भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को चित्त कर चुकी भाजपा अब इस हथियार का इस्तेमाल कांग्रेस के खिलाफ, चिदंबरम को सामने कर, विधानसभा चुनाव में कर रही है। इशरत मामले से घोर विवादों के घेरे में आये कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम पर उनके बेटे कार्ति के भ्रष्टाचार से भी घेरा जा रहा है। पत्नी नलिनी शारदा चिटफंड घोटाले में पहले विवादों में आ चुकी हैं।
हालांकि चिदंबरम, बेटे कार्ति पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को 'राजनीति' बताते हुए एक सिरे से खारिज कर रहे हैं, किंतु आरोपों की गंभीरता मामले को दबने नहीं दे रही है। तमिलनाडू में डीएमके के साथ गठबंधन कर राज्य में उपस्थिति दर्ज कराने को बेचैन कांग्रेस इस नये घटनाक्रम से परेशान है।
यह एक विडंबना है कि जब-जब तमिलनाडू के चुनाव रहते हैं, चिदंबरम के कारण कांग्रेस कटघरे में खड़ी कर दी जाती है। 90 के दशक में जब कांग्रेस राज्य में गैर नेहरु-गांधी नेता के नेतृत्व में बिखराव का सामना कर रही थी, एक दबंग नेता जी. के. मूपनार ने कांग्रेस छोड़कर क्षेत्रीय पार्टी 'तमिल मनिला कांग्रेस' यानि टीएमसी का गठन किया था। उस समय पी. चिदंबरम भी कांग्रेस छोड़ उनके साथ चले गये थे। वस्तुत: वह पार्टी के टूटने से ज्यादा, दबाव की राजनीति का असर था। मूपनार और उनकी टीएमसी को 1990 में तब सबक मिला, जब विधानसभा चुनाव में पी. चिदंबरम सहित वे सभी सीटें हार गये। इस करारी हार के बाद विद्रोही नेता मूपनार बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहे। बाद में उनके पुत्र वासन 'दुम दबाकर' वर्ष 2002 में कांग्रेस में लौटे।
तमिलनाडू में चूंकि पांच वर्ष के एक कार्यकाल के बाद सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। जयललिता की सत्तारुढ़ एआईडीएमके के खिलाफ करुणानिधि की डीएमके सत्ता की आस लगाए बैठा है। जयललिता की व्यक्तिगत लोकप्रियता के कारण इस बार संभवत: इतिहास दोहराया न जा सके, किंतु डीएमके आशावान है। कांग्रेस डीएमके का दामन थाम तमिलनाडू की सत्ता में भागीदार बनना चाहती है। भाजपा की उपस्थिति वैसे तमिलनाडू में ना के बराबर है। वह कांग्रेस को किसी भी कीमत पर पैर फैलाने नहीं देना चाहती। अगर डीएमके सत्ता में आई और कांग्रेस उसका भागीदार बनी तो उसका मनोवैज्ञानिक लाभ अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस को मिलेगा। इस तथ्य से परिचित भाजपा डीएमके कांग्रेस गठबंधन को रोकने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है। यही कारण है कि भाजपा नेतृत्व की ओर से जयललिता के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला जा रहा है। भाजपा ने एक रणनीति के तहत पी. चिदंबरम एवं परिवार के भ्रष्टाचार के मामलों को तूल देना शुरू कर दिया है। विदेशों में कथित रुप से चिदंबरम के बेटे कार्ति के खड़े किए गए साम्राज्य पर कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है। आरोप के अनुसार कार्ति ने विश्व के अनेक हिस्सों में अपने लिए बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है। तथा वह 14 देशों में अन्य व्यापारी गतिविधियों में शामिल है। यह जानकारी प्रर्वतन निदेशालय के छापेमारी के दौरान जब्त दस्तावेजों एवं एयर सेल-मैक्सिस घोटाले की आयकर विभाग की जांच में सामने आई है। चिदंबरम एवं उनके पुत्र सभी आरोपों को निराधार बता रहे हैं। बावजूद इसके मीडिया में प्रतिदिन चिदंबरम परिवार के कथित भ्रष्टचार की खबरों के कारण निश्चित तौर पर तमिलनाडू में चिदंबरम के साथ-साथ कांग्रेस की छवि खराब हो रही है। आने वाले दिनों में भाजपा, चिदंबरम एवं उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टचार के आरोपों को और सघन रूप में प्रचारित करने की योजना पर चल रही है।
