Friday, October 15, 2010
सुसंस्कृति की पक्षधर है जनता!
वसूली संस्कृति पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मौन पर कोई अचंभित न हो। यही तो कांग्रेस संस्कृति है। परंपरा के रूप में जारी और विरासत के रूप में प्राप्त वसूली संस्कृति पर मौन साध वस्तुत: सोनिया गांधी ने इस पुख्ता संस्कृति की पुष्टि कर दी है। कहां तो यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि वसूली के भंडाफोड़ होने के बाद सोनिया गांधी अपनी यात्रा रद्द कर देंगी, किन्तु उन्होंने रैली में न केवल भाग लिया बल्कि वसूली में कथित रूप से अंतर्लिप्त या यूं कहिए वसूली के लिए जिम्मेदार नेताओं की प्रशंसा कर इस 'संस्कृति' को मजबूती प्रदान कर दी। यही वर्तमान राजनीति का सच है। लेकिन, सच यह भी है कि राजनीति से जुड़े अनेक लोग आज भी मौजूद हैं जो कि 'संस्कृति' को स्वीकृति देने को तैयार नहीं। और सच यह भी है कि व्यापक भ्रष्टाचार-कदाचार, सड़-गल चुकी व्यवस्था, घोर अराजकता और परस्पर अविश्वास के बावजूद देश का बहुमत आज भी सुसंस्कृति का पक्षधर है, वसूली संस्कृति का नहीं। वर्धा रैली के नाम पर महात्मा गांधी की आत्मा को चाक-चाक कर जिस प्रकार धन उगाही की गई, उसे स्वीकार कर कांग्रेस नेतृत्व ने जो संदेश दिया है, वह बिल्कुल साफ है। कांग्रेस नेतृत्व को भी ऐसे ही लोग चाहिए जो धन उगाही कर खजाना भर सकें। चुनाव के दौरान उम्मीदवारों द्वारा घोषित संपत्ति के ब्यौरे गवाह हैं कि धनबल उम्मीदवारी के लिए अनिवार्य पात्रता है। जिसके पास यह शक्ति नहीं वह उम्मीदवार बनने की सोच भी नहीं सकता। वह जमाना चला गया जब उम्मीदवार की ईमानदारी और निर्धनता उसकी शक्ति के रूप में चिन्हित होती थी। मतदाता भी ऐसे उम्मीदवारों को अपना समर्थन प्रदान करते थे। अब सबकुछ बदल गया। धनबल और बाहुबल ने लोकतंत्र का हरण कर लिया है। नेता और कार्यकर्ता दोनों को धन चाहिए। अपने इसी धनबल के इस्तेमाल से वे मतदाता का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। योग्यता को पैमाना मानने वाले मतदाता तब असहाय हो जाते हैं जब उनके सामने योग्य विकल्प नहीं दिखता। 'अंधों में काना' ढूंढने के लिए वे विवश हो जाते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे जब धनबल से सज्जित (अयोग्य) उम्मीदवार सर्वथा योग्य उम्मीदवार को पछाड़ विजयी होते आए हैं। दरबार में पूछ ऐसे ही उम्मीदवारों की होती है, आदर इन्हें ही मिलता है। सोनिया गांधी ने इस कसौटी पर कुछ अनपेक्षित नहीं किया। वे तो यह देख पुलकित हुईं कि सैकड़ों बसों की व्यवस्था की गई और हजारों लोगों को उनके दर्शनार्थ उपस्थित कर दिया गया। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने वसूली के जिम्मेदार सभी राजनेताओं के कामों की भूरि-भूरि प्रशंसा कर डाली। तो क्या इसे देशवासी वर्तमान लोकतंत्र की नीयति मान स्वीकार कर लें? नहीं। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह ठीक है कि आज चारों ओर भ्रष्टाचार का बोलबाला है, किन्तु सच यह भी है कि आज चारों ओर ऐसे भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठाने वाले भी कम नहीं। जब-जब ऐसे लोगों ने सीमा पार की है, मर्यादा का उल्लंघन किया है, विरोध के स्वर की तीव्रता ने इन्हें हमेशा परास्त किया है। लोकतंत्र के इस मजबूत पक्ष को कोई अनदेखा न करे। वसूली के लिए जिम्मेदार लोग आज भले ही पुलकित हो उठे हों, कल उन्हें जनआक्रोश का सामना करना ही पड़ेगा। आज की उनकी मुस्कान तब मातम में बदल जाएगी। महात्मा गांधी ऐसा ही चाहते थे। लोकतंत्र आश्वस्त रह सकता है कि महात्मा गांधी की इच्छा को पूरा करने वाले वे हाथ आज मौजूद हैं। कांग्रेस नेतृत्व अब भी संशोधन कर ले। इसके पूर्व कि अत्यधिक विलंब हो जाए, वसूली संस्कृति को बढ़ावा देने के जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उन्हें दंडित किया जाए। जनता के सब्र की परीक्षा कोई न ले।
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1 comment:
जनता को बखूबी बेवकूफ बनाया गया है.... कांग्रेस से इससे अधिक की उम्मीद थी भी नहीं..
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