Thursday, December 24, 2009
अब होगी शिबू सोरेन की असली परीक्षा!
झारखंड की राजनीति में मीडिया और तथाकथित चुनावी पंडितों द्वारा घोषित 'मृत शेर' अचानक दहाड़ कैसे उठा? हां! मैं बातें कर रहा हूँ झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी की। विधानसभा चुनाव पूर्व सभी ने उन्हें अप्रासंगिक घोषित कर दिया था। कहा गया था कि शिबू सोरेन की लोकप्रियता झारखंड में खत्म हो गई है, बल्कि लोग उनसे घृणा करने लगे हैं, भ्रष्ट बताया गया, पुत्र मोह वाले धृतराष्ट्र निरूपित किए गए। लिखा गया और बोला गया कि इस बार चुनाव में मतदाता उन्हें नकार देगा। लेकिन परिणाम ने सभी के मुंह बंद कर दिए। जाहिर है इस करिश्मे को अंजाम दिया झारखंड के मतदाता ने। 18 सीटों पर मोर्चा के उम्मीदवारों को विजय का ताज पहनाकर। इनमें शिबू सोरेन के पुत्र व पुत्र वधू भी शामिल हैं। अर्थात धृतराष्ट्र का आरोप भी गलत साबित हुआ। शिबू अब मुख्यमंत्री बनेंगे। यही वह मुकाम है जहां पहुंचने के लिए शिबू व्यग्र थे। 70 के दशक में मृत घोषित पृथक झारखंड आंदोलन को पुनर्जीवित कर इसे हासिल करने वाले शिबू सोरेन हर दृष्टि से इस पद के हकदार हैं। मुझे याद है, पिछले वर्ष एक बार जब मैंने शिबू के पक्ष में जानकारी देते हुए लिखा था कि सोवियत रूस और चीन में उन्हें भारत का दूसरा गांधी कभी निरूपित किया था तब कुछ प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं आईं थीं। लेकिन इस सच को भला कैसे झुठलाया जा सकता है। शिबू 'गुरुजी' यूं ही नहीं बने। कुर्बानियों का लंबा इतिहास है। सूदखोर महाजनों के खिलाफ और अपने समाज में नशामुक्ति का अभियान चला उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया था। राजनीति के तंग, स्याह गलियारे से बेदाग निकलना किसी मानव के लिए आज संभव नहीं है। कालिख के दाग बहुत संभल कर चलने के बावजूद यहां-वहां लग ही जाते हैं। यह समाज व वर्तमान राजनीति का यथार्थ है। लेकिन जब शिबू केंद्रीय मंत्री बने, तब उनके खिलाफ षड्यंत्र रचे गए। उन तत्वों द्वारा जिनकी निगाहें झारखंड की अकूत खनिज व वन संपदा पर थी। इस गिरोह की दाल शिबू के रहते गलनी संभव नहीं हो रही थी। षड्यंत्र को अंजाम दिया गया। उन्हें जेल तक भिजवा दिया गया। इस वर्ग से प्रभावित प्रचार तंत्र ने ही शिबू के खिलाफ वातावरण तैयार करने और उन्हें राजनीतिक रूप से 'मृत घोड़ा' प्रचारित किया। बूढ़ा शेर बताया गया। लेकिन अंत में मतदाता ने दूध का दूध और पानी का पानी कर ही दिया। यह सच सामने आ गया कि शिबू सोरेन की लोकप्रियता व प्रभाव में कोई कमी नहीं आई है। पृथक झारखंड प्रदेश के उदय का श्रेय चूंकि शिबू को जाता है, राज्य को एक नई दिशा देने की उनकी बेचैनी समझी जा सकती है। पिछले 9 वर्षों में छह मुख्यमंत्री देख चुका झारंखड राज्य अब स्थायित्व का आग्रही है। समय की मांग है कि राज्य हित में कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियां शिबू सोरेन को सहयोग, समर्थन देकर सत्ता की बागडोर सौंप दें। उन्हें अवसर प्रदान करें ताकि शिबू अपने वादों को पूरा कर सकें। शिबू सोरेन की तब परीक्षा भी हो जाएगी।
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