यह एक विडंबना है कि जब-जब तमिलनाडू के चुनाव रहते हैं, चिदंबरम के कारण कांग्रेस कटघरे में खड़ी कर दी जाती है। 90 के दशक में जब कांग्रेस राज्य में गैर नेहरु-गांधी नेता के नेतृत्व में बिखराव का सामना कर रही थी, एक दबंग नेता जी. के. मूपनार ने कांग्रेस छोड़कर क्षेत्रीय पार्टी 'तमिल मनिला कांग्रेस' यानि टीएमसी का गठन किया था। उस समय पी. चिदंबरम भी कांग्रेस छोड़ उनके साथ चले गये थे। वस्तुत: वह पार्टी के टूटने से ज्यादा, दबाव की राजनीति का असर था। मूपनार और उनकी टीएमसी को 1990 में तब सबक मिला, जब विधानसभा चुनाव में पी. चिदंबरम सहित वे सभी सीटें हार गये। इस करारी हार के बाद विद्रोही नेता मूपनार बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहे। बाद में उनके पुत्र वासन 'दुम दबाकर' वर्ष 2002 में कांग्रेस में लौटे। तमिलनाडू में चूंकि पांच वर्ष के एक कार्यकाल के बाद सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। जयललिता की सत्तारुढ़ एआईडीएमके के खिलाफ करुणानिधि की डीएमके सत्ता की आस लगाए बैठा है। जयललिता की व्यक्तिगत लोकप्रियता के कारण इस बार संभवत: इतिहास दोहराया न जा सके, किंतु डीएमके आशावान है। कांग्रेस डीएमके का दामन थाम तमिलनाडू की सत्ता में भागीदार बनना चाहती है। भाजपा की उपस्थिति वैसे तमिलनाडू में ना के बराबर है। वह कांग्रेस को किसी भी कीमत पर पैर फैलाने नहीं देना चाहती। अगर डीएमके सत्ता में आई और कांग्रेस उसका भागीदार बनी तो उसका मनोवैज्ञानिक लाभ अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस को मिलेगा। इस तथ्य से परिचित भाजपा डीएमके कांग्रेस गठबंधन को रोकने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है। यही कारण है कि भाजपा नेतृत्व की ओर से जयललिता के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला जा रहा है। भाजपा ने एक रणनीति के तहत पी. चिदंबरम एवं परिवार के भ्रष्टाचार के मामलों को तूल देना शुरू कर दिया है। विदेशों में कथित रुप से चिदंबरम के बेटे कार्ति के खड़े किए गए साम्राज्य पर कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है। आरोप के अनुसार कार्ति ने विश्व के अनेक हिस्सों में अपने लिए बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है। तथा वह 14 देशों में अन्य व्यापारी गतिविधियों में शामिल है। यह जानकारी प्रर्वतन निदेशालय के छापेमारी के दौरान जब्त दस्तावेजों एवं एयर सेल-मैक्सिस घोटाले की आयकर विभाग की जांच में सामने आई है। चिदंबरम एवं उनके पुत्र सभी आरोपों को निराधार बता रहे हैं। बावजूद इसके मीडिया में प्रतिदिन चिदंबरम परिवार के कथित भ्रष्टचार की खबरों के कारण निश्चित तौर पर तमिलनाडू में चिदंबरम के साथ-साथ कांग्रेस की छवि खराब हो रही है। आने वाले दिनों में भाजपा, चिदंबरम एवं उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टचार के आरोपों को और सघन रूप में प्रचारित करने की योजना पर चल रही है।
