जेएनयू को लेकर 'मीडिया मंडी' में उठा भूचाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूरे विवाद के दौरान जो झूठ-सच परोसा गया, उनके बीच जो सच प्रमाणित हुआ वह है 'वीडियो फर्जीवाड़ा'। दिल्ली सरकार द्वारा गठित जांच समिति की रपट से यह साफ हो गया कि जिस वीडियो फुटेज के आधार पर जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया, उस वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई थी। चूंकि पूरे मामले में स्वयं दिल्ली पुलिस कटघरे में खड़ी दिखाई दी थी, केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए गए। मीडिया का एक शक्तिशाली वर्ग एकतरफा अभियान चला रहा था। सच पर परदा डाल भ्रम फैलाने की कोशिश करता रहा। दिल्ली सरकार ने जांच करवा कर दूध का दूध और पानी का पानी करने की कोशिश की है। नई दिल्ली के 'डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट' ने अपनी जांच रिपोर्ट में बगैर शब्दों को चबाए साफ कर दिया है कि कन्हैया कुमार को फंसाने के लिए मूल 'वीडियो रिकार्डिंग' से छेड़छाड़ की गई।
सत्ता सिंहासन की ओर से उपकृत फर्जीवाड़े का आरोपी टीवी चैनल अभी भी सीनाजोरी की मुद्रा में है। कह रहा है कि हमने जो दिखाया वही सच है। 'जी न्यूज' के एक 'प्रोड्यूसर' द्वारा फर्जीवाड़े का विरोध करते हुए इस्तीफा देने के बाद ही संकेत मिल गये थे कि अब फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो जाएगा। लोगों को प्रतीक्षा थी तो आगे की कार्रवाई को लेकर।
दिल्ली सरकार का आभार कि उसने आगे की कार्रवाई करते हुए उन चारों न्यूज चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का फैसला कर लिया है, जिन्होंने फर्जी वीडियो का प्रसारण कर न केवल कन्हैया कुमार को 'देशद्रोही' बल्कि जेएनयू को भी पूरे संसार में बदनाम कर डाला। अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने अपने विधि विभाग को चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दे दिया है। परंतु दिल्ली सरकार की 'हैसियत' और चैनलों की 'विशेष हैसियत' के आलोक में कार्रवाई के अंजाम को लेकर संशय बना हुआ है।
सत्ता के निकट बल्कि यूं कहिए कि सत्ता के हाथों बिक चुके इन चैनलों के संचालक, पत्रकार कन्हैया कुमार और जेएनयू के खिलाफ एकजुट हो चुके हैं। जेएनयू के रजिस्ट्रार भूपिंदर जुत्शी की ताजा रिपोर्ट प्रमाण है कि कन्हैया और उसके संगठन को फांसने के लिए ये तत्व कोई कोर कसर नहीं छोडऩे वाले हैं।
अगर 'जी न्यूज' सहित चार खबरिया चैनलों के खिलाफ मामले दर्ज होते हैं, न्यायालय में सुनवाई होती है तो पूरा का पूरा भारतीय मीडिया एक बदनुमा 'माध्यम' के रूप में स्थापित हो जाएगा। हर दिन राजनीतिकों और बाबुओं की पोल खोलने वाला मीडिया ऐसे में अपने अंदर प्रविष्ट दागियों को बाहर निकालने का अभियान चलाए। मीडिया घरानों में शीर्ष पदों पर बैठे हुए ऐसे दागी पत्रकार अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर मालिकों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस घृणास्पद मुद्दे पर मीडिया मालिक और दागी पत्रकार एक होते हैं या अन्य ईमानदार पत्रकारों का आभा मंडल मालिकों को सुबुद्धि देते हुए दागियों के खिलाफ सही रास्ते पर ले आएगा? यह नहीं भूला जाना चाहिए कि मीडिया मात्र एक व्यावसायिक उद्यम नहीं है, बल्कि संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में स्थापित लोकतंत्र का मजबूत प्रहरी भी है। निज स्वार्थ हेतु स्वयं को बिकाऊ बना बैठे मुठ्ठी भर संचालक या पत्रकार संपूर्ण मीडिया जगत को दागदार बना पाएंगे? इस पर सहसा विश्वास नहीं होता।
सत्ता सिंहासन की ओर से उपकृत फर्जीवाड़े का आरोपी टीवी चैनल अभी भी सीनाजोरी की मुद्रा में है। कह रहा है कि हमने जो दिखाया वही सच है। 'जी न्यूज' के एक 'प्रोड्यूसर' द्वारा फर्जीवाड़े का विरोध करते हुए इस्तीफा देने के बाद ही संकेत मिल गये थे कि अब फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हो जाएगा। लोगों को प्रतीक्षा थी तो आगे की कार्रवाई को लेकर।
दिल्ली सरकार का आभार कि उसने आगे की कार्रवाई करते हुए उन चारों न्यूज चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का फैसला कर लिया है, जिन्होंने फर्जी वीडियो का प्रसारण कर न केवल कन्हैया कुमार को 'देशद्रोही' बल्कि जेएनयू को भी पूरे संसार में बदनाम कर डाला। अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने अपने विधि विभाग को चैनलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का निर्देश दे दिया है। परंतु दिल्ली सरकार की 'हैसियत' और चैनलों की 'विशेष हैसियत' के आलोक में कार्रवाई के अंजाम को लेकर संशय बना हुआ है।
सत्ता के निकट बल्कि यूं कहिए कि सत्ता के हाथों बिक चुके इन चैनलों के संचालक, पत्रकार कन्हैया कुमार और जेएनयू के खिलाफ एकजुट हो चुके हैं। जेएनयू के रजिस्ट्रार भूपिंदर जुत्शी की ताजा रिपोर्ट प्रमाण है कि कन्हैया और उसके संगठन को फांसने के लिए ये तत्व कोई कोर कसर नहीं छोडऩे वाले हैं।
अगर 'जी न्यूज' सहित चार खबरिया चैनलों के खिलाफ मामले दर्ज होते हैं, न्यायालय में सुनवाई होती है तो पूरा का पूरा भारतीय मीडिया एक बदनुमा 'माध्यम' के रूप में स्थापित हो जाएगा। हर दिन राजनीतिकों और बाबुओं की पोल खोलने वाला मीडिया ऐसे में अपने अंदर प्रविष्ट दागियों को बाहर निकालने का अभियान चलाए। मीडिया घरानों में शीर्ष पदों पर बैठे हुए ऐसे दागी पत्रकार अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर मालिकों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस घृणास्पद मुद्दे पर मीडिया मालिक और दागी पत्रकार एक होते हैं या अन्य ईमानदार पत्रकारों का आभा मंडल मालिकों को सुबुद्धि देते हुए दागियों के खिलाफ सही रास्ते पर ले आएगा? यह नहीं भूला जाना चाहिए कि मीडिया मात्र एक व्यावसायिक उद्यम नहीं है, बल्कि संविधान के चौथे स्तंभ के रूप में स्थापित लोकतंत्र का मजबूत प्रहरी भी है। निज स्वार्थ हेतु स्वयं को बिकाऊ बना बैठे मुठ्ठी भर संचालक या पत्रकार संपूर्ण मीडिया जगत को दागदार बना पाएंगे? इस पर सहसा विश्वास नहीं होता।
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