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Saturday, December 6, 2008

नहीं चाहिए 'आबा' जैसा गृहमंत्री!


'आबा की राजनीतिक चमड़ी पर नैतिकता के चाबुक का कोई असर नहीं होता'
मुंबई पर आतंकवादी हमले की 'नैतिक' जिम्मेदारी लेते हुए शिवराज पाटिल गृह मंत्रालय के कूचे से बाहर निकल आये. कांग्रेस की ओर से जारी इस बयान का खरीदार शायद ही कोई सामने आये. राजनीति का ककहरा जानने वाला भी समझ गया है कि शिवराज पाटिल ने इस्तीफा दिया नहीं. उनसे इस्तीफा लिया गया है. कारण एक नहीं, अनेक हैं. इस पर सविस्तार चर्चा कभी बाद में, फिलहाल हम महाराष्ट्र प्रदेश के हर नागरिक के दिल में उठ रही जिज्ञासा की बातें करेंगे. जिज्ञासा यह कि जब मुंबई पर आतंकवादी हमलों की नैतिक जिम्मेदारी केन्द्रीय गृहमंत्री अपने सिर ले सकते हैं, तब प्रदेश के गृहमंत्री ऐसा नैतिक 'पवित्र तमगा' धारण करने से हिचक क्यों रहे हैं? महाराष्ट्र प्रदेश का हर व्यक्ति आज गृहमंत्री आर.आर. पाटिल के इस्तीफे की मांग कर रहा है. क्या आबा के नाम से मशहूर आर.आर. पाटिल अपने प्रदेश की जन-इच्छा को सम्मान देंगे? शायद नहीं. जानकार बताते हैं कि आबा की राजनीतिक चमड़ी पर नैतिकता के चाबुक का कोई असर नहीं होता. ये वही आबा हैं, जो कथित रूप से पुलिस एन्काउंटर में एक पर-प्रान्तीय युवा के मारे जाने पर दु:ख जताने की जगह खुश हुए थे. कहा था- 'बुलेट का जवाब बुलेट से ही दिया जाएगा.' पूरे देश में आबा के उक्त वक्तव्य की आलोचना हुई थी. लेकिन आबा पर कोई असर नहीं हुआ. सफाई दे दी कि उन्होंने ऐसा कहा ही नहीं था. वही आबा आज मुंबई की घटना पर यह कह रहे हैं कि 'ऐसी छोटी घटनाएं बड़े शहरों में हुआ ही करती हैं.' तब आश्चर्य क्या? आश्चर्य है तो इस बात का कि उन्हें गृहमंत्री के रूप में बर्दाश्त कैसे किया जा रहा है? घोर गैर-जिम्मेदार ऐसे व्यक्ति के हाथों में प्रदेश की कानून-व्यवस्था सुनिश्चित रह ही नहीं सकती. चाहे राज ठाकरे की मनसे का 'कथित आंदोलन' हो या फिर मुंबई सहित राज्य के अनेक भागों में पिछले दिनों हुई विस्फोट की घटनाएं क्यों न हों, आबा निश्च्छल बने रहे. एक छोटे-से दल का नेता मुंबई पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर को सार्वजनिक रूप से चुनौती देता है कि वे वर्दी उतारकर सड़क पर आएं, उन्हें सबक सिखा दिया जाएगा. तब भी गृहमंत्री बेचैन नहीं होते. उल्टे उस पुलिस अधिकारी को ही फटकार लगा देते हैं. ऐसे में कानून-व्यवस्था को लागू करने की जिम्मेदार एजेंसियां कर्तव्यपालन कर ही कैसे सकती हैं? पुलिस बल का मनोबल ऐसे आबा सरीखे नेता ही गिरा देते हैं. मुंबई पर आतंकवादी हमले में मुंबई पुलिस और खुफिया एजेंसियों की विफलता का एक बड़ा कारण यह भी है.
राजनीतिक लाभ के लिए दलीय राजनीति तो ठीक है, किन्तु सत्ता की राजनीति के लिए आम जनता के खून को बहने नहीं दिया जा सकता. मुंबई में शहीद आला पुलिस अधिकारियों और निर्दोष नागरिकों के खून की जिम्मेदारी आज नहीं तो कल प्रदेश की जनता तय करेगी ही. बेहतर हो 'नैतिकता' का सहारा ले गृहमंत्री आर.आर. पाटिल स्वयं इस्तीफा दे दें. विलंब की स्थिति उनके और उनकी पार्टी के लिए असहज परिस्थितियां लेकर आएंगी और तब आबा और पार्टीके नेता शायद उनका सामना नहीं कर पाएंगे. फैसला आबा खुद करें.
एस. एन. विनोद
1 दिसंबर 2008

3 comments:

Unknown said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है, शुभकामनायें हैं… एक अर्ज है कि कृपया डेशबोर्ड में जाकर वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें, यह टिप्पणी देने में बाधक बनता है… धन्यवाद

Manoj Kumar Soni said...

बहुत मुख्र्र लिखा है आपने ..
राजनीति कहाँ ले कर जायेगी

हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दें
कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.ucohindi.co.nr

संगीता पुरी said...

आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।