वाह नारायण राणे! 'अंगूर खट्टे हैं' के मुहावरे को आपने बिल्कुल सटीक रूप में पेश कर दिया. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में फिसड्डी होने के बाद आपके इस कथन पर कि ''अब हमें कोई पद नहीं चाहिए'', यही तो कहा जा सकता है. वैसे क्या आप बताएंगे कि आपको 'कोई पद' कोई दे रहा है क्या? आपका यह कहना भी मजाक सरीखा है कि ''कांग्रेस नाटक कर रही है.'' राणे साहब, 'नाटक' तो आज की पूरी की पूरी राजनीति ही है. लेकिन क्या आप स्वयं राजनीति के थिएटर के मंच पर 'एकपात्री' नाटक मंचित नहीं कर रहे हैं? चूंकि ऐसे 'एकपात्री नाटक' में न कोई नायिका होती है न खलनायक, सिर्फ एक हीरो होता है. आपकी इस नई नाटकीय भूमिका पर हमें एतराज नहीं. एतराज है तो केवल इस बात पर कि 'नायक' नारायण राणे ने अपने डायलॉग में सोनिया गांधी को नायिका और विलासराव देशमुख को खलनायक बना डाला. ऐसा नहीं होना चाहिए था. अभी कुछ घंटों पहले तक स्वयं को पार्टी का 'अनुशासित सिपाही' बताने वाले नारायण राणे अब यह ऐलान कर रहे हैं कि उन्हें सोनिया पर बिल्कुल भरोसा नहीं है, सोनिया ने वादा किया, लेकिन निभाया नहीं. यह 'बगावती तेवर' क्या किसी अनुशासित सिपाही का हो सकता है? सोनिया गांधी को झूठा बताने के साथ-साथ राणे ने विलासराव देशमुख को महाराष्ट्र का सबसे कलंकित मुख्यमंत्री निरूपित किया है. 'विलासराव के कारण ही मुंबई पर आतंकवादी हमला हुआ.' ऐसे आरोप लगाने वाले राणे क्या यह बताएंगे कि उनका 'ज्ञान चक्षु' अभी ही क्यों खुला? अगर विलासराव अयोग्य मुख्यमंत्री थे तो फिर अब तक उनके मंत्रिमंडल में मंत्री क्यों बने रहे? नए मनोनीत मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी आपकी नजर में सर्वथा अयोग्य सीएम होंगे. फिर आप मंत्री क्यों बने हुए हैं? बाय-बाय कीजिए - बाहर जाइए. मंत्री पद पर आसीन और कांग्रेस पार्टी का 'अनुशासित सिपाही' रहते हुए निवर्तमान और पद ग्रहण करने वाले मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसी टिप्पणियां ही दरअसल 'नाटक के संवाद' है. यह तो साफ है कि अब आप कांग्रेस में बने नहीं रहेंगे. राणेजी, इस तथ्य की जानकारी सभी को है कि कांग्रेस छोड़ अपनी क्षेत्रीय पार्टी बनाने की तैयारी आप पहले ही कर चुके हैं. महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बनने के लिए अब तक आपने जितने दांव-पेंच खेले, उनसे पूरा प्रदेश परिचित है. विफलता की स्थिति में आपकी ताजा प्रतिक्रिया एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री की गरिमा के खिलाफ है. आपके पास जनाधार है, संसाधन हैं और इच्छाशक्ति है तो फिर ऐसा नाटक क्यों? ताल ठोकिए, मैदान में उतरिए. दिल्ली की दलदली राजनीति के स्पर्श से दूर रहिए. सोनिया गांधी पर वादा तोडऩे का आरोप लगाने से आपको कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त नहीं होगा. इतने दिनों में निश्चय ही आप 'कांग्रेस' संस्कृति से परिचित हो चुके होंगे. पिछले 48 घंटों में 'वादा' और 'वादाखिलाफी' के रंग-बदरंग को भी आप देख चुके. भारत की गंदी राजनीति का यही वह चरित्र है जिससे आहत आज भारत का 'युवा मन' राजनीतिज्ञों को आतंकवादी के रूप में देख रहा है. अगर सचमुच आपमें प्रदेश हित में ईमानदार राजनीति करने की इच्छा शेष है तब किसी अन्य की आलोचना न कर सकारात्मक राजनीति के मार्ग पर चलने की शपथ लें. संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में न तो राजनीति को हाशिए पर रखा जा सकता है और न ही राजनीतिज्ञों की उपेक्षा की जा सकती है. हां, उन्हें शुद्ध-पवित्र अवश्य किया जा सकता है. 100 करोड़ से अधिक की आबादी वाला भारत देश आज वैश्विक ग्राम का मुखिया बनने की दौड़ में शामिल है. इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उसे सही मार्गदर्शक, सही नेतृत्व चाहिए. एक ऐसा 'पग' चाहिए जिसका अनुसरण 100 करोड़ 'डग' कर सकें. नेतृत्व का तमगा लेकर कोई पैदा नहीं होता. सामाजिक जरूरत और परिस्थितियां नेतृत्व को जन्म देती हैं. राणेजी, अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बन रहे हैं तो उन्हें अवसर दें. पारी शुरू करने के पहले ही उन्हें 'अयोग्य' घोषित कर आपने स्वयं को कठघरे में खड़ा कर लिया है. अभी भी वक्त है, संशोधन कर लें. और हां, अवसर पर कभी पूर्णविराम नहीं लगता.
एस. एन. विनोद
5 दिसंबर 2008
1 comment:
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में फिसड्डी होने के बाद आपके इस कथन पर कि ''अब हमें कोई पद नहीं चाहिए''
तो फ़िर इतना ड्रामा क्यो राणे साहब |
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