ये अश्लील है. घोर अश्लील है. सब कुछ अश्लील है. अगर साध्वी प्रज्ञा ने जो आरोप एटीएस के जांच अधिकारियों के खिलाफ लगाए हैं, सच हैं तब फिर श्लीलता दफना दी जाए हमेशा-हमेशा के लिए. अगर साध्वी सच हैं तब निश्चित मानिए, देश में अश्लीलता की हर क्षेत्र में मौजूदगी प्रमाणित हो गई है. यह सिद्ध हो गया कि बंद चारदीवारी से बाहर निकलकर अश्लीलता ने राजनीति को, शासन को, न्याय को और पूरे समाज-देश को निगल लिया है. फिर कैसा लोक-तंत्र, फिर कैसा लोक-शासन. सब कुछ प्रायोजित अश्लीलता के शिकंजे में है. कौन अपराधी है इस सर्र्वांग अश्लीलता के लिए?
युवा साध्वी प्रज्ञासिंह न्याय दरबार में गुहार लगा रही हैं कि महाराष्ट्र पुलिस के एटीएस के अधिकारी पूछताछ के दौरान उनसे गाली-गलौच करते हैं, अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं, मारपीट करते हैं और मानसिक प्रताडऩा देने के लिए उन्हें अश्लील सीडी दिखाई गई. धमकियां दी जाती हैं कि उन्हें नंगा कर उल्टा लटका दिया जाएगा. जान से मारने की धमकी तो दी ही गई.
साध्वी प्रज्ञा की तरह 'आतंकवादी' के रूप में गिरफ्तार सेना के एक अवकाशप्राप्त मेजर रमेश उपाध्यक्ष ने महाराष्ट्र के पुलिस महानिरीक्षक पर सीधा आरोप लगाया है कि उन्होंने जुर्म कबूलने के लिए दबाव डाला. एक अन्य आरोपी शिवनारायण सिंह ने भी एटीएस के खिलाफ प्रताडऩा के आरोप लगाए हैं. मैं फिर दोहरा दूं कि अगर ये आरोप सही हैं तब वर्तमान शासकों को देश पर शासन करने का हक नहीं है. किसी कानून के राज में ऐसी अश्लीलता, ऐसी बर्बरता को स्थान नहीं दिया जा सकता. यह तो 'जंगल राज' है. ये गुलाम भारत के उस कालखंड की याद दिला रहे हैं जब आजादी के दीवानों को अंगे्रजी शासक कालकोठरियों में कैद कर, नंगा कर बर्बर उत्पीडऩ की सारी सीमाओं को तोड़ डालते थे. क्या हम किसी नए चोले को धारण कर भूतकाल के उस कालखंड में वापस हो रहे हैं? सचाई की हालत में इसे 'अश्लील राजनीति' के रूप में निरूपित करने मैं विवश हूं. ऐन चुनाव के समय घटित यह वारदातें इस बात की चुगली कर रही हैं. राजनीति के ऐसे घृणित खेल के खिलाड़ी पूर्णत: विवेकशून्य हो चुके हैं. 'समझौता एक्सप्रेस' में विस्फोट के लिए सेना के वरिष्ठ अधिकारी श्रीकांत पुरोहित को आरोपी बनाने वाली पुलिस यह भी भूल गई कि विस्फोट के बाद भारत सरकार ने इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के सिर मढ़ी थी. आज क्या हुआ? अपनी ही भारतीय सेना के एक अधिकारी को दोषी करार दे पुलिस ने पाकिस्तान सरकार को वार करने का मौका दे दिया. क्या यह विडंबना नहीं कि आज भारतीय सूत्रों-गवाहों का हवाला देते हुए पाकिस्तान समझौता एक्सपे्रस विस्फोट में मारे गए 68 पाकिस्तानी नागरिकों को मुद्दा बनाकर भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के दरवाजे पर दस्तक देने जा रहा है? अब जबकि हमारी सरकार ही कह रही है कि सेना के आरडीएफ से सेना के अधिकारी ने साधु-साध्वी से मिलकर विस्फोट कराए थे, तब पाकिस्तान की अपील पर संयुक्त राष्ट्र में भारत क्या जवाब देगा? हिन्दी फिल्मों की भांति कथित हिन्दू आतंकवाद की ऐसी अश्लील पटकथा के लेखक को फिर हम राष्ट्रद्रोही क्यों न निरूपित करें?
केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री शकील अहमद ने सरकार को तटस्थ-निष्पक्ष बताते हुए कह डाला कि ''चाहे 'जेहादी आतंकवाद' हो या 'जनसंघी आतंकवाद', इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.' गृहराज्यमंत्री के ये शब्द क्या 'चोर की दाढ़ी में तिनका' की कहावत को प्रमाणित नहीं कर रहे? मंत्रीजी, कहीं यह कोई नया 'अश्लील आतंकवाद' तो नहीं!
एस. एन. विनोद
25 नवंबर 2008
1 comment:
Aap ka kahna sahi hai per sarkar is bat ko mane tab na sarkar ki khaal to gende ki ho gayi hai use vote ke alawa kuchh nazar nahi aata , vote ke lile sarkar isse bhee neeche gir sakti hai.
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