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Tuesday, April 27, 2010

एक अकेले ललित मोदी 'विलेन' कैसे

बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर एक भले मानुस हैं। नामी वकील हैं। परिवार का सांस्कृतिक पाश्र्व सुखद एवं अनुकरणीय है। स्वभाव से शांत, शालीन और सभी के लिए स्वीकार्य हैं। सार-संक्षेप यह कि शशांक मनोहर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाने वाले एक सज्जन व्यक्ति हैं। यही कारण है कि उन्हें नजदीक से जानने वाला हर व्यक्ति आश्चर्यचकित है कि उन्होंने आईपीएल के अध्यक्ष ललित मोदी पर आक्रामक ढंग से एक नहीं, 22 गंभीर आरोप कैसे लगा दिए? अगर बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने दायित्व का निर्वाह किया है तब यह स्वाभाविक प्रश्न खड़ा होता है कि पिछले दो वर्षों से बीसीसीआई और उससे जुड़े अन्य पदाधिकारी मोदी के मामले में मौन क्यों रहे? अगर वित्तीय अनियमितता, टीमों की नीलामी, रिश्तेदारों को लाभ पहुंचाने तथा सट्टïेबाजी के लिए मोदी को दोषी ठहराया जा रहा है तब यह तो तय है कि ये गड़बडिय़ां एक दिन की उपज नहीं हैं! और फिर एक अकेले ललित मोदी को इन सारी अनियमितताओं के लिए दोषी कैसे निरूपित किया जा सकता है? अगर वित्तीय अनियमितता हुई है तब इन मामलों की देखरेख करने वाले वित्तीय अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? फ्रेंचाइजी, प्रसारण अधिकार संबंधी निर्णय के लिए आईपीएल की संचालन परिषद को जिम्मेदार क्यों न माना जाए? इन मामलों पर संचालन परिषद ने स्वीकृति की मुहर लगाई थी। फिर अकेले मोदी कैसे दोषी हुए? नीलामी के संबंध में यह बात सामने आ चुकी है कि बीसीसीआई के कार्यालय से बोली लगाने वाली टीम को अवश्य पूर्व जानकारियां प्रेषित की गई थीं। बल्कि यह सच तो सामने है कि शशि थरूर के मामले को स्वयं ललित मोदी ने ही उजागर किया था। लोग यह नहीं भूले हैं कि पिछले दो आईपीएल आयोजनों की सफलता के पश्चात इसी बीसीसीआई के इन्हीं पदाधिकारियों ने सारा श्रेय इसी ललित मोदी को दिया था। मोदी की प्रशंसा में कशीदे काढ़े जाते रहे थे। अब अचानक रातोरात ये अकेले विलेन कैसे बन गए? जिस प्रकार अर्धरात्रि में कार्रवाई करते हुए बीसीसीआई ने मोदी को निलंबित किया है उससे बीसीसीआई संदिग्ध बन गई है। कार्रवाई नैसर्गिक न्याय की भावना के खिलाफ है। दो केंद्रीय मंत्रियों के रिश्तेदारों की भूमिकाएं संदिग्ध रूप में सामने आ चुकी हैं। बीसीसीआई ने इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? अपने मंत्री शशि थरूर का इस्तीफा लेने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अन्य दो केंद्रीय मंत्रियों की इस मामले में लिप्तता के बावजूद मौन क्यों हैं? बात यहीं खत्म नहीं होती। महान खिलाड़ी सुनील गावस्कर, नवाब पटौदी और रवि शास्त्री आईपीएल की संचालन परिषद के सदस्य हैं। इतने दिनों तक ये चुप क्यों रहे? बीसीसीआई ने तो इन्हें नई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे दी है! बीसीसीआई व आईपीएल से गायब महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जांच की जिम्मेदारी जिस व्यक्ति को दी गई है, क्या वे स्वयं संदिग्ध नहीं हैं? शशांक मनोहर एक नामी-गिरामी वकील के नाते इन पेचीदगियों से अनजान नहीं हो सकते। क्या मनोहर किसी कारणवश दबाव में हैं? मजबूर हैं? शायद सच यही है। व्यक्तिगत पारिवारिक संबंध इनके न्याय के मार्ग में अवरोध पैदा कर रहे हैं। आज पूरा देश एकमत है कि आईपीएल का महाघोटाला बीसीसीआई की नाक के नीचे हुआ है और इसके लिए अकेले ललित मोदी नहीं, अध्यक्ष सहित बीसीसीआई के सारे पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। आखिर कब तक हमारे देश में हर मामले में बलि का बकरा ढूंढे जाने का खेल चलता रहेगा? लोग अभी भूले नहीं हैं जब महान खिलाड़ी मोहम्मद अजहरुद्दीन और अजय जड़ेजा को एक मामले में बलि का बकरा बना उनके क्रिकेट कैरियर को खत्म कर दिया गया था। क्या कभी बंद नहीं होगा यह सिलसिला?

2 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सब गोलमाल है सब गोलमाल है... सीधे रस्ते की उल्टी चाल है...

कविता रावत said...

विलेनों की कहाँ कमी हमारे देश में .....
उम्दा प्रस्तुति ....