Sunday, April 5, 2009
'बच्चा वरुण' और पवार की चिन्ता...!
खेद है कि शरद पवार अर्धसत्य, वितंडावाद और राजनीतिक अवसरवादिता के दोषी बन गए हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए था. भारतीय राजनीति में बहुत ही ऊंचा कद है पवार का. विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गांधी को चुनौती दे कांग्रेस छोड़ देने का साहस दिखा चुके हैं वे. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सटीक व उपयोगी विचार देने वाले पवार की विद्वता भी समय-समय पर चिह्निïत होती रही है. फिर ऐसी भूल वे कैसे कर बैठे! जयप्रकाश नारायण और वरुण गांधी को लेकर आडवाणी पर ऐसा आरोप कैसे लगा दिया कि उन्होंने वरुण गांधी की तुलना जयप्रकाश नारायण से की है. राजनीति में अक्सर लोग किसी की बातों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते रहते हैं. साफ कह दूं, जनता ऐसे लोगों को हिकारत की नज़र से देखती है. पवार जैसे कद्दावर व्यक्तित्व के स्वामी के मुख से हल्की बातें शोभा नहीं देतीं. आडवाणी ने कहीं भी, कभी भी वरुण की तुलना जयप्रकाश नारायण से नहीं की है. आइए देख लें, आडवाणी ने असल में कहा था क्या? एक निजी टेलीविजन से साक्षात्कार के दौरान वरुण की गिरफ्तारी व रासुका लगाए जाने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि ''वरुण की गिरफ्तारी से आपात्काल के उन दिनों की याद ताजा हो जाती है, जब सरकार ने जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज नेताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए 'मीसा' के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया था.'' आडवाणी ने आगे यह भी कहा कि ऐन चुनाव के मौके पर वरुण पर रासुका लगा कर गिरफ्तार किया जाना अनुचित है. क्या इसे वरुण गांधी को जयप्रकाश नारायण के समकक्ष खड़ा करना माना जा सकता है? कदापि नहीं. आडवाणी ने तो तब और अब की सरकारी मंशा की चर्चा की है. शरद पवार यहां चूक कर बैठे. बल्कि उन्होंने अपने बयान से वरुण गांधी जैसे नौसिखिए को राजनीतिक क्षितिज में ऊंचा आसन दे दिया है. आडवाणी की मंशा कदापि ऐसी नहीं रही होगी. उनके शब्द गवाह हैं. जनता मीमांसा करने में सक्षम है. अगर आडवाणी ने वरुण को जयप्रकाश की बराबरी में बिठाया होता, तो देश की जनता प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री आडवाणी को अभी ही खारिज कर देती. शरद पवार बात का बतंगड़ बनाने के दोषी बन गए हैं. स्वयं को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत करने के बाद पवार को शालीनता व गंभीरता का वरण कर लेना चाहिए था. यह देश अपने 'नायक' को एक धीर-गंभीर ओजस्वी व्यक्तित्व के स्वामी के रूप में देखना चाहता है. साधारण राजनेताओं के छिछोरेपन को जनता पसंद नहीं करती. वरुण को 'छोटा बच्चा' निरूपित कर कोई टिप्पणी नहीं करने संबंधी उनकी बात सभी को जंचती, अगर वे आडवाणी-वरुण-जेपी की गलत चर्चा नहीं करते.
एक तरफ तो पवार बच्चों सरीखा आचरण बता कर वरुण प्रसंग को खारिज कर देना चाहते हैं, दूसरी ओर 'हाथ तोडऩे' संबंधी वरुण के कथित बयान की आलोचना कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश भी करते दिख रहे हैं पवार! यह निम्र स्तर की राजनीतिक अवसरवादिता है. 'बच्चा वरुण' के शब्दों का संज्ञान लेकर पवार स्वयं को 'बज्जा' बना लेंगे! हां, अगर वे किन्हीं अन्य कारणों से नेहरू-गांधी परिवार के इस 'बज्जे' को राजनीति की रोशनी से आज्छादित कर रोशन करना चाहते हों, तब बात अलग है. पवार साहब यह न भूलें कि देश की जनता सबकुछ जानती है.
5 अप्रैल 2009
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2 comments:
यदि यह पोस्ट ही आपके विचारों का प्रतिनिधित्व करती है तो आपको तटस्थ प्रेक्षक मानने वाले बडी गलती कर रहे हैं। आपकी इस पोस्ट में निरपेक्ष चिन्तन के स्थान पर, पंवार द्वारा आडवाणी पर वार करने से उपजी आपकी व्याकुलता, व्यग्रता और असहमति उजागर होती है जो आपको पक्ष बनाती हे।
आप आडवाणी को तो छूट देते हैं कि वे जेपी का उदाहरण दें और पंवार को प्रतिबन्धित करते हैं कि वे उस उदाहरण की व्याख्या अपने मतानुसार न करें। जैसी आप चाहें वैसी व्याख्या करें। आप भले ही कहें 'कदापि नहीं' किन्तु आडवाणी की बात का एक ही अर्थ है कि वे वरुण को जेपी के समकक्ष स्थापित कर रहे हैं।
आडवाणी के जिस वक्तव्य का आप बचाव कर रहे हैं उस पर आप खुद भी तो अनुमान ही लगा रहे हैं-'आडवाणी की मंशा कदापि ऐसी नहीं रही होगी।' आप अपनी वैचारिक अनिश्चितता को दूसरों पर सुनिश्चितता के रूप में आरोपित करने का 'दुराचरण' कर रहे हैं।
एक ओर तो आप कहते हैं 'जनता मीमांसा करने में सक्षम है' और 'देश की जनता सबकुछ जानती है' तो फिर आप अकारण ही यह फतवाबाजी क्यों कर रहे हैं?
यदि आप चाहते हैं कि लोग आपको निरपेक्ष समझें और तदनुसार ही आपकी बात मानें भी तो कृपया निरपेक्ष व्यवहार भी करें। आदमी को ईमानदार होना तो चाहिए ही, ईमानदार दिखना भी चाहिए। आप ईमानदार हैं या नहीं इस पर सन्देह किया जा सकता है किन्तु इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि आप ईमानदार बिलकुल ही नहीं दिख रहे हैं।
ये जेपी कौन थे भाई? पवार का कोई कद वद नहीं है | कृषि मंत्री थे | पूरा पाच साला का खाता देखा जाये तो कृषि मंत्री के रूप में कम और क्रिकेट के अध्यक्ष के रूप में ज्यादा नज़र आये | अगर उनको क्रिकेट के रिच बोर्ड पर ही समय बिताना था तो फोकट में संसद में क्यों चले गए ? उत्तर भारतियों पर हो रहे अत्याचार पर उनके मुंह से एक शब्द नहीं निकला जितना अकड़ कर वो वरुण के बारे में बोल रहे थे | कैसा कद, कौन सा कद ? ५ साल का कुछ उपलब्धि उनके कद को बढाता वो कद की बात कर सकते थे | आज की जो यंग पीढी है वो जेपी को उसी रूप में देखती है की उनके आन्दोलन के स्वरुप में लालू और रामविलास जैसे नेता उत्पन हुए | जिनको जितने के लिए फार्मूला खोजना पद रहा है | कोई एम् वाई आर पर लगा है तो कोई दल+भू+आर पर अटका हुआ है |
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