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Tuesday, December 15, 2009

नहीं चव्हाणजी, नहीं! यहां गलत हैं आप!!

अचानक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण बाल ठाकरे और राज ठाकरे की भाषा कैसे बोलने लगे? वह कौन-सी दिव्य-दृष्टि है जिससे उन्होंने देख लिया कि विदर्भवासी पृथक विदर्भ राज्य नहीं चाहते? यह जानकारी उन्हें कहां से मिली? चुनौती है हमारी, वे विदर्भ में सर्वेक्षण करा लें, उन्हें पता चल जाएगा कि क्षेत्र की 90 प्रतिशत से अधिक जनता अपने लिए विदर्भ राज्य चाहती है। फिर, किस जनता की आवाज बन मुख्यमंत्री चव्हाण ने झारखंड की राजधानी रांची में ऐलान कर दिया कि विदर्भ की जनता पृथक राज्य नहीं चाहती है? समझ में नहीं आता कि चव्हाण को ऐसी जानकारी किसने दी? अगर खुफिया एजेंसियों ने उन्हें ऐसा बताया है तब निश्चय ही वे गलत सूचना देने के अपराधी बन गए हैं। यह संभव है कि उनकी पार्टी कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पृथक विदर्भ के विरोध में ऐसी जानकारी दी होगी। निश्चय ही, ये वही नेता होंगे जो विदर्भ में तो पृथक राज्य के आंदोलन में शामिल हो ऊंची आवाज में यह बताते हैं कि क्षेत्र का विकास बगैर अलग राज्य के हो ही नहीं सकता, विदर्भ का पिछड़ापन तभी दूर होगा, जब विदर्भ राज्य अस्तित्व में आएगा और यहां की जनता अपने लिए योजना बनाएगी, उन्हें क्रियान्वित करेगी। यह सब मीडिया में प्रचार पाने के लिए होता है। क्योंकि, दूसरी ओर यही नेता शासन को समझाते हैं कि वस्तुत: पृथक राज्य में विदर्भवासियों की कोई दिलचस्पी नहीं। इसका कारण ऐसे नेताओं का मुंबई-मोह है। समृद्ध मुंबई व पश्चिम महाराष्ट्र में इनकी आर्थिक दिलचस्पी है। नेतागीरी चमकाने के लिए विदर्भ और जेबें भरने के लिए मुंबई! लगता है इन्हीं नेताओं द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर मुख्यमंत्री चव्हाण इस निष्कर्ष पर पहुंच गए कि विदर्भ की जनता अपने लिए पृथक राज्य नहीं चाहती। यह सरासर गलत है। इस निष्कर्ष को तो विदर्भ की गलियों में खेलने वाला छोटा बच्चा भी चुनौती दे डालेगा। चूंकि मुख्यमंत्री चव्हाण ने निर्णय भी सुना डाला कि उनकी सरकार विदर्भ की मांग को कभी स्वीकार नहीं करेगी, विदर्भवासी आहत महसूस कर रहे हैं। एक पुरानी व जायज मांग को एक झटके में खरिज कर चव्हाण ने इस क्षेत्र की भावना के साथ खिलवाड़ किया है। दु.ख इस बात का भी है कि मुख्यमंत्री के शब्दों में 'अहं' परिलक्षित हुआ है। अशोक चव्हाण जैसा सुलझा हुआ व्यक्ति आखिर यह कैसे बोल गया कि ''मैं इसे पूरी तरह अस्वीकार करता हूं।'' एकबारगी तो मुझे तत्संबंधी खबर ही गलत लगी। पूछताछ की। पता लगा कि चव्हाण ने वाकई में ऐसा कहा है। पूछताछ के दौरान मौजूद एक पत्रकार मित्र ने यह जड़ दिया कि ठीक है , आज ये स्वीकार नहीं करें, लेकिन जब कल पूरा विदर्भ 'जय विदर्भ' के नारों के साथ सड़क पर होगा, तब क्या करेंगे? कोई कड़वा वचन नहीं। सीधी-सपाट बात यह कि तब मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण लोक-आवाज के समक्ष नतमस्तक हो, अपने हाथों से विदर्भ के झंडे का अनावरण करेंगे।

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

ना जाने देश का भविष्य क्या होगा अब....

चलते चलते said...

पूर्व कृषि मंत्री रणजीत देशमुख ने अशोक चव्‍हाण को सुझाव भेजा है कि विदर्भ के किसी विधायक को उप मुख्‍यमंत्री बनाया जाए। उन्‍होंने यह भी कहा है कि महाराष्‍ट्र विधानसभा के ताजा चुनावों में विदर्भ ने कांग्रेस के प्रति जो निष्‍ठा दिखाई उसका बदला यहां के विधायक को उपमुख्‍य मंत्री बनाकर चुकाना चाहिए। देशमुख की हिम्‍मत यह नहीं है कि वे बोल दें चव्‍हाण साब क्‍या बयान दे डाला राची जाकर, हमें अलग विदर्भ दीजिए। विदर्भ के किसी भी नेता में दम नहीं है, कोई वहां की भयंकर गर्मी में दस दिन आमरण अनशन पर केसीआर की तरह बैठ नहीं सकता। एक कहावत है नपुंसक आंदोलनकारी नहीं हो सकते। विदर्भ के नेताओं जरा शर्म करो...क्‍यों धोखा देना चाहते हो अपनी प्रजा को। विदर्भ की जनता तो अलग राज्‍य ही चाहती है। अब लगता है जनता को ही जागना पड़ेगा और नया नेतृत्‍व चुनना पड़ेगा जो नपुंसक न हो।

Ganesh D said...

The people of Vidarbha really don't know whether they want separate state or not. People are very much ignorant about the benefits and losses of the separate state. I believe the media has failed in this case to put a clear picture in front of people. Media should play a decisive role in a political system where people are supposed to take decisions. People ignorant of facts and having opinions based on propaganda and campaigns cannot take the decisions that are best for them.