अब ऐसी राष्ट्रीय तटस्थता पर चिंतक रूदन क्यों न करें! ऐसी अवस्था को राष्ट्रीय शर्म निरूपित किया जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। राजदलों द्वारा प्रस्तुत बेशर्मी के ताजा उदाहरण ने मुझे ऐसी टिप्पणी करने को मजबूर कर दिया है। पीड़ा तब गहरी हो जाती है जब राजदलों की ऐसी हरकतों को देश एक तटस्थ मूकदर्शक की तरह देखता रह जाता है। यह दोहराना ही होगा कि देश की ऐसी ही तटस्थता ने राजनेताओं-राजदलों को बेशर्म, उच्छृंखल बना डाला है। जन आक्रोश की ओर से ये आश्वस्त से हो गए हैं। हो भी क्यों नहीं। इनके सभी झूठ-जाल-फरेब की ओर से जनता निर्लिप्त जो हो चली है।
बेशर्मी का ताजा उदाहरण। चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दल राजनीति में अपराधियों के प्रभाव को रोकने पर एकमत नजर आए। गंभीर चिंता इनके प्रतिनिधियों ने जताई। कहा- राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाना ही होगा। बड़ी कोफ्त हुई जब इसके ठीक विपरीत राजदलों के आचरण की जानकारी मिली। जरा आप भी समझ लें। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अब तक घोषित उम्मीदवारों की सूची इनके झूठ और बदनीयत को साबित करने के लिए काफी है। अब तक घोषित उम्मीदवारों में भारतीय जनता पार्टी के 62 प्रतिशत, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के 53 प्रतिशत, जनता दल (यू) के 33 प्रतिशत और कांग्रेस पार्टी के 24 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक पाश्र्व के हैं। इनके खिलाफ विभिन्न अदालतों में आपराधिक मामले लंबित हैं। क्या ये आंकड़े उनकी नीयत की चुगली नहीं कर रहे? चुनाव आयोग के समक्ष बैठ राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश की चर्चा करने वाले राजदल पहले व्यवहार के स्तर पर इस मुद्दे पर ईमानदारी दिखाएं। अगर औसत ले लें तो इन सभी दलों द्वारा अब तक घोषित उम्मीदवारों में 44 प्रतिशत आपराधिक चरित्र वाले हैं। चुनाव जीत विधान मंडल में विशेषाधिकारों के साथ निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में पहुंच क्या ये लोग राजनीति के अपराधीकरण पर रोक लगने देंगे? अपेक्षा ही बेकार है। हमारे राजदल-राजनेता पहले भी इस मुद्दे पर झूठ बोल चुके हैं, देश के साथ दगा कर चुके हैं। देश जब आजादी की स्वर्ण जयंती मना रहा था। तब संसद के एक विशेष संयुक्त अधिवेशन में सभी दलों ने सर्वसम्मति से राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था। प्रस्ताव के अनुसार सभी दलों ने संसद में वचन दिया था कि वे चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को टिकट नहीं देंगे। सचाई से पूरा देश परिचित है। लोकतंत्र के हमारे इन पहरुओं ने जब इस मुद्दे पर संसद में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव को अहमियत नहीं दी, प्रस्ताव के विपरीत आचरण करते हुए आपराधिक चरित्र वाले लोगों को टिकट देते रहे तब आज चुनाव आयोग के समक्ष बनी सहमति पर ये भला क्या अमल करेंगे। झूठे हैं ये। बेइमान हैं ये। अगर ये सचमुच ईमानदारीपूर्वक राजनीति को अपराधियों व बाहुबलियों से मुक्त रखना चाहते हैं तो 15 वर्ष पूर्व संसद में पारित प्रस्ताव पर अमल करें। बिहार में चुनाव प्रक्रिया जारी है। चुनौती है सभी राजदलों को कि वे घोषित आपराधिक पाश्र्व के उम्मीदवारों को साफ-सुथरे उम्मीदवारों से बदल डालें। आगे घोषित होने वाली अन्य सूचियों में किसी भी संदिग्ध चरित्र को शामिल न करें। क्या इतना नैतिक साहस है इनमें? चुनाव में हार-जीत के गणित को अपनी जगह छोड़ दें। मतदाता को श्रेष्ठ उम्मीदवारों में से सर्वश्रेष्ठ को चुनने की आजादी दे दें। लोकतंत्र तब अपनी संपूर्णता में पाक साफ रहेगा, सुरक्षित रहेगा।
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