राजनीति और राजनीतिकों के ऐसे पतन की कल्पना हमारे लोकतंत्र ने कभी नहीं की होगी। क्या हो गया है लोकतंत्र के हमारे कथित कर्णधारों को, युवा पीढ़ी के कथित मार्गदर्शकों को और लोकतंत्र व संविधान के कथित रक्षकों को? सत्ता के लिए मर्यादा भूल नंगा हो जाने की ऐसी दशा के लिए आखिर जिम्मेदार है तो कौन? पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेंद्र मोदी व उनकी सरकार को 'मौत के सौदागर' निरूपित कर एक अत्यंत ही घृणित परंपरा की नींव डाली थी। जनता ने चुनाव में तब कांग्रेस को पराजित कर सोनिया के बयान के प्रति के अपनी नाराजगी प्रकट कर दी थी। भारतीय संस्कृति की यह खूबी बरकरार है। फिर राजनेता इससे सीख क्यों नहीं ले रहे? बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 'चोर और बेईमान' बताती घूम रही हैं। कांग्रेस सांसद संजय निरूपम नीतीश सरकार को महाभ्रष्ट बताते हुए गंगा में डुबो दिए जाने की मांग कर रहे हैं। उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती देश के ब्राह्मïणों को जूते मारे जाने की घोषणा कर चुकी हैं। शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे अपने भतीजे राज ठाकरे के 'पिछवाड़े' पर जूते मारने की बात कर रहे हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) अध्यक्ष शरद यादव कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को गंगा में फेंक देने का ऐलान कर रहे हैं। यह कौन सी राजनीति है? राजनीति का यह स्तर आदर्श तो नहीं हो सकता। युवा पीढ़ी विस्मित है लोकतंत्र के इन कथित पहरुओं के आचरण पर। एक समय था जब राजनेता अनुकरणीय आदर्श हुआ करते थे। किन्तु आज? खेद है कि वे लोकतंत्र की हत्या को अंजाम देने पर तुले हुए हैं। चरित्र और नैतिकता के साथ दिनदहाड़े चौराहे पर बलात्कार करने से भी इन्हें परहेज नहीं। 80 के दशक में एक अवसर पर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अब्दुल गनी खान चौधरी ने जब बंगाल की माक्र्सवादी सरकार को बंगाल की खाड़ी में डुबो दिए जाने की बात कही थी तब पूरे देश ने गनीखान चौधरी के शब्दों को अश्लील करार दिया था। उन्हीं दिनों एक और केंद्रीय मंत्री के.के. तिवारी के कड़वे शब्दों को अश्लीलता की श्रेणी में रखकर एक मराठी दैनिक के तत्कालीन संपादक ने तिवारी की तुलना 'राजीव गांधी के बेलगाम कुत्ते' से कर दी थी। हालांकि आपत्तिजनक संपादक की वह टिप्पणी भी थी। उन्होंने स्वयं को पतित राजनीतिकों की पंक्ति में खड़ा कर लिया था। मुझे दुख इस बात का हुआ कि घोर आपत्तिजनक राजनीति की ऐसी शैली अभी भी बरकरार है। इस प्रवृत्ति पर अंकुश की आवश्यकता है। क्या कोई पहल करेगा? लोकतंत्र और महान भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए यह जरूरी है। एक ओर जब विकास के नाम पर चुनावी मैदान में उतरने की बातें की जा रही हैं तब एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में आपत्तिजनक अश्लील शब्दों का सहारा क्यों? मेरा मानना है कि इस पर अंकुश के लिए सार्थक पहल युवा पीढ़ी कर सकती है। चुनाव में ऐसे तत्वों को पराजित कर उन्हें सबक सिखा दिया जाना चाहिए।
इसी क्रम में भ्रष्टाचार की गंगोत्री की चर्चा भी इन दिनों तेज हे। मुंबई के कुलाबा स्थित आदर्श सोसाइटी में फ्लैट आबंटन को लेकर जो हृदयविदारक तथ्य सामने आए हैं वे भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे को रेखांकित कर रहे हैं। कथित रूप से करगिल युद्ध पीडि़तों के लिए निर्मित उस भवन में राजनीतिकों, सेनाधिकारियों व सरकारी अधिकारियों ने जो बंदरबाट की उससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि आज के राजनीतिक व अधिकारी अपने हक में लूट के लिए युद्धपीडि़तों एवं सैन्य विधवाओं के हक पर भी डाका डाल सकते हैं। भ्रष्टाचार की पुरानी परंपरा पर चूंकि रोक लगाने की सार्थक व गंभीर कोशिश कभी नहीं की गई, यह रोग फलता-फूलता चला आया। प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में सिराजुद्दीन जीप घोटाले से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्र्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले तक की भ्रष्ट यात्रा सामने है। इनके बीच में इंदिरा गांधी के कार्यकाल का पाइप लाइन घोटाला व पांडिचेरी लाइसेंस घोटाला, राजीव गांधी के कार्यकाल का बोफोर्स व फेयरफैक्स घोटाला, नरसिंहराव के कार्यकाल का सांसद रिश्वत कांड, हर्षद मेहता कांड व दूरसंचार घोटाला, अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का ताबूत घोटाला आदि लोकतांत्रिक भारतीय इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज हैं। सभी शामिल हैं इनमें। भ्रष्टाचार की गंगोत्री की पहचान कठिन नहीं। हां, अधिकारियों के साथ मिलकर राजनेताओं ने इन पर परदा डाल रखा है। चूंकि इस लूट में प्रताडि़त आम जनता होती रही है, उसकी गाढ़ी कमाई को उसकी जेबों से निकाल लिया जाता है, विरोध व अंकुश की पहल जनता को ही करनी होगी। आगे युवा पीढ़ी को ही आना होगा। आह्ïवान है कि वे दलगत राजनीति से इतर लोकतंत्र व देशहित में कदमताल करते हुए भ्रष्ट, स्वार्थी, देशद्रोही ऐसे तत्वों को कुचल डालें।
1 comment:
इन ^%#*($())&^%$$$## को सरेआम चौराहे पर सूली पर चढ़ा दिया जाये. ये *(*(#^$%$% ही हैं बेलगाम मंहगाई, भ्रष्टाचार के पीछे...
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