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Thursday, April 22, 2010

बड़ी मछलियों को बचाने छोटी मछलियों की बलि

जी हां, क्रिकेट की आड़ में ग्लैमर और काले धन की चाशनी का स्वाद लेने वाली बड़ी मछलियों को बेनकाब होने से बचाने का खेल शुरू हो गया है। छोटी मछलियां जिबह होने के लिये तैयार रहें। उनकी बलि निश्चित है। तुलसीदास यूं ही नहीं कह गये थे कि, ''समरथ को दोष नहीं गुसाई।'' इसका ताना बाना तो उसी दिन शुरू हो गया था जब मंत्रि-परिषद से इस्तीफा देने से पूर्व शशि थरूर केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी से मिले थे। वस्तुत: थरूर को भी बलि का बकरा बनाया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोनों के दुलारे थरूर की बलि कांग्रेस सरकार की मजबूरी बन गई थी। इन दिनों कांग्रेस के एक प्रभावशाली प्रबंधक सांसद पत्रकार राजीव शुक्ल ने थरूर को बचाने के लिये एड़ीचोटी का पसीना एक कर दिया था।
आईपीएल महाघोटाला की व्यापकता के कारण थरूर को समझा-बुझाकर इस्तीफा ले लिया गया। लेकिन थरूर को यह आश्वासन जरूर मिल गया था कि उन पर खंजर गिरानेवाले ललित मोदी को बख्शा नहीं जाएगा। मोदी को निशाने पर लिया जाने लगा। खबरें आईं कि आईपीएल के चेअरमन पद का त्याग उन्हें तो करना ही पड़ेगा, गिरफ्तार भी किये जाएंगे। लेकिन, मोदी ने ऐलान-ए-जंग कर दिया है। एक ओर जब आईपीएल की टीमों और उनसे जुड़ी संस्थाओं पर देश के विभिन्न भागों में आयकर विभाग ने छापे मारने की कार्रवाई शुरू कर दी है, मोदी ने एक विस्फोट की तरह यह खुलासा कर दिया कि उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष शशांक मनोहर, पूर्व अध्यक्ष व केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार, शाहरुख खान, प्रीति झिंटा, विजय माल्या, राजीव शुक्ला, शिल्पा शेट्टी सहित आईपीएल से जुड़े 71 लोगों को ईमेल कर आईपीएल फ्रेंचाइजी व उनके शेअर धारकों के नाम सार्वजनिक करने की बात कही थी। लेकिन शशांक मनोहर ने जवाब भेजकर ऐसा करने से मना कर दिया। क्यों? आखिर फ्रेंचाईजी के मालिकाना हक अर्थात्ï शेअर धारकों के नाम गुप्त क्यों रखे गये? ऐसा तो है नहीं कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई मामला जुड़ा हो। साफ है कि शेअरधारकों में कुछ ऐसे नाम हैं जिनके सार्वजनिक होने से देश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा। इस मुद्दे के सतह पर आने के साथ ही अनेक बड़े राजनेता और उद्योगपतियों के बेनामी शेअर की चर्चा होने लगी है। ललित मोदी ने न्याय और निष्पक्षता के नाम पर शेअर धारकों के नाम सार्वजनिक करने का सुझाव दिया था। शशांक मनोहर को जवाबी ईमेल भेजकर मोदी ने ध्यान दिलाया था कि इसके पहले ऐसा किया जा चुका है। ललित मोदी की नियुक्ति स्वयं बीसीसीआई ने की थी। क्रिकेट जगत से जुड़े लोग इस सचाई से परिचित हैं कि ललित मोदी स्वयं शरद पवार की पसंद थे। विवाद शुरू होने के बाद पवार ने मोदी का बचाव भी किया था। अब चूंकि मामले ने अप्रत्याशित तूल पकड़ लिया है, मोदी के समर्थक उनसे कन्नी काटने लगे हैं। वैसे भी मोदी का काला अतीत मित्रों को उनसे दूर करने लगा है। तथापि इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि मोदी के स्याहसफेद कारनामों के कारण उन्हें तो दंड मिले किंतु उनके कारनामों में शामिल बड़ी मछलियां बख्श दी जाएं। लेकिन मूल्यविहीन, अवसरवादी सत्ता की राजनीति के वर्तमान दौर में छला हमेशा देश ही जाता है। साम-दाम-दंड-भेद अपनाकर सत्ता की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती रही है। इसके लिए हमेशा छोटी मछलियों को तड़प-तड़प कर मरने दिया जाता है। आईपीएल-बीसीसीआई के ताजा मामले पर नजर रखनेवाले सभी जानते हैं कि अगर असली अपराधी अर्थात्ï बड़ी मछलियों पर हाथ डाला गया तब संभवत: केंद्र सरकार ही डगमगा जाये- महाराष्ट्र सरकार तो अवश्य ही।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जी हां यही तो होता आया है...