Sunday, December 21, 2008
अंतुले जी, कृपया जिन्ना की राह न चलें!
जिस बात का डर था, लगता है, वही मंचित होने जा रहा है. फिर भी मैं आशावान हूं कि भारत अपना विवेक नहीं खो सकता. लेकिन आशा की इस डोर पर कतिपय भ्रमित राजनीतिकों के प्रहार की उपेक्षा भी नहीं कर सकता. दु:ख इस बात का है कि ये भ्रमित लोग किन्हीं 'अन्य कारणों' से लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष भारत की नींव पर चोट पहुंचा रहे हैं. बगैर इस तथ्य को समझे कि उनका यह कृत्य सर्वधर्म समभाव के सामाजिक ताने-बाने को तार-तार कर देगा. धर्मनिरपेक्षता की सफेद चादर साम्प्रदायिकता के खून से लाल हो जाएगी. साम्प्रदायिक घृणा व द्वेष का ज़हर देश को खंडित कर देगा. मेरी आशंका बेबुनियाद नहीं है.
मुंबई पर आतंकी हमले के दौरान शहीद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौत पर सवालिया निशान लगाने वाले केंद्रीय मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले की हठधर्मिता संदेहों के घेरे में है. क्या अकारण? .....नहीं! आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने किसी 'बाहरी शक्ति' के इशारे पर देश की जनता को विभाजित करने के उद्देश्य से बयान दिया था. इस संगीन आरोप का जवाब तो अंतुले को देना ही होगा. पूरा देश स्तंभित है अंतुले को साम्प्रदायिक आधार पर मिल रहे ताजा समर्थन को देख. यह एक अत्यंत ही खतरनाक घटना विकासक्रम है. इसके पूर्व अंतुले के बयान पर इसी स्तंभ में की गई मेरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कुछ मित्रों ने लिखा है कि ''....टिप्पणी 'इमोशन' आधारित है.'' मैं चाहूंगा कि वे मित्र इस ताजा स्थिति पर गौर करें. अंतुले के बयान के समर्थन में पक्ष-विपक्ष के कुछ मुस्लिम नेताओं का एक होना और उर्दू-मीडिया द्वारा उन्हें महिमा मंडित करना क्या अनर्थ-सूचक नहीं! अंतुले नमाज पढऩे जाते हैं, तब उन्हें घेर कर पीठ थपथपाई जा रही है. क्या इसे साम्प्रदायिक-विभाजन का पूर्व संकेत नहीं माना जाएगा? पाकिस्तानी मीडिया भी अंतुले को हीरो बना रहा है. हेमंत करकरे की शहादत पर वहां के अखबार विशेष सम्पादकीय लिख भारत सरकार से मांग करने लगे हैं कि मुंबई हमले के मामले में आये इस नये मोड़ (अंतुले-बयान) पर ध्यान दिया जाना चाहिए. भारत के उर्दू-अखबार तो खुलकर अंतुले के बयान की तारीफ कर रहे हैं. क्या अंतुले देश में साम्प्रदायिक आधार पर ऐसा ही विभाजन चाहते हैं? मैं अभी भी अंतुले को संदेह का लाभ देने को तैयार हूं. सिर्फ इसलिए कि वे एक भारतीय हैं.
कांग्रेस के दबाव के बावजूद अंतुले बयान वापस लेने को तैयार नहीं दिखते. वे तो उलटे कांग्रेस को नसीहत दे रहे हैं कि उनके बयान पर पार्टी को गर्व होना चाहिए. खेद है कि अंतुले अविभाजित भारत के इतिहास को नज़रअंदाज कर रहे हैं. मुस्लिम, मुस्लिम देशों व उर्दू मीडिया के अस्थायी समर्थन पर वे प्रफुल्लित न हों. वे यह कैसे भूल जाते हैं कि अपने शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने 'फूट डालो और शासन करो' की नीति पर चलते हुए हिन्दू-मुसलमान के बीच विभाजन की एक रेखा खींच दी थी, ताकि उनका राज चलता रहे. अंतत: जब ब्रिटिश शासकों ने अपने शासन का अंत भांप लिया, तब उन्होंने षडय़ंत्र रच कर भारत का विभाजन कर डाला. भारत की जमीन पर पाकिस्तान के रूप में एक ऐसे राष्ट्र का उदय हुआ, जो अब तक हमारे लिए 'सिरदर्द' बना हुआ है. ज्यादा विस्तार में जाने की जरूरत नहीं. आज़ादी के तत्काल बाद 1947 से लेकर अब तक की घटनाएं इस बात के प्रमाण हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल की सोच के विपरीत पाकिस्तान को लेकर भारत का दर्द कभी कम नहीं हुआ. बात जब इतिहास