लोकतांत्रिक भारत के संघीय ढांचे की मजबूती तथा केन्द्र-राज्यों के बीच मजबूत सौहाद्र्र्रपूर्ण संबंधों के प्रबल समर्थक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अगर उत्तराखंड प्रकरण का मंचन होता है, तब केन्द्र की नीयत और लोकतंत्र की नियति पर सवाल खड़े होंगे ही। आज से चार वर्ष पूर्व सन 2012 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 'ब्लॉग' में दिल्ली शासकों द्वारा सुनियोजित ढंग से देश के संघीय ढांचे को कमजोर किए जाने पर चिंता प्रकट की थी।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के फैसले के आलोक में प्रधानमंत्री मोदी की तब की सोच और आज की सोच में फर्क स्पष्टत: दृष्टिगत है। साफ है कि फैसला राजनीतिक था। नैनीताल उच्च न्यायालय ने अपने दो अलग-अलग आदेशों में सदन के अंदर ही शक्ति परीक्षण की जरूरत को चिन्हित किया है। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई और आदेश बाकी है समीक्षक आशान्वित हैं कि अंतत: आदेश शक्ति परीक्षण के पक्ष में ही जाएगा। जहां तक कांग्रेस के 9 बागी सदस्य के निलम्बन का सवाल है पूर्व के अदालती आदेश स्पष्ट हैं कि यह विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र का मामला है। बहरहाल अंतिम आदेश जो भी हो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा कर केंद्र सरकार ने उसी गलत परम्परा को आगे बढ़ाया है जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें करती आई थीं। भारत के संघीय ढांचे और केंद्र -राज्यों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करनेवाला केंद्र सरकार का ताजा कदम किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं दिखता।
केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा के एक महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिवसेना ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र की हत्या निरुपित किया है। शिवसेना की यह आशंका राष्ट्रीय बहस का आग्रही है कि भाजपा देश में एकदलीय शासन की चाहत रखती है। किसी भी लोकतंत्र के लिए ऐसी प्रवृत्ति खतरनाक ही है। स्वयं भाजपा के विचारक व बड़े नेता पूर्व में लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते रहे हैं। राष्ट्रहित और लोकतंत्र को सर्वोपरि माननेवाली भाजपा पर ऐसी संदेहयुक्त शंका चोट पहुंचाती है।
दु:खद है कि सत्ता स्वार्थ में अंधी हो चुकी सरकारें समय-समय पर भूल जाती हैं कि लोकतांत्रिक भारत किसी की बपौती नहीं, इस पर सिर्फ लोक अर्थात जनता का अधिकार है। उत्तराखंड में भी केन्द्र सरकार ऐसे ही दुराग्रह की अपराधी बन बैठी है।
भारत के संघीय ढांचे और केन्द्र -राज्यों के बीच सौहाद्र्रपूर्ण संबंध, संबंधी प्रधानमंत्री मोदी की सकारात्मक नीति व पहल के आलोक में स्वाभाविक सवाल खड़ा होता है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए वर्तमान भाजपा सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकार की राह पर चलना चाहती है? ध्यान रहे कांग्रेस के शासन-काल में गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के साथ ऐसे खेल खेले जाते रहे थे। छद्म कारणों को आधार बना तब राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी जाती थीं। ऐसी ही एक घटना के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय ने सदन के अंदर ही बहुमत साबित करने संबंधी फैसला सुनाया था। इसकी उपेक्षा करते हुए नई केन्द्र सरकार द्वारा कांग्रेस स्थापित गलत राह का वरण नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उसके लिए शर्मनाक साबित हुआ।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के फैसले के आलोक में प्रधानमंत्री मोदी की तब की सोच और आज की सोच में फर्क स्पष्टत: दृष्टिगत है। साफ है कि फैसला राजनीतिक था। नैनीताल उच्च न्यायालय ने अपने दो अलग-अलग आदेशों में सदन के अंदर ही शक्ति परीक्षण की जरूरत को चिन्हित किया है। हालांकि उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई और आदेश बाकी है समीक्षक आशान्वित हैं कि अंतत: आदेश शक्ति परीक्षण के पक्ष में ही जाएगा। जहां तक कांग्रेस के 9 बागी सदस्य के निलम्बन का सवाल है पूर्व के अदालती आदेश स्पष्ट हैं कि यह विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र का मामला है। बहरहाल अंतिम आदेश जो भी हो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा कर केंद्र सरकार ने उसी गलत परम्परा को आगे बढ़ाया है जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें करती आई थीं। भारत के संघीय ढांचे और केंद्र -राज्यों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करनेवाला केंद्र सरकार का ताजा कदम किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं दिखता।
केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा के एक महत्वपूर्ण सहयोगी दल शिवसेना ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र की हत्या निरुपित किया है। शिवसेना की यह आशंका राष्ट्रीय बहस का आग्रही है कि भाजपा देश में एकदलीय शासन की चाहत रखती है। किसी भी लोकतंत्र के लिए ऐसी प्रवृत्ति खतरनाक ही है। स्वयं भाजपा के विचारक व बड़े नेता पूर्व में लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते रहे हैं। राष्ट्रहित और लोकतंत्र को सर्वोपरि माननेवाली भाजपा पर ऐसी संदेहयुक्त शंका चोट पहुंचाती है।
दु:खद है कि सत्ता स्वार्थ में अंधी हो चुकी सरकारें समय-समय पर भूल जाती हैं कि लोकतांत्रिक भारत किसी की बपौती नहीं, इस पर सिर्फ लोक अर्थात जनता का अधिकार है। उत्तराखंड में भी केन्द्र सरकार ऐसे ही दुराग्रह की अपराधी बन बैठी है।
भारत के संघीय ढांचे और केन्द्र -राज्यों के बीच सौहाद्र्रपूर्ण संबंध, संबंधी प्रधानमंत्री मोदी की सकारात्मक नीति व पहल के आलोक में स्वाभाविक सवाल खड़ा होता है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए वर्तमान भाजपा सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकार की राह पर चलना चाहती है? ध्यान रहे कांग्रेस के शासन-काल में गैर-कांग्रेस शासित राज्यों के साथ ऐसे खेल खेले जाते रहे थे। छद्म कारणों को आधार बना तब राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी जाती थीं। ऐसी ही एक घटना के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय ने सदन के अंदर ही बहुमत साबित करने संबंधी फैसला सुनाया था। इसकी उपेक्षा करते हुए नई केन्द्र सरकार द्वारा कांग्रेस स्थापित गलत राह का वरण नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उसके लिए शर्मनाक साबित हुआ।
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