Tuesday, December 1, 2009
कोड़ा का सच कभी सामने आएगा
मधु कोड़ा गिरफ्तार तो हुए किंतु इस पूरे प्रकरण में जो यक्ष प्रश्न खड़े हो गए हैं, क्या कभी उनके जवाब मिल पाएंगे? सत्तापक्ष सतर्कता आयोग, प्रवर्तन निदेशालय या फिर आयकर विभाग चाहे जितनी सफाई, जितना तर्क दे लें इस मामले में 'सच' और 'न्याय' अंधेरे में और संदिग्ध बने रहेंगे। हजारों करोड़ रूपए के हवाला मामले में आरोपित कोड़ा पूरे देश की सत्ता राजनीति में एक अकेले ऐसे उदाहरण हैं, जो मात्र 5 विधायकों के गुट के नेता के रूप में झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे। कैसे संभव हुआ था ऐसा? प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सर्वाधिक विधायक थे। जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त की घिनौनी राजनीति को हवा दी गई और भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस-झामुमो और राजद ने मिलकर मधु कोड़ा के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज रख दिया। इन दलों के अवसरवादी समर्थन से कोड़ा अच्छी तरह वाकिफ थे। बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी के एवज में कोड़ा से जो वादे लिए गए, 'कोड़ा कांड' का बीजारोपण तभी हो गया था। नीचे से उपर तक भ्रष्टाचार से ओत-प्रोत भारतीय राजनीति में एक बार फिर गंदा खेल खेला गया था। सिर्फ पाने और गंवाने के नाम पर शून्य के धारक कोड़ा ने तब अगर भ्रष्टाचार की गंगोत्री के द्वार खोल दिए, फिर आश्चर्य क्यों? व्यवस्था में निर्दलीयों की भागीदारी न होने के बावजूद उन्हें सिर पर बैठाने की इस परिणति पर फिर विलाप क्यों? सभी जिम्मेदार हैं इसके लिए। चाहे कांग्रेस नेतृत्व हो या राष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव 'कोड़ा कांड' के सूत्रधार-लेखक ये ही हैं। चुनौती है जांच एजेंसियों को कि वे दूध का दूध और पानी का पानी कर दिखाएं। कोई भी निष्पक्ष जांच सभी को घेरे में ले लेगी। 'गंगोत्री' के 'चरणामृत' को सभी ग्रहण कर चुके हैं। चूंकि कोड़ा की गिरफ्तारी को लेकर अनेक शंकाएं प्रकट की जा रही थीं, मीडिया ने नजर गड़ा रखी थी। झारखंड विधानसभा चुनाव में खुलकर प्रचार कर रहे कोड़ा अपने विरूद्ध जारी किए गए 'समन' की अवहेलना कर रहे थे। घोषणा कर दी थी कि चुनाव के बाद ही वे पूछताछ के लिए उपलब्ध होंगे। विपक्ष इसे साजिश बता रहा था। आरोप लगी कि जांच एजेंसियां जान-बूझकर उन पर हाथ नहीं डाल रही हैं। यह भी कहा गया कि जांच मंद कर दी गई है और दिशा से भटक रही है। बेशक ये बहुप्रचारित आशंकाएं ही कोड़ा की तत्काल गिरफ्तारी का कारण बनीं। अब गेंद जांच एजेंसियों के पाले में है। आरोप सिद्ध होने पर राजनीति से संन्यास ले लेने की घोषणा करने वाले कोड़ा का अपराध कभी साबित हो पाएगा? लोगों की शंका के कारण मौजूद हैं। जांच एजेंसियों को चुनौतियां यूं ही नहीं दी जा रहीं। दिल्ली में बैठे सत्तापक्ष की इस मामले में अंतर्लिप्तता से इनकार फिलहाल संभव नहीं। इसलिए भी जरूरी है कि पूरे मामले की निष्पक्ष और तत्काल जांच हो। अन्यथा संदेहों के काले बादल हमेशा विद्यमान रहेंगे। संसदीय लोकतंत्र और इसके तीनों स्तंभ न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका निष्क्रियता और पक्षपात के अपराधी बन जाएंगे। अविभाजित बिहार के लिए यह दूसरा अवसर है जब कोई पूर्व मुख्यमंत्री गिरफ्तार हुआ है। इसके पूर्व 1970 में एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह अपने निजी मेडिकल कालेज में घपले के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं। क्या यह सिलसिला जारी रहेगा?
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