की है, तब मैं एक कड़वे सच से अब्दुल रहमान अंतुले को अवगत कराना चाहूंगा. यह ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद है कि नेहरू और पटेल ने भारत-विभाजन को यह सोचकर स्वीकार कर लिया था कि पाकिस्तान मान लेने पर मोहम्मद अली जिन्ना से उनका पिंड छूट जाएगा, फिर उनका नाम सुनने को न मिलेगा. नेहरू ने तब निजी रूप से इस संबंध में कहा था कि ''सिर काट कर हम सिरदर्द से छुटकारा पा लेंगे!'' आज अंतुले की पार्टी कांग्रेस असहज है, अस्वस्थ है, बेचैन है कि धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस पार्टी और देश को अंतुले रूपी 'दर्द' से छुटकारा कैसे दिलायी जाए! अंतुले सावधान हो जाएं. इस बिन्दु पर शासक कांग्रेस से भी एक अपेक्षा है. वह इस 'दर्द' से छुटकारा पाने के लिए 'शल्य उपचार' तो करे, किन्तु राजनीतिक अनिवार्यतावश नहीं! उपचार हो देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप-चरित्र को बरकरार रखने हेतु. शल्यक्रिया हो हिन्दू-मुस्लिम एकता, भाईचारा को स्थायित्व देने हेतु. इसके लिए किसी 'राजनीतिक कुर्बानी' की जरूरत पड़े, तो कांग्रेस नेतृत्व हिचके नहीं!्र
एस. एन. विनोद
21 दिसंबर 2008
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6 comments:
अन्तुले, मतलब अन-तुले (बिना तोलमोल के बोलनेवाला)
मुंबई हमलों के बाद यह आशा बंधी थी कि भारतवासी अब आतंकवाद को धर्म से अलग करके देखने लगे हैं. जनता ने नेताओं को यह साफ़ तौर पर जता दिया था कि वह आतंकवाद को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़ कर नहीं देखती. यह मानवता के प्रति, समाज और राष्ट्र के प्रति एक घिनौना अपराध है. पर यह आशा ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. अंतुले जैसे राजनीतिबाज फ़िर धर्म को राजिनीति और आतंकवाद में घसीट लाये. कुछ लोग जो अपना मुंह खोलने से डर रहे थे, अब अंतुले की हाँ में हाँ मिलाने लगे. कांग्रेस, जिस ने ने केन्द्रीय जांच एजेंसी और कानून को सख्त करने के लिए तुरत-फुरत कदम उठाये, अंतुले मामले पर कुछ नहीं कर रही. यह सब बहुत आश्चर्यजनक है. क्या अंतुले कांग्रेस के उच्च नेतृत्व के कहने पर ऐसा कर रहा है, या कांग्रेस को फ़िर मुस्लिम वोट बेंक की चिंता सताने लगी है और वह फ़िर भारतीय मुसलमानों को आश्वस्त करना चाहती है कि वह मुंबई हादसे के बाद भी उसकी तुष्टिकरण की नीति बदली नहीं है.
आप सही कह रहे हैं, जो हो रहा है वह ठीक नहीं है, एक अत्यंत ही खतरनाक घटना विकासक्रम है.
esa hi chalata raha to koi army,raksha aur suraksha me jana pasad karega ky?
Baat sahi hai aur is per swasth bahas hona chahiye
आखिर अंतुले देश के गृहमंत्री के बयान से संतुष्ट हो ही गए, लेकिन उनको इतनी फुटेज देने की क्या ज़रूरत थी? अंतुले आखिर तक अपने बयान से नहीं पलटे (जैसा कि हमारे समाचार चैनलों की न्यूज़ थी) बल्कि वो तो उल्टे इन newschannels के आभारी रहे होंगे कि उनहोंने अंतुले को शर्मनाक स्थिति से बचा लिया! ये तो सोचना चाहिए था कि एक बेवकूफ नेता को ही संतुष्ट करना ज़्यादा ज़रूरी था या आम लोगों को ये अहसास कराना कि देश में जो भी फूट डालने का प्रयास करेगा, भले ही वह कोई नेता हो, या कोई और, उसे इतनी आसानी से निकलने नहीं दिया जाएगा, उसकी जवाबदेही तय की जायेगी कि उसने ऐसी अनर्गल बयानबाजी क्यों की?
अंतुले हमेशा से ऐसे काम करते आए हैं जो विवादास्पद रहे हैं। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सीमेंट घोटोले की वजह से उनकी एक बार पहले भी नौकरी जा चुकी है। याद न हो तो वे अपने बगल में ही अरुण शौरी से सारी यादें ताजा कर लें।
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