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Sunday, January 17, 2010

अब फैसला हो जाए कि सांप्रदायिक कौन?

पृथक विदर्भ आंदोलन पर सांप्रदायिकता का रंग चढ़ाने की कांग्रेसी कोशिश निंदनीय है। एक अपराध है यह। लगता है सांप्रदायिकता की राजनीति को जीवित रखने का कोई भी अवसर कांग्रेस हाथ से जाने देना नहीं चाहती। मजे की बात कि ऐसा कर वह धर्मनिरपेक्ष बनी रहती है। लगता है, कांग्रेस ने यह मान लिया है कि कम से कम सांप्रदायिकता के मुददे पर देश के लोग अज्ञानी हैं और यह भी कि देश सांप्रदायिकता के सच से अनजान है। कांग्रेस का यह आकलन आंशिक रूप से सच है। कारण जान लें। हमारे देश में तथाकथित सांप्रदायिकता के खिलाफ धर्मनिरपेक्षता का ऐसा ताना-बाना बुन दिया गया है कि समाज का निर्णायक वर्ग इसकी चकाचौंध में अपनी दृष्टि गंवा बैठा है। अन्यथा महिमामंडित धर्मनिरपेक्षता की कुरूप वास्तविकता कब की सामने आ गई होती। और तब सांप्रदायिकता को मोहरा बना राजनीति करने वाले कथित धर्मनिरपेक्ष राजदल और राजनेता दूसरा वैकल्पिक शब्द तलाशते मिलते। ऐसा अब तक नहीं हो पाया तो सिर्फ इसलिए कि इस मुद्दे पर निष्पक्ष राष्ट्रीय बहस कभी नहीं हो पाई। सत्ता और सुविधा की राजनीति करने वाले भला बिल्ली के गले में घंटी बांधें तो क्यों?
इसके पहले कि यह अवस्था आत्मघाती बन जाए, देश इस बात पर अंतिम रूप से फैसला ले ले कि वास्तव में सांप्रदायिक है कौन! अभी कल ही मैंने टिप्पणी की थी कि सांप्रदायिकता को भारतीय जनता पार्टी के साथ चस्पा कर देना एक फैशन हो गया है। शायद जब मैं इस टिप्पणी को शब्दांकित कर रहा था, तब उधर मुंबई में महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे अपनी पार्टी के सदस्यों को चेतावनी दे रहे थे कि पृथक विदर्भ के मुद्दे पर कांग्रेसजन भाजपा का साथ न दें। क्योंकि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है और उसका भाजपा समान सांप्रदायिक दल से कुछ लेना-देना नहीं है। क्या कांग्रेसजन यह बताएंगे कि स्वयं ठाकरे की उपर्युक्त टिप्पणी सांप्रदायिक नहीं है? बिल्कुल सांप्रदायिक है। ठाकरे ने पृथक विदर्भ राज्य सरीखे जन आंदोलन पर सांप्रदायिकता का रंग चढ़ाने की कोशिश की है। धर्म, जाति, भाषा से बिल्कुल अलग विदर्भ आंदोलन एक सर्वदलीय आंदोलन के रूप में गति प्राप्त कर रहा है। विदर्भ के ही माणिकराव ठाकरे अगर नहीं चाहते कि विदर्भ अलग राज्य बने तब वे कांग्रेस नेतृत्व से ऐसी घोषणा क्यों नहीं करवा देते? फिर विदर्भ के कांग्रेसी स्वयं फैसला कर लेंगे कि उन्हें आंदोलन के साथ रहना है या नहीं। लेकिन ईश्वर के लिए माणिकराव ठाकरे विदर्भ आंदोलन को सांप्रदायिक रंग न दें। विदर्भवासी इसे स्वीकार नहीं करेंगे। कथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में किसी आंदोलन को सांप्रदायिक करार देना एक घटिया राजनीति है। शायद माणिकराव ठाकरे ने अपनी टिप्पणी में निहित इस पक्ष की कल्पना नहीं की होगी। संभव है कांग्रेस नेतृत्व के आदेश पर उन्होंने विदर्भ आंदोलन में भाजपा की सक्रिय सहभागिता को देख ऐसी टिप्पणी कर डाली हो। यह दुर्भाग्यजनक है। पृथक विदर्भ के लिए जब यहां सभी राजनीतिक दल अभूतपूर्व एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं, एक मंच पर एकत्रित हो इतिहास रच रहे हैं, माणिकराव ठाकरे के इस बयान ने एक बार फिर अगर कुछ साबित किया है तो यही कि कांग्रेस सांप्रदायिकता की ओछी राजनीति को जीवित रखना चाहती है। धर्मनिरपेक्षता का तमगा तो उसने वोट की राजनीति के लिए ही लगा रखा है। लेकिन कब तक? देश अब सांप्रदायिकता पर निर्णायक बहस चाहता है। वह इस बात पर फैसला चाहता है कि सांप्रदायिकता क्या है और सांप्रदायिक कौन है?
-(कल जारी...)

3 comments:

RAJ SINH said...

सही चीरफाड़ .बेशर्म कांग्रेस के बेशर्म नेताओं से यही उम्मीद .

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

धरमनिर्पेक्षता कर आवरण ओढ़े इन्होने इस देश के मतदाताओं को मूर्ख बनाए के सिवा और किया क्या ?

Satyajeetprakash said...

सर लोग सब समझते हैं. जरूरत है रेखा थोड़ी और मोटी होने की, ताकि मुर्ख भी समझ जाएं