हालांकि चिदंबरम, बेटे कार्ति पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को 'राजनीति' बताते हुए एक सिरे से खारिज कर रहे हैं, किंतु आरोपों की गंभीरता मामले को दबने नहीं दे रही है। तमिलनाडू में डीएमके के साथ गठबंधन कर राज्य में उपस्थिति दर्ज कराने को बेचैन कांग्रेस इस नये घटनाक्रम से परेशान है।
यह एक विडंबना है कि जब-जब तमिलनाडू के चुनाव रहते हैं, चिदंबरम के कारण कांग्रेस कटघरे में खड़ी कर दी जाती है। 90 के दशक में जब कांग्रेस राज्य में गैर नेहरु-गांधी नेता के नेतृत्व में बिखराव का सामना कर रही थी, एक दबंग नेता जी. के. मूपनार ने कांग्रेस छोड़कर क्षेत्रीय पार्टी 'तमिल मनिला कांग्रेस' यानि टीएमसी का गठन किया था। उस समय पी. चिदंबरम भी कांग्रेस छोड़ उनके साथ चले गये थे। वस्तुत: वह पार्टी के टूटने से ज्यादा, दबाव की राजनीति का असर था। मूपनार और उनकी टीएमसी को 1990 में तब सबक मिला, जब विधानसभा चुनाव में पी. चिदंबरम सहित वे सभी सीटें हार गये। इस करारी हार के बाद विद्रोही नेता मूपनार बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहे। बाद में उनके पुत्र वासन 'दुम दबाकर' वर्ष 2002 में कांग्रेस में लौटे।
तमिलनाडू में चूंकि पांच वर्ष के एक कार्यकाल के बाद सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। जयललिता की सत्तारुढ़ एआईडीएमके के खिलाफ करुणानिधि की डीएमके सत्ता की आस लगाए बैठा है। जयललिता की व्यक्तिगत लोकप्रियता के कारण इस बार संभवत: इतिहास दोहराया न जा सके, किंतु डीएमके आशावान है। कांग्रेस डीएमके का दामन थाम तमिलनाडू की सत्ता में भागीदार बनना चाहती है। भाजपा की उपस्थिति वैसे तमिलनाडू में ना के बराबर है। वह कांग्रेस को किसी भी कीमत पर पैर फैलाने नहीं देना चाहती। अगर डीएमके सत्ता में आई और कांग्रेस उसका भागीदार बनी तो उसका मनोवैज्ञानिक लाभ अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस को मिलेगा। इस तथ्य से परिचित भाजपा डीएमके कांग्रेस गठबंधन को रोकने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है। यही कारण है कि भाजपा नेतृत्व की ओर से जयललिता के खिलाफ कुछ भी नहीं बोला जा रहा है। भाजपा ने एक रणनीति के तहत पी. चिदंबरम एवं परिवार के भ्रष्टाचार के मामलों को तूल देना शुरू कर दिया है। विदेशों में कथित रुप से चिदंबरम के बेटे कार्ति के खड़े किए गए साम्राज्य पर कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है। आरोप के अनुसार कार्ति ने विश्व के अनेक हिस्सों में अपने लिए बहुत बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया है। तथा वह 14 देशों में अन्य व्यापारी गतिविधियों में शामिल है। यह जानकारी प्रर्वतन निदेशालय के छापेमारी के दौरान जब्त दस्तावेजों एवं एयर सेल-मैक्सिस घोटाले की आयकर विभाग की जांच में सामने आई है। चिदंबरम एवं उनके पुत्र सभी आरोपों को निराधार बता रहे हैं। बावजूद इसके मीडिया में प्रतिदिन चिदंबरम परिवार के कथित भ्रष्टचार की खबरों के कारण निश्चित तौर पर तमिलनाडू में चिदंबरम के साथ-साथ कांग्रेस की छवि खराब हो रही है। आने वाले दिनों में भाजपा, चिदंबरम एवं उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टचार के आरोपों को और सघन रूप में प्रचारित करने की योजना पर चल रही है।
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