सचमुच भारत अजूबों का देश है। यहाँ वह सब कुछ होता है-हो सकता है- जिन पर पहले तो नहीं बाद में आंसुओं की नदियां बहा दी जाती हैं । आंसू बहाना हमारे यहाँ एक कला है । मैं यहाँ फिल्मों की बात नही कर रहा। मैं उन 'देश प्रेमियों' की बातें कर रहा हूं जो देश की पूज्य महान आत्माओं की जयंतियों पर उन्हें याद कर दहाडें मार कर रोते है कि काश ऐसी महान आत्माएं आज हमारे बीच मौजूद होतीं। इन अवसरों पर आयोजित समारोहों में उन आत्माओं के गुणों की चर्चा कर अनुसरण करने की सलाह दे कर वक्ता गण तालियाँ बटोरते हैं । ऐसी महान आत्माओं की अनुपस्थिती के कारण सामाजिक मूल्य और चरित्र पतन पर अलंकारिक शब्दो में चिंता व्यक्त कर युवा पीढ़ी को यह बताया जाता है कि दुखद रूप से उनका मार्ग-दर्शन करने वाली ऐसी आत्माएं आज मौजूद नही है। हां , महान आत्माओं के चित्रों पर माल्यार्पण कर, धूप-बत्तियां जलाकर यह संदेश देने की कोशिश अवश्य की जाती है कि उनके प्रति हमारे दिलों में सम्मान मौजूद है। उनके पद चिन्हों पर चलने को पूरा देश उत्सुक है। इस बिंदु पर एक कड़वा सच। दो चार अपवाद छोड़ दें तों ये कथित देशप्रेमी मंच पर सभागृह से बाहर आते ही कुछ इस ढंग से संास लेते हैं जैसे बड़ी मुश्किल से किसी कैद से छूट कर बाहर निकले हों। शराब पी कर शराबबंदी भाषण देने और लिखने वालों की तरह इनका भी कोई चरित्र नही होता। फिर क्या आश्चर्य कि दक्षिण आफ्रिका में जोहांसबर्ग में अनेक भारतीयों की मौजूदगी में हमारे महान राष्ट्र के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ऐतिहासीक घर को फ्रांस की एक पर्यटक कंपनी ने खरीद लिया। प्रतिदिन नये-नये अरबपतियों, खरबपतियों को पैदा करने वाला यह भारत देश इस खबर पर शर्मिंदा होगा? आफ्रिका से चल कर यह खबर भारत पहुंची, लोगों ने पढा-सुना फिर भूल गये । क्यो नही भारत के किसी अमीरजादे ने भारत की इस धरोहर को खरीदने की कोशिश की?
सिर्फ पौने दो करोड़ में ही तो बिका महात्मा का घर। साफ है कि धन, भावना और राष्ट्र-सम्मान के बीच फर्क का वर्ग आकलन करने में अक्षम है। यह वर्ग करोड़ों रूपये में क्रिकेट खिलाडिय़ों को खरीदता है, कलाकारों की पेटिंग्स खरीदता है- ड्राईंगं रूम में सजाने को, खेल और मनोरजंन -कार्यक्रमों को प्रायोजित करता है । लेकिन वाह! राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीक महात्मा गांधी के घर को कोई भारतीय खरीदने को तैयार नही हुआ । भारतीय धनवानों की प्राथमिकताएं पहले की तरह इस बार भी कटघरे में पहुँच गयी । इस मामले का सर्वाधिक शर्मनाक पहलू तो यह है कि कुछ दिनों पूर्व भारत के कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कोल इंडिया के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के इस निवास को खरीदने की घोषण की थी । इस पवित्र कार्य के लिये जायसवाल ने कोयला कर्मियों से एक दिन का वेतन देने का भी आह्वान किया था । कोयला मंत्री का निर्णय और आह्वान कहाँ काफूर हो गये? भारत सरकार के इस प्रतिनिधि से देश की जनता यह जानना चाहती है? शर्म आनी चाहिये हमारे ऐसे सत्ताधारियों को । एक ओर तो पांच-सात सितारा होटलों में लाखों रूपये प्रतिदिन के किराये से 'सूट' लेकर भारत की 'अमीरी' को प्रदर्शित करते हैं, दूसरी ओर विदेश स्थित राष्ट्रसम्मान पर भारतीय आधिपत्य के लिये दो करोड़ रूपये भी खर्च नही कर सकते । तब क्या हम यह अर्थ निकाल लें कि भारत सरकार समेत भारत का धनवान वर्ग राष्ट्रीय सम्मान की भावना से अनभिज्ञ है? शर्म करे यह वर्ग । इनकी कृतघ्नता से विश्व समुदाय में भारत एक बार फिर शर्मसार हुआ।
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है तो
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