Tuesday, April 7, 2009
राबड़ी का अशोभनीय कृत्य!
और अब राबड़ी देवी! मायावती और मेनका गांधी के बाद बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी अशोभनीय आचरण के लिए कटघरे में हैं. राबड़ी न केवल बिहार की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, बल्कि उस लालू प्रसाद यादव की पत्नी हैं जो सार्वजनिक रूप से कई बार प्रधानमंत्री बनने की अपनी इच्छा जाहिर कर चुके हैं. वैसे जब राबड़ी को लालू ने अपनी जेल यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था, तब एक स्वर से सभी ने टिप्पणी की थी कि एक अशिक्षित, जाहिल, गंवार को मुख्यमंत्री बना लालू ने पूरे बिहार का अपमान किया है. लेकिन धीरे-धीरे राबड़ी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी एक अच्छी पहचान बना ली थी. सदा चुप रहने वालीं राबड़ी ने बोलना सीख लिया था, अधिकारियों से विचार-विमर्श करना सीख लिया था, आदेश जारी करना और उन्हें क्रियान्वित करवाने का माद्दा भी वे अर्जित कर चुकी थीं. उन्हें जाहिल-गंवार कहने वाले लोगों ने भी राबड़ी की प्रगति पर संतोष जाहिर किया था. फिर अचानक ऐसा क्यों हुआ कि अब वे अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए अशोभनीय, आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करने लगीं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरुद्ध अपशब्द का इस्तेमाल कर राबड़ी ने अर्जित अपनी अच्छी नई प्रतिमा को धूमिल कर डाला. चुनावी जंग में शब्द प्रहार तो स्वाभाविक है- अपशब्द मान्य नहीं. बदलती चुनावी हवा के साथ प्रत्याशियों के तेवर में बदलाव भी स्वाभाविक है- किन्तु भोंडापन स्वीकार्य नहीं. राबड़ी को इन आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की जानकारी होनी चाहिए. बिहार व लालू परिवार वैसे भी अनेक 'दोषÓ के लिए जाना जाता है. इस पाश्र्व में उचित तो यह होता कि राबड़ी एक अच्छी महिला नेत्री के रूप में जनता के बीच जातीं. विरोधियों के लिए अपशब्द नहीं, प्रशंसनीय शब्दों का इस्तेमाल करतीं. आज जब विधायिका में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण की व्यवस्था की जा रही है, वर्तमान महिला नेत्रियों से समाज आदर्श प्रस्तुत करने की अपेक्षा रखता है. ऐसे आदर्श जो राजनीति में प्रवेश की इच्छुक महिलाओं के लिए अनुकरणीय बनें, ताकि विधायिका में महिला आरक्षण का पक्ष और भी मजबूत हो सके. दु:ख है कि उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और अब बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इस अपेक्षा पर देश को निराश किया है. विलंब अभी भी नहीं हुआ है, अपनी-अपनी गलतियों को सुधार ये तीनों अभी भी आदर्श प्रस्तुत कर सकती हैं. देश की राजनीतिक स्वच्छता के लिए यह जरूरी है. माया-मेनका-राबड़ी पहल करें, देश प्रतीक्षारत है.
7 अप्रैल 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
इस समय सब अपने असली रंग दिखा रहे हैं..नेता हो या नेत्री!
जब की यही समय संयम और समझ दिखाने का है..इस बार नतीजों में बहुत उलट फेर की अपेक्षा है.इस बार मतदाता पहले से अधिक जागरूक दिखता है..मीडिया की वजह से[?]
आज रात आज तक टी वी पर दिखाए लालू जी ने अपने भाषण में [एक व्यक्ति विशेष पर अपरोक्ष]बुलडोजर चलवाने की बात कही..क्या उन पर रासुका नहीं लगना चाहिये ?अभी कानून कहाँ है?
कोई यह तो बताए कि अपशब्द क्या कहा गया?
अब तो इस तरह की भाषा बोलने का चलन हो गया है।अब देखना यह है कि वरूण की तरह इन पर क्या कार्यवाही होती है?
अखबार ना पढने वालो और चैनल ना देखने वालो के लिये अपश्ब्द की परिभाषा और श्ब्द कोष उपल्ब्ध कराये दूसरी बात राबदी देवी के लिये साला कोई गारी नही है वो तो कई बार लालू यादव को भी सरऊ या साला कर देती है :)
सीनियर इण्डिया पहले की तरह अब भी पाक्षिक ही है, साप्ताहिक नहीं। कृपया ठीक कर लें।
कार्टूनिस्ट चन्दर-http://cartoonistchander.blogspot.com
http://cartoonpanna.blogspot.com
bihar ki kathit bhades rajniti ko ganda karne men laloo ki bhoomika kam thi jo ab rabdi samne aa gayee hain? yeh sach hai ki is loksabha chunav men laloo ki party ki durgati honi hai. isi baukhlahat men rabdi anap-shnap bak rahi hain. ye ghatia, ghrinit aur nindniya hai.
Post a Comment