Thursday, December 18, 2008
पागल हो गए हैं अंतुले ?
सियासत के ऐसे विद्रुप चेहरे को देखकर अगर 'लोकतंत्र' आज विलाप कर रहा है तो बिल्कुल ठीक ही है. क्या हो गया है इस देश के कर्णधारों को? सैकड़ों वर्र्षों की गुलामी से भारत को निजात दिलाने वाले महात्मा गांधी सहित अन्य सभी दिवंगत स्वतंत्रता सेनानियों की आत्माएं भी विलाप कर रही होंगी. देश को गुलामी से मुक्त करा, लोकतंत्र का जामा पहनाकर उन्होंने राजनीतिकों के हाथों शासन इसलिए तो कतई नहीं सौंपा था कि वे हर अच्छी-बुरी घटनाओं में राजनीति और सिर्फ राजनीति सूंघें. क्या आश्चर्य कि आज लोगबाग राजनीतिकों को समाज का एक अत्यंत ही घिनौना पात्र समझने लगे हैं! लोकतंत्र की ऐसी असहज-लज्जास्पद स्थिति के लिए स्वयं राजनीतिक ही जिम्मेदार हैं. कुछ अपवाद छोड़ दें तों राजनीति को पेशा मान इसमें प्रविष्टï लोग 'पेशा' ही कर रहे हैं. इस वर्ग को न तो देश की चिंता है, न समाज की चिंता है, न लोकतंत्र की चिंता है और न ही उस कसम की, जो संविधान की रक्षार्थ इन्होंने खाई है.
ताजातरीन अंतुले प्रकरण से मैं हतप्रभ हूं. सत्तापक्ष का एक वरिष्ठ सदस्य, भारत सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले, लगता है, अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं. विगत माह देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर हुए आतंकी हमलों से जुड़ा उनका बयान मेरी इस आशंका की पुष्टिï करता है. एक सिरफिरा ही तो महाराष्टï्र एटीएस (आतंकवाद निरोधक दस्ता) के प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत पर सवाल खड़े कर सकता है. अंतुले की नजर में करकरे आतंक के शिकार नहीं, बल्कि किसी साजिश के शिकार हुए. बगैर शब्दों को चबाए अंतुले यह कहने से नहीं चूके कि करकरे मालेगांव विस्फोट से जुड़े उन मामलों की जांच कर रहे थे, जिनमें कतिपय हिन्दूवादी संगठनों पर संदेह प्रकट किए गए थे. क्या अंतुले यह कहना चाहते हैं कि करकरे हिन्दूवादी संगठनों की साजिश के शिकार हुए? यह हरकत सिर्फ पागलपन नहीं, स्वयं में एक गहरी साजिश है. दो संप्रदायों के बीच घृणा, द्वेष, वैमनस्य पैदा कर उन्हें लड़ा देने की साजिश है. मैं ऐसे आचरण को आतंकवादी आचरण निरूपित करने के लिए बाध्य हूं. अंतुले दंडित किए जाएं. उन्हें मंत्रिमंडल से निकाला जाए. कांग्रेस उनकी सदस्यता रद्द करे और कानून उन्हें अपनी गिरफ्त में ले. ऐसे व्यक्ति को किसी भी जिम्मेदार पद पर बने रहने का हक नहीं है.
आलोच्य मामले की उत्पत्ति से राष्ट्रहित चिंतक समुदाय विचलित हो उठा है. वे सियासत के खिलाड़ी थे जिन्होंने दिल्ली स्थित बटाला हाउस में छुपे आतंकियों के हाथों शहीद हुए मोहनचंद शर्मा पर भी सवालिया निशान खड़े किए थे. समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने 'एनकाउंटर' पर सवाल उठाते हुए मामले की जांच की मांग की थी. बिल्कुल गैरजिम्मेदार व्यक्ति सरीखी हरकत के अपराधी अमर सिंह भी तब सियासत का खेल ही खेल रहे थे. क्या ऐसे लोगों के हाथों में देश कभी सुरक्षित रह सकता है? लोकतंत्र के नाम पर अपना घर-पेट भरने वाले राजनीतिज्ञ भला देश-समाज की चिंता कर ही कैसे सकते हैं? सत्ता वासना में डूबे इन मदांधों को अपनी इच्छापूर्ति के लिए सांप्रदायिक दंगा करवा देने से भी परहेज नहीं. मुंबई पर हमलों में शामिल आतंकियों को संदेह का लाभ देकर अंतुले ने यही प्रमाणित किया है. क्या इसी को सियासत कहते हैं? इसके पहले केन्द्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और केन्द्र सरकार के समर्थक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायमसिंह यादव भी ऐसी हरकतें कर चुके हैं. सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए ही इन्होंने उस सिमी संगठन का पक्ष लिया था जो देश में आतंकवादी हमलों में हमेशा लिप्त पाया गया है. क्या ये सभी कानून से ऊपर हैं? कौन देगा इस सवाल का जवाब? राजनीति के हमाम में नंगों की फौज भला जवाब दे भी कैसे सकती है!
एस.एन.विनोद
18 दिसंबर 2008
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11 comments:
अंतुले पागल नहीं हैं; यह कहिये कि अपने 'असली' रूप में आ गये हैं।
इसमे कोई शक नही....सठिया गए है.....या अनुनाद जी ने सही फरमाया "असली रूप "में आ गए है
इनको पाकिस्तान भिजवाने की कांग्रेस व्यवस्था करे.शीघ्रता की ज़रूरत है.
Antule ko to Ranchi Mentel Hospital Bhej dena chahiye. unke dimag ka elaj karne ke liye.
सर ये अंतुले का पागलपन नही ,"सेकुलर "सोच है .
sir u r on track antule is derreled kundan k c
its not only antule. every politician have no vission about the country. and they feel they are to free to say anything but they quite dont know when public come out at street noone can face them.
बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा है। काफी पहले भोपाल में देवेश ठाकुर जी के आवास में लोकमत में आपको देखा था. पुरानी यादें ताजा हो आईं. आप नया करने जा रहे हैं. यह निश्चित ही बहुत बड़ा कदम है. सफलता आपके कदम चूमेगी.
मुकुंद
चंडीगढ़
09781497818, 09780032978
अंतुले के वक्तव्य को पागलपन करार दिया जा सकता है, देश के देशभक्तों की फेरहिस्त भी बड़ी लम्बी चौडी है,
भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारी और नौकरशाह, अपने हुक्मरानों के मुताबिक दफ्तरखाना चलाते पत्रकारों का हुजूम जिनको पत्रकारिता से कोई सरोकार नही, अद्भुत लगता है की देश के पैरोकार बन जाते हैं,
माले गाव बम विस्फोट का मामला गायब हो चुका है, साध्वी गुम हो चुकी है,
आख़िर हम भारतवाशी एक जो हैं,
गाहे बगाहे एक होते रहते हैं,
वापस अपने सुर और ताल पर आ जाते हैं.
sie desh me antuleayon ki kami nahi hai.
sunil choudhary ranchi
पागल नहीं, महापागल!
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