centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Sunday, January 17, 2010

पत्रकारिता कल की, पत्रकारिता आज की!

यह न तो संयोग है, न ही मजाक। विडंबना भी नहीं। यह कतिपय अज्ञानियों-अल्पज्ञानियों का मिथ्या संसार है, जहां सच पर झूठ का आवरण डाल उसे ही सच साबित करने की कोशिश की जाती है। क्यों न इसे कुत्सित प्रयास के रूप में लिया जाए? खीझ होती है यह देख-सुनकर कि जब भी सांप्रदायिकता की बात आती है, भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार को कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है। तथाकथित बुद्धिजीवी और मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इस कृत्य को एक फैशन के रूप में अपना लिया है। ठीक इसी तरह, फैशन की तरह यह प्रचलन ही चल पड़ा है कि अपनी गलतियों और मजबूरियों पर पर्दा डालने के लिए पत्रकार-संपादक मालिकों को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। क्या यही पत्रकारीय मूल्य, सिद्धांत और आदर्श के क्षरण का सच है? पतित तो शायद कतरा जाए, किंतु सच के झंडाबरदार इसे स्वीकार करने में झिझकेंगे नहीं।
शनिवार की संध्या नागपुर में संपन्न एक पत्रकारीय समारोह में 'कल की पत्रकारिता, आज की पत्रकारिता' पर वरिष्ठ पत्रकारों के विचार सामने आए। अंग्रेजी दैनिक हितवाद के प्रबंध संपादक बनवारीलाल पुरोहित, प्रेस कौंसिल के पूर्व सदस्य मेघनाथ बोधनकर और श्रमिक पत्रकार आंदोलन से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार टी.बी. गोल्हर विगत कल की उज्ज्वल पत्रकारिता और वर्तमान की कालिमायुक्त पत्रकारिता को लेकर चिंतित दिखे। इनके द्वारा व्यक्त शब्दों पर मंथन कर ही रहा था कि दैनिक भास्कर में प्रकाशित नूर अली के आलेख पर नजर पड़ी। अली ने अरुण शौरी और प्रभाष जोशी जैसे साहसिक बल्कि दु:साहसिक पत्रकार-द्वय के उदय के लिए इंडियन एक्सप्रेस के मालिक (स्व.) रामनाथ गोयनका को श्रेय दिया है। अली के अनुसार, अगर गोयनका मालिक नहीं होते, तब शौरी और जोशी चर्चित नहीं होते। अली ने राहुल बारपुते और रैन माथुर की भी चर्चा करते हुए सवाल उठाया है कि आज के पत्रकार को क्या वे स्थितियां सुलभ हैं, जिनमें प्रभाष जोशी जैसे व्यक्तित्व पैदा होते हैं?
नागपुर के पत्रकारों से लेकर नूर अली तक ने स्वयं को परिस्थिति विशेष और व्यक्ति विशेष में सिकोड़ लिया। कल की पत्रकारिता के सूर्य बाल गंगाधर तिलक, गणेशशंकर विद्यार्थी, विष्णु पराडकर, लाला लाजपत राय आदि यदि बगैर अस्त हुए समाज में चमकते रहे तब इस कारण कि तात्कालिक परिस्थितियों व जरूरतों के अनुरूप उनकी लेखनी आजाद भारत के पक्ष में अंग्रेजों के खिलाफ आग उगलती रही। इसके साथ ही तब समाज में व्याप्त कुरीतियों-कुप्रथाओं के खिलाफ भी वे योद्धा बनकर खड़े हो गए थे। निडरता व ईमानदारी उनकी पूंजी थी। वे सफल रहे। कल की पत्रकारिता का यह अध्याय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।
आज की पत्रकारिता अर्थात् आजादी के बाद की पत्रकारिता का चरित्र-स्वरूप बदल गया। आजादी के आरंभिक वर्षों को छोड़ दें तब पत्रकारिता ने मूल्य, आदर्श और सिद्धांत की परिभाषा को बदल डाला। पत्रकारों के लक्ष्य बदल गए। सुविधाभोगी बन गए वे। अपने निजी लाभों की पूर्ति के लिए उसने सरकार व सत्ता से हाथ मिला लिया। राजनीतिक शक्ति और अर्थलाभ के लिए मालिकों ने गोलंबद होकर पत्रकारीय मूल्य के पर कतरने शुरू कर दिए। हां, रामनाथ गोयनका के रूप में अवश्य एक ऐसा मालिक था, जिसने लाभ-प्रलोभन को लात मार भ्रष्ट सत्ता को चुनौती दी थी। शासकीय प्रताडऩाओं को झेलते रहे, झुके कभी नहीं। तब बिल्कुल ठीक है कि शौरी, शौरी न होते, जोशी, जोशी न होते, अगर उनके सिर पर गोयनका जैसे मालिक का हाथ नहीं होता। लेकिन पत्रकार-संपादक इसे अपवाद मान अपने कर्तव्य से पल्ला न झाड़ें। मैं इस बात पर दृढ़ हूं कि अगर संपादक-पत्रकार चाहें तो मालिक भी पत्रकारीय मूल्य के रक्षार्थ कदमताल करने लगेंगे। शर्त यह है कि पत्रकार पहले स्वयं को पाक-साफ साबित करें। अनुकरणीय आचरण प्रस्तुत करें। मालिकों के दबाव का बहाना न बनाएं। मालिक तो हावी तब होता है जब वह अपने पत्रकारों को रेंगते-गिड़गिड़ाते पाता है। शायद उनका कमजोर पाश्र्व इसके लिए उन्हें मजबूर करता है। मालिक की नजर में इनका कोई महत्व नहीं होता। जबकि ईमानदार-निडर पत्रकारीय मूल्यों व सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित पत्रकार-संपादक मालिकों की दृष्टि में सम्मान के पात्र होते हैं। वैचारिक मतभेद की स्थिति में एक साथ मिल-बैठ बातचीत कर मतभेद दूर किए जाते हैं-टकराव नहीं होते। आज की पत्रकारिता को नकारात्मक दृष्टि से देखने वाले इस पक्ष का अवलोकन करें। पत्रकारिता का पूरा का पूरा तालाब अभी दूषित नहीं हुआ है। जरूरत है इनमें प्रविष्ट विषयुक्त मछलियों की पहचान कर निकाल बाहर फेंकने की। पत्रकारीय आभा की चमक लौट आएगी, गरिमा पुनस्र्थापित हो जाएगी।

3 comments:

बाल भवन जबलपुर said...

. पत्रकारीय आभा की चमक लौट आई है अब खद्दरधारी चश्मिश टाइप पत्रकार नहीं मिलते चमकदार
प्रेस भी चमक रहें हैं कारपोरेट आफिस हैं उनके गरिमा पुनर्स्थापित हो जाएगी या नहीं यह कहना कठिन है ।

शब्द सितारे... said...

apne sahi kaha hain, main sahmat hun aapse.

http://uttamstruthordare.blogspot.com/

aartinigam07 said...

aapne bilkul sahi kaha aur is wjh se new true journalist ko bhi moka milega.....