Thursday, October 29, 2009
...अन्यथा रेलमंत्री ममता इस्तीफा दे दें!
अगर यह सच है, तो एक अत्यंत ही विस्फोटक कल का सूचक है। विश्वास तो नहीं होता किंतु जब धुआं उठ रहा है तो आग की मौजूदगी से इंकार तो नहीं किया जा सकता। क्या सचमुच पिछले मंगलवार को झारग्राम के निकट अगवा की गई राजधानी एक्सप्रेस की घटना में स्वयं रेलमंत्री ममता बनर्जी का हाथ था? मीडिया के एक वर्ग ने इशारे में परंतु माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सीधे ऐसी संभावना व्यक्त की है। अकल्पनीय लगने वाले इस आरोप पर जनमत सर्वेक्षण करा लें, बहुमत की राय दिलचस्प होगी-''भारतीय राजनीति में सब कुछ संभव है!'' सचमुच, भारतीय राजनीति और इससे जुड़े राजनीतिक (जो राजनीतिज्ञ तो कतई नहीं हैं)अपना हित साधने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। सत्ता में बने रहने के लिए एक निर्वाचित प्रधानमंत्री ने देश पर आपातकाल थोप तानाशाह बनने की कोशिश की तो जार्ज फर्नांडीज जैसा समाजवादी वडोदरा डायनामाइट कांड का अभियुक्त बने। विश्वनाथप्रताप सिंह जिस बोफोर्स कांड के मुद्दे को भुनाकर प्रधानमंत्री बने थे, सत्ता में आते ही उस मुद्दे को भूल गए। उन्होंने जनता के साथ विश्वासघात किया। एक अन्य समाजवादी प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने केंद्र में सत्ता परिवर्तन का कारण बने बोफोर्स कांड को यह कहकर महत्वहीन बना दिया था कि ''इसकी जांच तो कोई दरोगा भी कर सकता है।'' जयप्रकाश आंदोलन, आपातकाल और केंद्र में जनता पार्टी की सरकार की स्थापना के बाद पानी पी-पीकर इंदिरा गांधी को कोसने वाले चरणसिंह और उनके शिष्य राजनारायण इंदिरा गांधी की गोद में बेशर्मों की तरह बैठ गए। और तो और, जिस महात्मा गांधी के कदमों का अनुसरण कर जवाहरलाल नेहरू एंड कंपनी ने आजादी के बाद देश की सत्ता की बागडोर संभाली, उन्होंने गांधी के सुझाव को रद्दी की टोकरी में फेंकने में विलंब नहीं किया। आजादी प्राप्ति के बाद क्या गांधी ने यह सुझाव नहीं दिया था कि ''कांग्रेस पार्टी की भूमिका अब खत्म हो गई है, इसे भंग कर दें!'' इन सब बातों को दोहराने का लब्बोलुआब यह कि चाहे छोटा हो या बड़ा, राजनीतिक कुछ भी कर सकता है। 'फायर ब्रांड' के रूप में विख्यात तृण मूल कांग्रेस नेता व रेल मंत्री ममता बनर्जी फिर अपवाद कैसे हो सकती हैं? जब राजधानी एक्सप्रेस को अगवा किया गया तब ममता बनर्जी ने तत्काल घटना के पीछे सीपीएम कार्यकर्ताओं का हाथ होने की बात कह डाली थी। वे यह कहने से भी नहीं चूकीं कि उनकी छवि खराब करने के लिए माक्र्सवादी कार्यकर्ताओं ने घटना को अंजाम दिया है। लेकिन, जैसे ही इस बात की पुष्टि हुई कि राजधानी एक्सप्रेस को अगवा करने वाला संगठन और कोई नहीं उनकी सहयोगी पुलिस अत्याचार के खिलाफ जन कमेटी(पीसीपीए) है, उन्होंने पलटी मार दी। तत्काल ममता बनर्जी ने घोषणा कर दी कि वे अगवाकर्ताओं से बातचीत को तैयार हैं। यही नहीं, उन्होंने बातचीत के लिए स्थल के चुनाव की छूट भी अगवाकर्ताओं को दे दी। अगवाकर्ताओं ने अपने जिस नेता छत्रधर महतो की रिहाई की मांग की, उसके साथ ममता बनर्जी अनेक मंचों पर एक साथ देखी जा चुकी हैं। लालगढ़ में जब सुरक्षा बलों ने संयुक्त अभियान शुरू किया था, तब ममता बनर्जी ने अपने सहयोगी केंद्रीय राज्य मंत्री शिशिर अधिकारी को इस निर्देश के साथ लालगढ़ भेजा था कि सहायता सामग्री पीसीपीए को सौंप दी जाए। इन सब बातों को चुनौती नहीं दी जा सकती। छत्रधर महतो की रिहाई की मांग तृण मूल कांग्रेस द्वारा पहले की जा चुकी है। महतो तृण मूल कांग्रेस का पूर्व सदस्य है। आरोप यह भी लगे हैं कि तृण मूल कांग्रेस के मेत्री केंद्र पर दबाव डाल रहे हैं कि माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए केंद्रीय सुरक्षा बल उपलब्ध न कराया जाए। ममता बनर्जी को यह बताना होगा कि लालगढ़ में सक्रिय विध्वंसकारी ताकतें राजधानी एक्सप्रेस को अगवा किए जाने की घटना में सक्रिय थी या नहीं? यह एक अत्यंत ही गंभीर आरोप है। चूंकि आरोप लगे हैं यह ममता बनर्जी की जिम्मेदारी है कि वे स्वयं को निर्दोष साबित करें। अन्यथा, रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दें।
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3 comments:
कुल मिलाकर जनता ही परेशान होती है ।
राजनीति में सब जायज़ है
अन्धेर नगरी चौपट राज,देश और जनता भगवान भरोसे।
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