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Friday, April 23, 2010

क्रिकेट हमाम के ये नंगे!

क्रिकेट की इस कालिमा ने सच पूछिए तो पूरी की पूरी केंद्र्र सरकार को नंगा कर डाला है । अब इसे कोई कथित गठबंधन युग का दुष्परिणाम कह ले या वर्तमान राजनीति में प्रविष्ट भ्रष्टाचार की अति। यह सच चिन्हित हुआ कि चरित्र, नैतिकता, मूल्य, सिद्धान्त, आदर्श, ईमानदारी सभी को हमारे राजनैतिकों ने निगल डाला है। सामने कुछ शेष है तो सत्ता लोलुप्ता, धन-लिप्सा, व्यसन और ऐश्वर्य। इसके लिए आज का हमारा कथित 'पॉलिटीशियन्स' बेशर्मों की तरह नंगा नाचने को तैयार है। आईपीएल और बीसीसीआई विवाद से निकलकर जो तथ्य बाहर आ रहे हैं वे न केवल क्रिकेट बल्कि भारतीय राजनीति के विदु्रप हो चुके चेहरे की पुष्टि कर रहे हैं। अकादमिक क्षेत्र में गौरवशाली उपलब्धियां प्राप्त शशि थरूर अगर इस विवाद की बलि चढ़े हैं, तो इन्ही कारणों से।
सत्ता लिप्सा, धन लिप्सा और कामिनी आकर्षण के वशीभूत थरूर अपने भारत देश के अपेक्षा को भूल गए थे। लेकिन थरूर इस खेल के अकेले खिलाड़ी नहीं थे। जिस प्रकार कुछ अन्य प्रभावशाली नेताओं के पांव इस दलदल में फंसे दिखने लगे हैं, उससे तो यही साबित होता है कि इन लोगों ने राजनीति और सत्ता के माध्यम से पूरे देश को 'दुष्कर्म प्रभावित' स्वरूप दे देने का ठेका ले लिया है। क्रिकेट से जुड़े गैर-खिलाड़ी शासकों ने तो ऐसा लगता है, जैसे देश के लोगों को स्थायी मूर्ख समझ लिया है। निजी संस्था भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष शशांक मनोहर, आईपीएल के चेयरमैन ललित मोदी पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने फ्रेंचाईजी के मालिकों का नाम सार्वजनिक कर अनुबंध से जुड़ी गोपनीयता का उल्लंघन किया है। भला इस थोथी दलील को कोई स्वीकार करेगा? किसकी गोपनीयता को सुरक्षित रखना चाहते हैं मनोहर, उन काले धन के निवेशकों को ही न, जिन्होंने योजना बनाकर क्रिकेट को माध्यम बना डाला काले धन को सफेद करने के लिए। क्रिकेट में सुरा-सुंदरी को प्रवेश दिला इन्होंने ही तो अय्याशी का नया मंच बनाया। ऐसे लोगों के नाम तो सार्वजनिक होने ही चाहिए। भारत सरकार ने नागरिकों को ऐतिहासिक 'सूचना का अधिकार' प्रदत कर पूरे समाज में पारदर्शिता लाने की पहल की है। ऐसे में एक निजी संस्था काले धन के संरक्षकों के हित में गोपनीयता की बात करे! यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। आईपीएल उपज है बीसीसीआई की ही। अगर ललित मोदी 'आईपीएल पाप' के दोषी हैं तब बीसीसीआई अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकता है? अब तो यह प्रमाणित हो चुका है कि ललित मोदी अर्थात आईपीएल का हर निर्णय, हर कदम के 'पार्टनर' बीसीसीआई रही है। टीमों की नीलामी के पूर्व आईपीएल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के निर्देश पर एक मंत्री की बेटी नीलामी से संबंधित जानकारियां मंत्री के निजी सचिव को मेल करती है। निजी सचिव उन जानकारियों को आगे शशि थरूर को भेज देती हैं। शशि थरूर कुछ दिलचस्पी वाले टीम को उनके मित्र के हिस्सेदारी वाली कंपनी नीलामी में खरीद लेती है। अगर गोपनीयता संबंधी शशांक मनोहर के तर्क को स्वीकार कर लिया जाए तब क्या वे बताएंगे कि मंत्री की बेटी ने गोपनीयता भंग की या नहीं। साफ है कि क्रिकेट के इस गंदे तालाब में सभी के सभी नंगे उतर अठखेलियां कर रहे हैं। इन्हें बेनकाब करने भारत सरकार ने पहल की है। चुनौती है उन्हें कि वे निष्पक्षता बरतें। दलगत राजनीति का त्याग कर, सत्तास्वार्थ से इतर भारत की छवि की चिंता करें। खेल प्रेमी हैं तो क्रिकेट की चिंता करें। इसकी मूल अवधारणा 'जेन्टलमेन्स गेम' को पुनस्र्थापित करें।