centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Saturday, October 24, 2009

कांग्रेस की जीत, विपक्ष का बिखराव!

क्या सचमुच जनता ने महाराष्ट्र को नरक में ढकेल दिया है? किसी प्रदेश की जनता स्वयं को नर्क की आग में क्यों झोंकेगी? शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के ऐसे आरोप को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस-राकांपा आघाड़ी के हाथों लगातार तीसरी बार हार से हताश बाल ठाकरे ऐसे बचकानेपन पर न उतरें। अपनी विफलता पर गंभीर चिंतन करें। कारण स्वत: सामने आ जाएगा। भीषण महंगाई, असहनीय बिजली कटौती, किसान आत्महत्या और निरंतर आतंकवादी हमलों के बावजूद अगर जनता ने कांग्रेस-राकांपा आघाड़ी को ही पसंद किया तब दोषी जनता नहीं बल्कि वह विपक्ष है जो स्वयं को बेहतर विकल्प के रूप में नहीं पेश कर पाया। समीक्षकों के इस आश्चर्य के साथ मैं भी हूं कि शासन के मोर्चे पर अपेक्षा के विपरीत खराब प्रदर्शन के बावजूद जनता ने ऐसा फैसला कैसे लिया? इस पर चिंतन हो, बहस हो। जनादेश आया है तो उसे मानना ही पड़ेगा। हां, जनादेश की जड़ में जाकर उन कारणों को ढूंढऩा पड़ेगा जिसने जनमत प्रभावित किया। अगर सिर्फ विपक्ष की निष्क्रियता और विफलता ने ताजा जनादेश को प्रभावित किया है तब लोकतंत्र का तकाजा है कि इसकी मजबूती के लिए विपक्ष मजबूत हो। ध्यान रहे, पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में कांग्रेस-राकांपा को 2 प्रतिशत कम मत प्राप्त हुए हैं। लेकिन राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की मौजूदगी ने कांग्रेस को लाभ पहुंचा दिया। संसदीय लोकतंत्र में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी होगा। जनहित में समाधानकारक उपाए ढूंढने होंगे। किसी को कोसने से समाधान नहीं मिलेंगे।
महाराष्ट्र के साथ हरियाणा के चुनाव परिणाम ने भी संसदीय लोकतंत्र और दलों में आंतरिक लोकतंत्र का मुद्दा भी खड़ा कर दिया है। चुनाव पूर्व अनुमान लगाए गए थे कि हरियाणा में कांग्रेस अपने 'सुशासनÓ के बल पर लगभग 80 सीटों पर कब्जा कर लेगी। उन्हें मिले सिर्फ 40 सीट। साधारण बहुमत से छह सीट कम। कांग्रेस नेतृत्व के लिए हरियाणा चुनाव परिणाम एक सबक है। सन् 2005 में कांग्रेस ने राज्य के कद्दावर नेता भजनलाल के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। कांग्रेस 90 में से 67 सीटों पर विजयी हुई। जीत का श्रेय भजनलाल को गया। लोकतंत्र का तकाजा था कि निर्वाचित विधायकों की राय को सम्मान देते हुए भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाया जाता लेकिन आंतरिक लोकतंत्र से कोसों दूर कांग्रेस नेतृत्व ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रूप में अपनी पसंद थोप दी। परिणाम सामने है। 67 की जगह मात्र 40 सीटों पर ही पार्टी विजय पा सकी। छोटा होने के बावजूद दिल्ली से सटे हरियाणा प्रदेश का अपना महत्व है। सच तो यह है कि अगर भारतीय जनता पार्टी और अमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल ने मिलकर चुनाव लड़ा होता तो शायद कांग्रेस विपक्ष में बैठने को मजबूर हो जाती। यह तो पता नहीं कि 2005 के निर्णय पर कांग्रेस नेतृत्व को पछतावा है या नहीं, बगैर किसी खतरे के यह टिप्पणी की जा सकती है कि अगर इस बार भी निर्वाचित विधायकों की इच्छा को सम्मान नहीं दिया गया तब प्रदेश में कांग्रेस के भविष्य पर सवालिया निशान लगे रहेंगे। कांग्रेस नेतृत्व इस तथ्य को विस्मृत न करे कि महाराष्ट्र और हरियाणा की जीत का कारण उसकी शक्ति या लोकप्रियता नहीं बल्कि विपक्ष का बिखराव रहा है।

No comments: