कॉंग्रेस पार्टी में ' परिवार' के आतंक का ताजा उदाहरण लोकतंत्र को चुनौती देने वाला है। यह पुन: चिन्हित हुआ कि कांग्रेस सोती है तो ' परिवार' के इशारे पर, जागती है तो ' परिवार' के इशारे पर। नहीं, मैं यहां संघ परिवार की बात नहीं कर रहा, मैं उस परिवार की बात कर रहा हूँ जो नई दिल्ली के 10 जनपथ में वास करता है। इंदिरा गांधी के समय कहा जाता था कि कांगे्रस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री ' टायलेट' भी जाते थे तो उनकी अनुमति लेकर। बात मजाक की थी किन्तु कांग्रेस की नवसंस्कृति की परिचायक भी। कांग्रेसियों ने चूंकि उस संस्कृति को आत्मसात् कर लिया था, लोग-बाग अचंभित नहीं होते थे। महानायक अमिताभ बच्चन की मुंबई में एक सरकारी कार्यक्रम में उपस्थिति को लेकर मचा महासंग्राम आश्चर्यजनक है। सरकार में भागीदार राष्ट्रवादी कांग्रेस के लोकनिर्माण मंत्री जयदत्त क्षीरसागर ने बच्चन को निमंत्रित किया। बच्चन चले आए। बेचारे क्षीरसागर को क्या पता था कि कांग्रेस का दिल्ली नेतृत्व अमिताभ बच्चन को एक आतंकवादी से कम नहीं समझता? महाराष्ट्र में कांग्रेस नेतृत्व की सरकार के कार्यक्रम में अमिताभ की मौजूदगी पर उसने आंखें तरेरी। कांग्रेस में भूचाल आ गया। पूछा गया कि बच्चन को कार्यक्रम में आमंत्रित करने की हिमाकत किसने की? लोकनिर्माण मंत्री ने ताबड़-तोड़ बयान दे डाला कि '........निमंत्रण मैंने भेजा था ........ मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी।' बेचारे मंत्री यहीं पर फंस गए। वे भूल गए कि उनसे यह तो नहीं पूछा गया था कि मुख्यमंत्री को आमंत्रण की जानकारी थी या नहीं। चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत यहां बिल्कुल सटीक साबित हुई। वैसे उलझ तो स्वयं मुख्यमंत्री भी गए। कह डाला कि अमिताभ बच्चन के संबंध में उन्हें भी कोई पूर्व सूचना नहीं थी। जबकि मुंबई के अखबारों में अमिताभ बच्चन के चित्र के साथ कार्यक्रम संबंधित विज्ञापन छपे थे। दरअसल कांग्रेस में किसी ने कल्पना नहीं की थी कि अमिताभ की कार्यक्रम में उपस्थिति को लेकर ऐसा बवाल खड़ा होगा। ये वही अमिताभ बच्चन हैं जो कभी अपने मित्र, देश के प्रधानमंत्री (तत्कालीन) राजीव गांधी, पत्नी सोनिया गांधी व उनके पारिवारिक मित्रों के मनोरंजन के लिए गाना गाया करते थे, नाच किया करते थे। लेकिन आज अमिताभ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। इतनी कि गांधी परिवार उनका नाम भी नहीं सुनना चाहता। अब विचारणीय यह कि क्या एक व्यक्ति की पसंद-नापसंद के आधार पर कांग्रेस पार्टी संचालित होगी? अकादमिक दिलचस्पी के ऐसे सवाल पार्टी नेतृत्व को नहीं भाते। लोकतंत्र के आवरण तले व्यवहार के स्तर पर राजतंत्र अथवा परिवार तंत्र चलाने वाला व्यक्ति प्रथमत: स्वहित की सोचता है, देश अथवा पार्टी हित बाद में। इसके लिए वह साम-दाम-दंड-भेद किसी से परहेज नहीं करता। फिर पार्टी में व्याप्त भय पर आश्चर्य क्या? रीढ़विहीन अन्य नेता झुकने, रेंगने को तत्पर। अमिताभ बच्चन के मामले में यही तो हुआ है। कांग्रेस नेतृत्व की नापसंदगी के कारण अमिताभ को निशाने पर लिया गया, ' जो (व्यक्ति) हमारे विरोधियों के साथ खड़ा है, हमारी नाराजगी उससे है।' इस बयान के दो अर्थ निकलते हैं। एक तो अमिताभ बच्चन का भाजपा शासित गुजरात का ब्रांड एम्बेसेडर होना। दूसरा राष्ट्रवादी कांग्रेस के मंत्री द्वारा अमिताभ को आमंत्रित किया जाना।
भाजपा और राकांपा दोनों ने आमंत्रण को जायज ठहराते हुए बिलकुल सही रुख दर्शाया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस की ओर से साफ कर दिया कि अमिताभ कोई आतंकी नहीं हैं, उन्हें आगे भी बुलाया जाता रहेगा। शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस के इस रुख पर कांग्रेस नेतृत्व के जवाब की प्रतीक्षा रहेगी। भाजपा ने भी साफ कर दिया कि सरकारी कार्यक्रम किसी दल विशेष का निजी कार्यक्रम नहीं होता। ऐसे कार्यक्रमों में विपक्ष सहित अन्य क्षेत्रों के लोग भी मौजूद रहते हैं। अमिताभ बच्चन उपस्थित हुए तब कांग्रेस नेतृत्व बेचैन क्यों हो गया? कार्यक्रम में कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को प्रसन्न मुद्रा में अमिताभ बच्चन के साथ बातचीत करते सभी ने देखा। महाराष्ट्र कांग्रेस को अमिताभ की उपस्थिति पर कोई आपत्ति नहीं थी। जाहिर है कि कांग्रेस नेतृत्व की आपत्ति का कारण अमिताभ को लेकर 10 जनपथ की नितांत व्यक्तिगत कुंठा है। देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल, केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस में गुम लोकतंत्र का यह ज्वलंत उदाहरण है। और उदाहरण है कांग्रेसियों के अंदर मर चुके स्वाभिमान का। मैंने कांग्रेस दल को हमेशा देश का अभिभावक दल माना है। खेद है कि अब अभिभावक कुंठा की हर सीमा पार कर चुका है। 'पर' से परे 'स्व' के आंचल में अठखेलियां करने वाला कांग्रेस नेतृत्व अब एक संवेदना शून्य 'हिटलर' मात्र बन के रह गया है।
4 comments:
nice
विनोद जी, आपने बिलकुल सही और मौंजू सवाल उठाया है. राजवंशों की तर्ज पर चलती पार्टियाँ और उनमें नीचता की हद तक फैली चाटुकारिता ने देश और जनता को पीछे धकेल कर इन राजवंशों के मुखियाओं और युवराजों की पसंद - नापसंद और ओछी प्रतिद्वंदिता को प्राथमिकता का केंद्र बना दिया है. जितनी जल्दी कांग्रेस, सपा, द्रमुक जैसी लोकतंत्र विहीन पार्टियों से देश मुक्त होगा उतना ही भला होगा.
कभी कॉग्रेस के अध्यक्ष रहे एक व्यक्ति ने छूआ-छूत को समाप्त करने के लिए काम किया था और आज कॉग्रेस की अध्यक्षा नए प्रकार के छूआ-छूत को जन्म दे रही है.
अमिताभ अगर इसलिए अछूत है कि वे गुजरात के ब्रांड ऐंबैसडर बने हैं तो यह और भी दुर्भाग्य की बात है. गुजरात भारत का ही अंग है और वहाँ कॉग्रेस प्रमुख विपक्षी दल है. देश के एक राज्य से इस तरह की घृणा अक्षम्य राष्ट्रीय अपराध है.
यह पूरे गुजरात का अपमान है..
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