कि आपत्तिजनक अथवा अश्लील शब्दों को हूबहू न तो लिखा जाए, न तो बोला जाए। अगर बताना जरूरी ही हो तो संकेत का सहारा लिया जाए। ऐसे 'शब्द' उच्चारित नहीं किए जाते। विशेषकर जब प्रसंग 'धार्मिक आस्था' का हो। ईरानी यहां स्वयं मां दुर्गा के अपमान की अपराधी बन गर्इं। लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र के मंदिर में मां दुर्गा को लांछित किया गया। प्रभु निंदा का अक्षम्य अपराध है यह!
चूंकि यह सब कुछ घटित हुआ उस भारतीय जनता पार्टी के मंच से जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं के प्रति समर्पित है, इस बात की पूरी पड़ताल जरूरी है कि स्वयं के पैरों में कुल्हाड़ी मारनेवाली ऐसी घटना का असली जिम्मेदार कौन है? अगर यह सामान्य मानवीय भूल है, अति उत्साह व अल्पज्ञान-अद्र्धज्ञान की परिणति है, तो इन्हें स्पष्ट किया जाए। सार्वजनिक क्षमा मांगी जाए। और अगर किसी अदृश्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुनियोजित 'मंचन' है यह, तब देश यह मानने पर विवश हो जाएगा कि भारत में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं, कुछ असामान्य घटित होनेवाला है।
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