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Wednesday, March 23, 2016

संवेदनशील व ज्वलनशील राष्ट्रवाद

परिवर्तन के वादे के साथ केन्द्रीय सत्ता की कमान संभालनेवाले प्रधानमंत्री मोदी जब कहते हैं कि सरकार  और संगठन को विकास, विकास और सिर्फ विकास के मूलमंत्र के साथ आगे बढऩा होगा तब, एक सवाल सहज रुप से प्रकट होता है कि फिर 'वोट बैंक' की राजनीति क्यों ?
पिछले दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री द्वारा संबोधित हर शब्द विकास केन्द्रित रहा। उन्होंने बिल्कुल ठीक ही विकास को देश की सभी समस्याओं के समाधान का मूलमंत्र बताया। लेकिन ठीक इसके विपरीत बैठक में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित अन्य नेताओं ने कुछ हालिया अरुचिकर विवादों को केन्द्र में रखते हुए राष्ट्रवाद के मूलमंत्र को चिन्हित किया। परस्पर विरोधी ऐसे रुख से भ्रम की स्थिति पैदा होती है। सरकार और संगठन के चरित्र और कार्यशैली से परिचित सहमत होंगे कि ऐसा अनायास नहीं होता। गंभीर विचार मंथन के पश्चात सत्ता और संगठन के लिए ऐसी भूमिका निर्धारित की जाती है। इसे ही कहते हैं वोट की राजनीति की मजबूरी।
चूंकि, देश की जनता ऐसे परस्पर विरोधी बयान-आचरण की आदी हो चुकी है, उसे प्रधानमंत्री व अन्य नेताओं के भाषणों पर आश्चर्य नहीं हुआ। उसे इसकी चिंता भी नहीं। जनता की चिंता विकास और उससे जुड़ी अन्य क्रियाओं को लेकर है। वह जानती है कि विकास का अर्थ देश की चहुंमुखी प्रगति से जुड़ा है। विकास होगा तो खुशहाली आयेगी। खुशहाली का लाभांश हर किसी के हिस्से में जाएगा। देश की जमीनी सचाई से अच्छी तरह अवगत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकास के मूलमंत्र को चिन्हित किया है तो सोद्देश्य ! पार्टी अध्यक्ष सहित अन्य नेता जब राष्ट्रवाद को चिन्हित करते हैं तब तय मानिए कि आनेवाले विधानसभा चुनाव में पार्टी इसी मुद्दे को लेकर मैदान में उतरेगी। पिछले वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जाति-धर्म-संप्रदाय और क्षेत्रीय आवश्यकता आदि के प्रयोग विफल साबित हो चुके हैं। इस सचाई की मौजूदगी के कारण पार्टी को एक नए मुद्दे की तलाश थी। जेएनयू प्रकरण ने जिस प्रकार देशभक्ति बनाम देशद्रोही की लड़ाई छेड़ दी, भाजपा को बैठे-बिठाए राष्ट्रवाद का मुद्दा मिल गया। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका विरोध कोई भी राजदल नहीं कर सकता। सभी को इसके पक्ष में आना ही होगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रवाद की आग की लपटों में कौन झुलसता है और कौन बेदाग बाहर निकल आता है? कांग्रेस सहित अन्य दलों को इस मुद्दे की काट की तलाश न कर अपने पक्ष में भुनाने की कौशलता का प्रदर्शन करना होगा। राष्ट्रवाद एक अत्यंत ही संवेदनशील व ज्वलनशील मुद्दा है। इसका स्पर्श करते समय हाथों की सुरक्षा और स्वच्छता दोनों का खयाल रखना होगा।   

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