कभी-कभी जब धर्मगुरु अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं तब धर्म विशेष के अनुयायी भ्रम के भंवर में फंस जाते हैं। आस्था और तथ्य में टकराव शुरु हो जाती है। समाज विभाजन का खतरा भी पैदा हो जाता है। क्या धर्मगुरु को ऐसी परिणति का पूर्वाभास नहीं होता? या कहीं वे किन्हीं कारणों से जान-बूझकर अपने अनुयायियों को भ्रम में तो नहीं डालते। शायद सच यही है।
शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद की इस बात से भला किसे इत्तेफाक होगा कि औरतों का काम सिर्फ बच्चे पैदा करना है। विधायिका में महिलाओं के लिए प्रस्तावित आरक्षण का तीव्र विरोध करते हुए कल्बे जव्वाद ने टिप्पणी की है कि खुदा ने महिलाओं को अपने बच्चों का अच्छे से पालन-पोषण करने के लिए बनाया है न कि जनता के बीच भाषण देने के लिए। महिलाएं घुड़सवारी करने, बंदूक चलाने, शराब के कारखानों में काम करने या रैलियों में भाषण देने के लिए नहीं बनी हैं। इक्कसवीं सदी में इस धर्मगुरु के विचार को एक स्वर से सभी पागल का प्रलाप निरूपित कर खारिज कर रहे हैं तो बिल्कुल ठीक ही। शासन और प्रशासन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी से अनजान इस धर्मगुरु को इतिहास की भी जानकारी नहीं। आज से 774 वर्ष पहले सन 1236 में एक मुस्लिम महिला रजिया सुल्तान दिल्ली सल्तनत की सुल्तान बनीं थी। रजिया ने 1236 से 1240 तक दिल्ली सल्तनत पर प्रभावी शासन किया। इतिहास साक्षी है कि तुर्की मूल की रजिया को अन्य मुस्लिम राजकुमारियों की तरह सेना का नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में अभ्यास कराया गया ताकि जरूरत पडऩे पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। धर्मगुरु कल्बे जव्वाद को यह भी याद दिलाना चाहूंगा कि जिस मुस्लिम संप्रदाय का वह प्रतिनिधित्व करते हैं, रजिया सुल्तान मुस्लिम व तुर्की इतिहास की पहली महिला शासक थीं। वह दिल्ली की सबसे शक्तिशाली शासक के रूप में जानी जाती थीं। शासन संभालने के बाद रजिया ने रीति-रिवाजों का त्याग कर पुरुषों की तरह सैनिकों का कोट पहनना पसंद किया था। अपनी राजनीतिक समझदारी और नीतियों से सेना तथा आम जनता का वे बखूबी ध्यान रखतीं थीं। युद्ध में वे बगैर नकाब के शामिल हुईं थीं। कल्बे जव्वाद ने पूरी महिला कौम को बच्चा पैदा करने की मशीन निरूपित कर पूरे संसार की महिलाओं का अपमान किया है। कोई आश्चर्य नहीं कि उन्हें स्वयं मुस्लिम महिलाओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। खेद है कि जव्वाद को तो इस तथ्य की भी जानकारी नहीं कि मुस्लिम देश पाकिस्तान और बांग्लादेश की विधायिकाओं में निर्वाचित मुस्लिम महिला सदस्यों की संख्या भारत से दो गुनी-तीन गुनी अधिक है। जब इस्लामिक देश में महिलाएं राजनीति में इतनी बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहीं हैं तब भारत में इसका विरोध करने वाले धर्मगुरु को पागल का प्रलाप ही तो कहेंगे। निश्चय ही मौलाना अपना मानसिक संतुलन खो बैठे प्रतीत होते हैं। भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश सहित संसार के अनेक देशों में महिला राष्ट्राध्यक्ष रह चुकीं हैं और हैं भी। प्रशासनिक क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि सेना में भी पर्याप्त संख्या में महिलाएं महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सफलतापूर्वक संभाल रहीं हैं। बल्कि सच तो यह है कि शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं ने पुरुषों को काफी पीछे छोड़ दिया है। महिलाएं बंदूकें ही नहीं चला रहीं, हवाई जहाज भी उड़ा रही हैं। मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीइओ) के रूप में अनेक महिलाएं बड़े व्यवसायी घरानों को उल्लेखनीय सफलता के साथ संचालित कर रहीं हैं। विधायिका और कार्यपालिका के साथ-साथ न्यायपालिका में भी उनकी सफल मौजूदगी चिह्नित हुई है। लगता है कल्बे जव्वाद किसी कुंठा के शिकार हैं, विकृति के शिकार हैं। राजनीति में महिलाओं के प्रवेश का विरोध करते हुए उन्होंने जिस प्रकार शराब के कारखानों में महिलाओं के काम करने पर आपत्ति दर्ज की है, इस शंका की पुष्टि करते हैं। बेहतर हो धर्म गुरु कल्बे जव्वाद इतिहास के पन्नों को पलटते हुए महिलाओं से संबंधित वर्तमान के सुखद सच को स्वीकार कर लें।
2 comments:
phatwa jaari ho jaayega srimaan ji.
कभी-कभी जब धर्मगुरु अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं...
कभी-कभी नहीं उन का प्रलाप सदैव ही अनर्गल होता है।
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