फिर हिंदू-हिंदू, मुसलमान-मुसलमान, मंदिर-मंदिर, मस्जिद-मस्जिद!!!! हद हो गई। शर्म की इस इंतहा को राजनीतिक स्वीकृति? दफन कर दें ऐसी सोच को, ऐसे विचार को! देशहित में सांप्रदायिक सौहाद्र्र्र, सर्वधर्म समभाव, परस्पर विश्वास, सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को, समर्पण की भावना को चुनौती देनेवालों को अगर हमारा कानून दंडित करने में असमर्थ है तब लोग पहल करें। ऐसे तत्वों का सामाजिक बहिष्कार करने में हम सक्षम तो हैं ही! फिर विलंब क्यों? इन ताकतों नेे गोलबंद होना शुरू कर दिया है। सिर उठाना शुरू कर दिया है! फिर विलंब क्यों? कुचल दें इनके सिरों को। अन्यथा 1947 और 1992-93 की पुनरावृत्ति को कोई रोक नहीं पाएगा। क्या देश ऐसा चाहेगा? सांप्रदायिक आधार पर वोट की राजनीति करनेवाले को छोड़ अन्य कोई नहीं चाहेगा।
दशकों पुराने मंदिर-मस्जिद विवाद पर हाईकोर्ट के फैसले का पूरे देश ने, हर संप्रदाय के लोगों ने स्वागत किया। हिंदू-मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने पहल की और फैसले के आलोक में सर्वसम्मत स्थायी हल की खोज शुरू कर दी। कुछ कट्टरपंथियों को छोड़ दें तो मुस्लिम समुदाय की ओर से पहल करते हुए इनके प्रतिनिधि हिंदू धर्म गुरुओं से मिले। हिंदू समुदाय की ओर से इस आशय का बयान आया कि राम मंदिर के बगल में मस्जिद बने तो किसी को आपत्ति नहीं होगी। दोनों संप्रदायों के बीच परस्पर विश्वास, आस्था पर सभी को नमन करना चाहिए। लेकिन नहीं! धर्म और संप्रदाय पर राजनीति करनेवालों को यह स्वीकार नहीं! संाप्रदायिक आधार पर भड़काने और वैमनस्य पैदा करने का खेल शुरू हो गया है। सांप्रदायिकता की आग में देश को झोंक देने की कवायद शुरू कर दी है इन देशद्रोहियों ने! जी, हां! ये देशद्रोही ही हैं। इस कड़वी टिप्पणी के लिए मैं मजबूर हूं। कांग्र्रेस पार्टी की ओर से फैसले का स्वागत तो किया गया, संयम बरतने की अपील भी की गई, किंतु फैसले के पूर्व और बाद में भी बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुले रहने की बात कर आखिर वे क्या संदेश देना चाहते हैं? यही नहीं, पार्टी की एक उच्चस्तरीय बैठक के बाद यह कहना कि फैसले से 6 दिसंबर 1992 के दिन विवादित ढांचा गिराने के कृत्य को माफी नहीं मिल जाती। वह एक शर्मनाक और आपराधिक कृत्य था जिसके लिए दोषियों को नतीजा भुगतना ही चाहिए। इस खबर पर शिक्षित-सभ्य भारत का हर समझदार व्यक्ति शर्मिंदा हुआ है। निश्चय ही 6/12 की घटना एक आपराधिक कृत्य थी। लेकिन उसकी याद को ताजा करने की कवायद भी क्या आपराधिक कृत्य नहीं है? अगर कांग्रेस या कोई अन्य दल मुस्लिम तुष्टीकरण की पुरानी नीति पर चलना चाहता है तो उन्हें निराशा मिलेगी। फैसला आने के बाद मुस्लिम समुदाय ने स्वागत कर संदेश दे दिया है कि अब उनका और राजनीतिक दोहन नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस को अगर विवादास्पद ढांचा गिराए जाने का सही में दुख है तो बेहतर हो वह अपनी पहल पर राम जन्मभूमि परिसर पर मस्जिद निर्माण करवा दे। देश की समझ को चुनौती देने की भूल न करे। हिंदू-मुसलमान के बीच मतभेद व अविश्वास पैदा कर कांग्रेस देश-समाज का अहित कर रही है। देश का अभिभावक दल कहलाने वाली कांग्रेस के लिए यह शोभा नहीं देता। यह कांग्रेस की ताजा कवायद ही है जिसने मुलायम सिंह यादव सरीखे नेता को सांप्रदायिक आधार पर सिर उठाने का फिर मौका दे दिया। पहले तो मुसलमानों का मसीहा बन मुलायम ने फैसले से मुसलमानों को ठगा निरूपित किया और अब कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं से मिलकर उन्हें उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर मुलायम सफल होते हैं तो इसका दोष कांग्रेस के सिर ही जाएगा। कांग्रेस अब बस करे। बहुत हो चुका मुस्लिम तुष्टीकरण और सांप्रदायिक राजनीति का खेल। कोई भी सर्वेक्षण करवा लें, देश की नई पीढ़ी धर्म-संप्रदाय आधारित ऐसी कवायद को देशद्रोह की श्रेणी में डालती मिलेगी।
2 comments:
मुस्लिम धर्मगुरुओं को चाहिये कि वे ऐसी हरकतों का मुहतोड जवाब दे । ङम सब मिलकर शांति बनाये रख सकते हैं यदि नेता लोग अपनी रोटी सेकने की जुगत ना भिडायें ।
आपके विचारों से पूर्ण रूप से सहमत।
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