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Friday, January 8, 2010

जातिवादी, भाषावादी नहीं है विदर्भ आंदोलन!

नहीं, चव्हाण साहब, नहीं! पृथक विदर्भ राज्य की मांग के मुद्दे पर मुख्यमंत्री के रूप में आपका व्यवहार गलत है। तर्क का आखिरी कोना भी आपकी बातों को सही नहीं ठहराता। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री किन्हीं अज्ञात कारणों से पूर्वग्रह से ग्रसित हैं। किसी भी मांग पर मतभेद हो सकते हैं। मतभेद के कुछ सही कारण भी हो सकते हैं। किन्तु मामला जब एक राज्य के क्षेत्र विशेष के लोगों की आकांक्षा-भावना का हो तब शासकीय निर्णय किसी गुट या व्यक्ति विशेष की इच्छा-अनिच्छा आधारित नहीं होना चाहिए।
जब विदर्भ के लोग अपने लिए एक पृथक राज्य की इच्छा व्यक्त कर रहे हैं तब उनकी इच्छा के आदर की जगह तिरस्कार क्यों? अगर मुख्यमंत्री को लगता है कि मांग अनुचित है तब सर्वमान्य तर्क देकर मांग का विरोध करें। खेद है कि ऐसी सकारात्मक सोच के उलट उन्होंने आरोप जड़ दिया कि भाषावाद, प्रांतवाद और जातिवाद भड़काकर महाराष्ट्र को तोडऩे का प्रयास हो रहा है। सरासर झूठ है यह। दुर्भावना प्रेरित है ऐसी सोच। क्या कांग्रेस के सांसद द्वय विलास मुत्तेमवार, दत्ता मेघे भाषा, प्रांत और जाति के नाम पर महाराष्ट्र को तोड़ विदर्भ का निर्माण करना चाहते हैं! क्या महाराष्ट्र मंत्रिमंडल के सदस्य डॉ. नितीन राऊत और शिवाजीराव मोघे मराठी भाषा या जाति विरोधी हैं? क्या पूर्व सांसद बनवारीलाल पुरोहित, नरेश पुगलिया और पूर्व मंत्री सतीश चतुर्वेदी तथा अनीस अहमद प्रांतवाद कर रहे हैं, जातीयता कर रहे हैं? क्या जामुवंतराव धोटे मराठा विरोधी हैं? ऐसी सोच स्वयं में एक विकृति है। विदर्भ आंदोलन का नेतृत्व महाराष्ट्र, मराठा, मराठी विरोधी कतई नहीं। यह तो विगत 50 वर्षों की उपेक्षा है जिसने विदर्भ वासियों को आंदोलनरत होने को मजबूर किया। क्षेत्र के विकास के लिए, विदर्भ के सम्मान के लिए, स्वाभिमान के रक्षार्थ विदर्भवासियों ने अपने लिए पृथक राज्य की मांग रखी है।
विकास के लिए छोटे राज्यों का सिद्धांत केन्द्रीय स्तर पर स्वीकार किया जा चुका है। पड़ोसी छत्तीसगढ़ प्रमाण है कि मध्य प्रदेश से अलग होकर वह किस गति से एक विकसित राज्य का दर्जा प्राप्त करने की ओर अग्रसर है। पृथक विदर्भ की उपयोगिता, सार्थकता के पक्ष में वस्तुत: जितने तर्क आंदोलनकारी नेता दे रहे हैं वे कम हैं। सच तो यह है कि हजारों तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण संयुक्त महाराष्ट्र के लिए बार-बार 105 शहीदों की याद दिलाकर यह चेतावनी देने से नहीं चूकते कि राज्य को तोडऩे का प्रयास विफल साबित होगा।
संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के शहीदों का तर्क शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे बार-बार दिया करते हैं। उनकी संकुचित सोच को समझना कठिन नहीं। कठिन है अशोक चव्हाण की सोच को समझना। एक ओर तो वे यह कहते हैं कि इस मांग पर फैसला पार्टी आलाकमान करेंगी दूसरी ओर मांग के विरोध में तर्क भी दे डालते हैं। इसे ही पूर्वग्रह कहते हैं। वैसे मैं मुख्यमंत्री को यह याद दिलाना चाहूंगा कि एक अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कह चुकी हैं कि विदर्भ राज्य के निर्माण के लिए महाराष्ट्र विधानमण्डल प्रस्ताव पारित करें, नेतृत्व उस पर विचार करेगा। क्या प्रदेश कांग्रेस के लिए सोनिया की यह शर्त बाध्यकारी नहीं?
मुख्यमंत्री समझ लें कि यह आंदोलन प्रांतवाद, भाषावाद या जातिवाद आधारित नहीं है। विदर्भ ऐसे किसी 'वाद' का पक्षधर हरगिज नहीं। वह सिर्फ विदर्भ का पक्षधर है। वह भी क्षेत्र के वांछित विकास के लिए। शेष महाराष्ट्र को वह अपना बड़ा भाई मानता है और हमेशा मानता रहेगा। क्या एक बड़ा भाई-कुछ नुकसान सहकर ही सही - अपने छोटे भाई की जायज मांग को पूरा नहीं कर सकता?

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