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Wednesday, April 14, 2010

गडकरी की हैसियत को टुटपूंजिया चुनौती!

क्षमा करेंगे, भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के समक्ष कांग्रेस ने स्वयं को हल्का साबित कर लिया, बौना साबित कर लिया। गडकरी को उनकी हैसियत बताने की कोशिश करने वाले कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का यह कथन कि गडकरी का राजनीतिक वजन अभी इतना नहीं हुआ है कि कांग्रेस मंच से उनके आरोपों का जवाब दिया जाए, तिवारी के दिमागी दिवालियेपन का सूचक है। देश के मुख्य विपक्षी दल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के समक्ष वस्तुत: खड़े होने की हैसियत भी मनीष तिवारी की नहीं है। हालांकि मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि तिवारी ने कांग्रेस नेतृत्व से ऐसी आपत्तिजनक टिप्पणी की अनुमति ली होगी। निश्चय ही उन्होंने कांग्रेस की चाटुकारिता संस्कृति के तहत अति उत्साह में कांग्रेस नेतृत्व को खुश करने की कोशिश की होगी। जैसा कि उन्होंने अमिताभ बच्चन और नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी कर की थी। राजनीति में मूल्य का ऐसा पतन! वह भी केंद्र में सत्ताधारी दल की ओर से! ऐसा नहीं होना चाहिए था। संसदीय लोकतंत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, स्वस्थ आलोचना को स्थान प्राप्त है। धरोहर के रूप में प्राप्त प्राचीन भारतीय संस्कृति गवाह है कि युद्ध की स्थिति में भी योद्धा एक-दूसरे का सम्मान करते रहे हैं। युद्ध को शक्ति व कौशल से जीतने की परंपरा रही है, छल-कपट से नहीं। विजयी पक्ष पराजित नेतृत्व को भी उसकी हैसियत के अनुसार सम्मान देता रहा है। कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी इस यथार्थ को भूल वर्तमान राजनीति में मूल्यों के हृास के प्रतीक बन गए। उन्होंने संपूर्ण कांग्रेस पार्टी एवं उसके नेतृत्व को दीन-हीन साबित कर दिया। गडकरी के राजनीतिक वजन पर सवालिया निशान लगाने की हैसियत न तो मनीष तिवारी की है और न ही उनकी पार्टी के उन नेताओं की, जिन्हें खुश करने के लिए उन्होंने ऐसी टिप्पणी की। गडकरी ने तब कुछ गलत नहीं कहा था जब उन्होंने इन्फ्रास्ट्रक्चर के मसले में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को अल्पज्ञानी बताया था। ठीक ही तो कहा था उन्होंने! कांग्रेस नेतृत्व को संभवत: इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी गडकरी के ज्ञान व विषय पर उनकी पकड़ की जानकारी नहीं है। वंशवाद की सीढ़ी पर चढ़ रहे राहुल गांधी का चरण-रज उदरस्थ करने वाले मनीष तिवारी सरीखे चाटुकार अपनी हैसियत पहचानें, अपनी औकात में रहें। जब स्वयं कांग्रेस नेतृत्व अभी गडकरी के मुद्दे पर मौन है, बारीकी से उनकी गतिविधियों का अध्ययन कर रहा है तब प्रवक्ता क्यों फट पड़े? वे तो इस तथ्य को भी भूल गए कि गडकरी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के उस अभियान की प्रशंसा की थी जिसके तहत राहुल सुदूर गांवों में पहुंच रहे हैं, दलितों की सुध ले रहे हैं। तब गडकरी ने निश्चय ही विरोध के लिए विरोध की राजनीति न कर एक उभरते युवा नेतृत्व को प्रोत्साहित किया था। स्वस्थ-स्वच्छ लोकतंत्र ऐसे ही प्रयासों का आग्रही है। मनीष तिवारी ने गडकरी को दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 'एक्सटेंशन बोर्ड' निरूपित कर घटिया मानसिकता का परिचय दिया है। उनकी यह टिप्पणी कि उस 'एक्सटेंशन बोर्ड' में भाजपा का प्लग लगा है और पार्टी यहीं से ऊर्जा प्राप्त करती है, निम्नस्तरीय है-सड़कछाप है। दूसरों की लकीर छोटी करने की जगह अपनी लकीर बड़ी करने के हिमायती गडकरी तो नहीं पूछेंगे किन्तु अन्य लोग यह अवश्य जानना चाहेंगे कि कांग्रेस मुख्यालय में किस देश का 'एक्सटेंशन बोर्ड' लगा है और उसमें विद्युत प्रवाह किस देश से होता है। बेहतर हो कांग्रेस विपक्ष का आदर करे, आलोचना करे लेकिन स्वस्थ। और घटिया राजनीति का त्याग करे। और हां, अगर गडकरी के वजन और हैसियत को कभी मापने की जरूरत पड़े तब वह किसी हैसियतदार-वजनदार को उनके सामने खड़ा करे, मनीष तिवारी जैसे टुटपंूजियों को नहीं। कांग्रेस यह न भूले कि आकाश पर थूकने वालों को अपना थूक स्वयं चाटना पड़ता है।

4 comments:

अजय कुमार झा said...

कांग्रेस की इन दिनों पौ बारह हो रही है विनोद जी , इसलिए मद में यही सब कहेंगे करेंगे न

ZEAL said...

"Straight trees are cut first"..Like Modi and Amitabh ji.

Congress will repent !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जील को दुहराता हूं..

संजय बेंगाणी said...

मद में चूर है जी. सत्ता वो भी अप्रत्याशित मिले तो नशा हो ही जाता है. पूरा भारत अपने बाप का लगता है.