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Saturday, October 23, 2010

अज्ञानी हैं, पागल हैं, चाटुकार हैं मोहन प्रकाश!

कांग्रेस प्रवक्ता मोहन प्रकाश या तो घोर बदतमीज हैं, घोर अज्ञानी हैं या फिर अव्वल दर्जे के चाटुकार। वैसे शंका यह भी उठी है कि कहीं वे कांग्रेसी लंका के विभीषण तो नहीं बन रहे! कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की लोकनायक जयप्रकाश नारायण से तुलना कर मोहन प्रकाश ने जयप्रकाश नारायण की आत्मा को तो रूलाया ही है, देश का अपमान भी किया है। आज अगर पूरा देश क्रोधित है तो बिल्कुल सही। स्वयं कांग्रेसियों की भौंहें तन गई हैं। वे मोहन प्रकाश के शब्दों में निहीत नीयत की पड़ताल करने लगे हैं। समझ में नहीं आता कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या वे सचमुच इतने बड़े अज्ञानी हैं कि उन्हें जयप्रकाश नारायण और उनकी संपूर्ण क्रांति की जानकारी नहीं? सत्ता की राजनीति से हमेशा दूर रहने वाले जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री, राहुल गांधी की दादी, इंदिरा गांधी के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सफल आंदोलन चलाया था। उन्होंने तत्कालीन सत्ता को खुली चुनौती दी थी। कुशासन और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर वर्गहीन समाज की स्थापना की मुहिम चलाई थी। जेपी तब जन-जन की आवाज बन बैठे थे। पूरा देश उनके साथ मर-मिटने को तैयार हो उठा था। सत्तालोलुप इंदिरा गांधी ने तब आंदोलन को कुचलने के लिए हर तरह के अलोकतांत्रिक कदम उठाए थे। जयप्रकाश नारायण सहित देश के प्राय: सभी बड़े नेता जेलों में ठूंस दिए गए थे। इंदिरा ने तब जनता से उसके मौलिक अधिकार भी छिन लिए थे। लोकतंत्र की हत्या कर देश पर आपातकाल थोप दिया था। सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं बाड़े में कैद कर दी गई थीं। उनकी जुबान पर बड़े-बड़े ताले लगा दिए गए थे। और तो और न्यायपालिका की आजादी और गरिमा भी तब सवालिया निशानों के घेरे में थी। अत्याचार का तब एक ऐसा दौर चला था कि स्वयं भारत माता लहूलुहान दिखने लगी थी। विरोध के स्वर कुचल दिए गए थे। यह सब इंदिरा गांधी ने अर्थात्ï राहुल गांधी की दादी ने किया था सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए। जयप्रकाश नारायण का विरोध उन्हें सहन नहीं था। उनका लोकनायक बनना इंदिरा को नहीं सुहाया था। लेकिन देश की जनता ने जयप्रकाश नारायण का साथ दिया, इंदिरा को झुकना पड़ा, देश दूसरी आजादी से रूबरू हुआ। जयप्रकाश नारायण पूरे देश के हृदय सम्राट के रूप में स्वीकार किए गए थे। आज मोहन प्रकाश ने जब राहुल गांधी की तुलना जयप्रकाश से कर इतिहास के उस घिनौने अध्याय की याद दिला दी है तब निश्चय ही उनकी नीयत और उनके ज्ञान पर सवाल उठेंगे। बिहार में चुनाव के मौके पर ऐसी टिप्पणी कर सच पूछिए तो मोहन प्रकाश ने कांग्रेस का बहुत बड़ा अहित कर डाला है। वे अपनी टिप्पणी में पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को बच्चों से प्यार होने की बात कहकर पता नहीं कांग्रेस का हित में कौन सा हित साधना चाहते थे! कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनिया गांधी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखा बिहार में खोले जाने का मुद्दा उठाने के बाद मोहन प्रकाश ने मुस्लिम मतदाताओं को खुश करने के लिए कलाम का नाम ले लिया! अगर ऐसा है तब निश्चय ही मोहन प्रकाश अव्वल दर्जे के चाटुकार हैं। यह विडंबना ही है कि अभी कुछ दिनों पूर्व राहुल गांधी ने चाटुकारों को 15 मिनट के अंदर पार्टी से निकाल बाहर करने की बात कही थी, उसी राहुल गांधी पर टनों मक्खन उंडेलकर मोहन प्रकाश ने स्वयं को क्या बड़ा चाटुकार साबित नहीं किया? अब देखना है राहुल गांधी उन्हें कितने मिनट के अंदर पार्टी से निकाल बाहर करते हैं। मोहन प्रकाश अपनी नादानी अथवा चाटुकारिता में यह भी भूल गए कि जिस राहुल की तुलना वे जयप्रकाश नारायण से कर रहे थे, उस राहुल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी को एक तराजू पर तौला था। संभवत: मोहन प्रकाश को यह नहीं मालूम कि जयप्रकाश आंदोलन के प्रमुख सेनापति नानाजी देशमुख संघ के ही सदस्य थे। नानाजी देशमुख ने भी आंदोलन के दौरान एक बार जयप्रकाश नारायण को मौत के मुंह से बचाया था। तब इंदिरा शासन ने षडय़ंत्र कर जेपी की हत्या करानी चाही थी। खेद है कि मोहन प्रकाश यह सब भूल राहुल-वंदना कर बैठे। लेकिन, उनकी टिप्पणी प्रतिउत्पादक सिद्ध हुई है। लोगों में विशेषकर बिहार के लोगों में चुनाव के दौरान आपातकाल की यादें ताजा हो गईं। उन मौलिक अधिकारों की चर्चा होने लगी जिन्हें आपातकाल के दौरान छिन लिया गया था। मोहन प्रकाश ने लोगों को यह भी याद दिला दिया कि राहुल गांधी लोकतंत्र की हत्या करने वाली इंदिरा गांधी के पोते हैं। सचमुच जब कोई व्यक्ति चाटुकारिता की होड़ में आगे निकलना चाहता है तब वह अपना विवेक खो बैठता है। ऐसे में वह बदतमीज, पागल और अज्ञानी तो लगेगा ही।