सत्य को आत्मसात कर ज्ञान अर्जित करने वाला ही एक सच्चे ज्ञानी के रूप में स्वीकृति प्राप्त करता है। असत्य को ग्रहण करने वाला अज्ञानी व दंभी बन जाता है। लगता है कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इसी असत्य आधारित व्याधि से पीडि़त हैं। प्रमाण है राहुल और उमर के ताजा वक्तव्य। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) के समकक्ष रख राहुल ने जहां स्वयं को अज्ञानी के रूप में चिन्हित किया, वहीं भोपाल में युवा कांग्रेसियों को चेतावनी देते हुए यह कहकर कि ''...मैं 15 मिनट में निकाल बाहर कर दूंगा,'' अपने दंभी होने का भी परिचय दे डाला। उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर के भारत में विलय पर सवालिया निशान जड़कर अज्ञानी ही नहीं, स्वयं को राष्ट्रविरोधी-देशद्रोही की श्रेणी में डाल दिया। दो उभरते युवाओं के ऐसे हश्र पर आज पूरा देश दुखी एवं चकित है।
क्या समझकर राहुल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना सिमी से कर डाली? राष्ट्रविरोधी, सांप्रदायिक व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्तता के आरोप में सिमी पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। ध्यान रहे, सिमी पर प्रतिबंध भाजपा नेतृत्व की राजग सरकार के कार्यकाल में लगा था जिसे कांग्रेस नेतृत्व की संप्रग सरकार ने भी जारी रखा है। अर्थात् सिमी की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को लेकर कोई राजनीतिक मतभेद नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी पूर्व में प्रतिबंध लगाए गए किन्तु पूर्णत: राजनीतिक कारणों से संघ को इसके आलोचक भी राष्ट्रविरोधी निरूपित नहीं करते। बल्कि प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री तक संघ की गतिविधियों की सराहना कर चुके हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि एक बार गणतंत्र दिवस की परेड में भी भारत सरकार ने संघ को शामिल किया था। चीन और पाकिस्तान द्वारा अपने देश पर किए गए हमलों के दौरान संघ की भूमिका की सराहना केंद्र सरकार कर चुकी है। देश के इतिहास से अनभिज्ञ राहुल गांधी ने ऐसे संघ की राष्ट्रविरोधी सिमी से तुलना कर दी है। एक ओर जब वे गांव-गांव में घूमकर भारत और भारतीयों को जानने-समझने का सराहनीय प्रयास कर रहे हंै, युवा वर्ग ही नहीं एक सही नेतृत्व को आतुर देशवासियों की नजरें भी उन पर टिकी हैं, राहुल के ताजा बयान से सभी निराश हुए हैं। राहुल ने स्वयं को संकुचित मानसिकता वाला एक पूर्वाग्रही व्यक्ति साबित कर डाला। उनके 'मैं' के दंभ की चर्चा मैंने अपने इस स्तंभ में तब भी की थी जब वे वर्धा में उद्ïबोधन के दौरान बार-बार 'मैं' निहित अहं को चिन्हित कर रहे थे। कुछ मित्रों की राय है कि राहुल को अभी संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। मैं और मेरे समान सोच के धारक ऐसा करने को तैयार हैं, शर्त यह कि राहुल असली भारत को पहचान पूर्वाग्रह से मुक्त सोच का वरण करें। और यह तभी संभव है जब वे चाटुकारों से दूर यथार्थ और सत्य को प्रश्रय दें।
जहां तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की टिप्पणी का सवाल है, मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। पहले दादा शेख अब्दुल्ला, फिर पिता फारूक अब्दुल्ला और अब बेटा उमर अब्दुल्ला! प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अकारण शेख अब्दुल्ला को जेल के सीखचों के पीछे नहीं डलवाया था।
उमर ने जो बयान दिया है, उसके बाद इसे भी सीखचों के पीछे भेज दिया जाना चाहिए। दुश्मन पड़ोसी पाकिस्तान की साजिश का अंग बनने वाला उमर अब्दुल्ला अगर स्वतंत्र विचरण करता है, तब क्षमा करेंगे इस टिप्पणी के लिए कि भारत का नेतृत्व अयोग्य है। देश की अखंडता को कायम रखने में यह सक्षम नहीं है।
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