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Saturday, October 16, 2010

औकात बता दें कट्टरपंथियों को!

अब बातें दो टूक हों, फैसला भी हो ही जाए। सांप्रदायिक सौहाद्र्र और सर्वधर्म समभाव का पक्षधर मैं आज गहरी पीड़ा के साथ इस टिप्पणी के लिए मजबूर हूं कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चाहता ही नहीं कि अयोध्या अर्थात्ï मंदिर-मस्जिद मसले का कोई हल निकले। वे चाहते हैं कि विवाद बना रहे, सांप्रदायिक तनाव चलता रहे। निष्पक्ष सोच के धारक पहले से ही कहते आये हैं कि कट्टरपंथी जब तक इस मामले में हस्तक्षेप करते रहेंगे, समाधान नहीं निकल पाएगा। ये तत्व समाधान चाहते ही नहीं। मामला अगर सुलझ गया तो फिर इनकी दुकानदारी जो बंद हो जाएगी! आजादी पश्चात विभाजन के साथ ही इन कट्टरपंथियों ने अपनी-अपनी दुकानें खोल ली थीं। धर्म-संप्रदाय का मुलम्मा चढ़ा इन्होंने मंदिर-मस्जिद को बेचना शुरू कर दिया। अयोध्या विवाद को आजादी पूर्व अंग्रेज शासकों ने हवा दी और आजादी पश्चात इन कट्टरपंथियों ने! विवाद में राजनीतिकों के प्रवेश ने मामले को विस्फोटक बना दिया। विवाद को वोट बैंक से भी जोड़ दिया गया। फिर क्या आश्चर्य कि समय-समय पर इस विस्फोटक के पलीते को चिंगारी मिलती रही! बड़ी कोफ्त होती है यह देख-सुनकर की विशाल भारत का विशाल समाज कथित धर्मगुरुओं व कट्टरपंथियों के इशारे पर संचालित होता है। झुठला दें इस सोच को! न तो हमारी संस्कृति इसकी इजाजत देती है और न प्राचीन सभ्यता। भारत देश का गौरवशाली इतिहास सर्वधर्म समभाव का पक्षघर है। कुछ टुच्चे-लुच्चे अवश्य धर्म को हथियार बना समाज को कांटने-बांटने का घृणित खेल खेलते रहते हैं। इनके चेहरे सामने हैं। ढूंढने की जरूरत नहीं। फिर क्यों न इन्हें इनकी औकात बता दी जाए? वो औकात जो इन्हें समाज में वजूद रखने की इजाजत नहीं देता फिर कैसे ये तत्व बेखौफ विचर रहे हैं? क्या हमारा समाज शक्तिहीन बन गया है?
इसे स्वीकारना संभव नहीं। हमारा समाज इतना अशक्त कदापि नहीं। जरूरत है पहल की। जरूरत है त्वरित निर्णय की! मुस्लिम समुदाय घोषणा कर दे कि ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड उनका प्रतिनिधित्व नहीं करता। वे वस्तुत: कुछ स्वार्थी राजनीतिकों की गोद में बैठकर धर्म की राजनीति कर रहे हैं। जब सभी पक्ष यह घोषणा कर चुके थे कि अयोध्या मसले पर अदालत का फैसला उन्हें मान्य होगा, तब फिर फैसले पर सवालिया निशान क्यों! फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का उनका निर्णय मामले को लंबा खींचने के मकसद से लिया गया है, मामले को सुलझाने के मकसद से नहीं! वे नहीं चाहते कि मामले का सर्वमान्य हल निकले। साफ है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी अगर उनके मन मुताबिक नहीं आया तब वे कानून-संविधान के खिलाफ जाकर कोई नया पैंतरा ढूंढेंगे। अब चुनौती है मुस्लिम समुदाय के विवेक को! ठुकरा दें ऐसे कथित रहनुमाओं को, उनकी दुकानों पर ताले लगा दें! ये तत्व समुदाय का हित चाहनेवाले नहीं, सिर्फ उनका उपयोग करने वाले हैं।

3 comments:

मनुदीप यदुवंशी said...

भई विनोद जी क्या खूब कहा है आपने. बिलकुल नुक्ते की बात कही है . असल में होना तो ऐसा ही चाहिए. मुझे लगता है की दोनों पक्षों को एक आधुनिक अस्पताल बनाये जाने के लिए समर्थन करना चाहिए जिस के बन जाने पर उसका लाभ सब को मिलेगा. इंसानियत की सच्ची सेवा हो पाएगी. भाई आपका लेख पढ़कर दिली ख़ुशी मिली. इस विचार को जितना प्रसारित कर सकें कीजिये. मैं आपके साथ हूँ. क्यूँ न एक मुहीम शुरू की जाये इस के लेकर.... आपके जवाब का इंतज़ार रहेगा मुझे.... इस सुन्दर, अर्थवान और उत्तम लेख के बधाई और बहुत बहुत धन्यवाद लीजिये.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यदु जी किसी पार्टी के प्रवक्ता बन सकते हैं. हो सकता है आगे चलकर अपने किसी स्थान को अस्पताल बनाने के लिये दान कर दें. उनके भविष्य को लेकर बहुत आशायें हैं.... बुखारी एण्ड कम्पनी के कारण ही कट्टरता इस कदर फैली है. जो लोग अभी जनतन्त्र में सर कलम करने की कोशिश कर सकते हैं, वे इस्लाम के शासन में जिसे शान्ति का मजहब कहते हैं, क्या करेंगे...

Naveen Tyagi said...

vinod ji musalmaano ki mang khand bharat me kabhi samapt nahi ho sakti.agar inko 33% jameen de bhi di gayi,to uske baad inki mang ram mandir ki puja rukwane ki hogi.
pichhle saikdo varsho se lagbhag is janm bhumi ko vapas lene ke liye lagbhag 500000 hinduon ne balidan diye hain. manudeep yaduvansi jaychand,or mansingh ki bhasha bol rahe hain. hum 80% hindu bhai musalmaano ko ramjanm bhumi ki 33%to kya 1 inch bhi jameen nahi denge.