ऐसा क्यों है कि आज के पेशेवर राजनीतिक देश की सोच-समझ-ज्ञान को बेशर्मी से जब चाहा तब चुनौती दे डालते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन लोगों ने देश की जनता को स्थाई रूप से मूर्ख और अल्पज्ञानी मान लिया है? देश की याददाश्त को भी ये ठेंगे पर रखने के आदी दिखने लगे हैं। इस वर्ग में पक्ष-विपक्ष दोनों के नेता शामिल हैं। यह सचमुच देश के लिए विचारणीय है। लगभग सवा सौ आबादी वाला भारत देश आखिर कब तक मुट्ठी भर ऐसे अल्पज्ञानी नेताओं के तमाचे सहता रहेगा। इन्हें जवाब दिया जाना चाहिए। ऐसा करारा जवाब कि भविष्य में ये देश की समझ को कम आंकने की गलती न दोहराएं।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 8 वर्ष पूर्व के गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसएईटी) के समझ उपस्थित क्या हुए कि नेताओं ने नैतिकता का झंडा ले ज्ञान बखारना शुरु कर दिया। कांग्रेस की ओर चुनौती दी गई कि यदि बीजेपी में जरा भी नौतिकता होती तो वह ऐसे उच्च पद को बदनाम किए जाने से पहले मोदी से पद से हटने को कहती। जांच टीम के समक्ष मोदी के पेश होने से संवैधनिक मुख्यमंत्री का पद बदनाम हुआ है। यह भी कहा गया कि जनता की नजर में मोदी दोषी हैं। अब कोई कांग्रेस से यह पूछे कि इंदिरा गांधी तो प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अदालत में हाजिर हुईं और मुकदमा हार भी चुकीं थीं। इसके बावजूद उन्होंने पद से इस्तीफा देना तो दूर, सत्ता में बने रहने के लिए देश को आपातकाल के हवाले कर दिया था। आम जनता से उनके मौलिक अधिकार छीन उसे न्याय से भी दूर कर दिया था। ऐसे में तुलनात्मक दृष्टि से नरेंद्र मोदी का मामला तो अत्यंत ही क्षीण है। मोदी के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं है। उन्हें तो एक पीडि़त की शिकायत पर जांच दल ने पूछताछ के लिए बुलाया था। फिर कांग्रेसी किस आधार पर मोदी से इस्तीफे की मांग करने लगे। हास्यास्पद है उनकी मांग। रही बात मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में सांप्रदायिक दंगों की तो मैं चाहूंगा कि आरोप लगाने वाले इतिहास के पन्नों को पलटकर देख लें। स्पष्ट कर दूं कि मैं किसी भी प्रकार के दंगों का विरोधी हूं। खून-खराबे का समर्थन कोई भी समझदार नहीं कर सकता। जाति व संप्रदाय के नाम पर एक-दूसरे का गला काटने वाले सभ्य समाज के मानव हो ही नहीं सकते। वे तो दरिंदगी का प्रदर्शन करने वाले दरिंदे होते हैं। दंगों का शर्मनाक इतिहास पुराना है। अगर, दंगों के वक्त के शासन अथवा शासक को दोषी ठहराया जाए तो अनेक कड़वे सच उभर कर सामने आएंगे। हालांकि ऐसी तुलना को मैं गलत मानता हूं। किंतु जब अल्पज्ञानी या अधकचरे ज्ञान रखने वाले नेता देश को भ्रमित करने की कोशिश करते दिखते हैं, तब उन कड़वे सच से परदा तो उठाना ही होगा। आजादी के तत्काल बाद के दंगों को याद करें। लगभग 10 लाख हिंदु-मुसलमान बेरहमी से मौत के घाट उतार दिए गए थे। तब देश पर किसका शासन था? बेहतर हो जवाब कांग्रेस ही दे दे। प्रसंगवश 1984 के सिख विरोधी दंगों को भी उद्धृत करना चाहूंगा। तब लगभग 4 हजार सिख मार डाले गए थे। कौन थे मारने वाले? इसका जवाब भी कांग्रेस ही दे। मोदी पर आरोप लगाने वाले कह रहे हैं कि गुजरात दंगों की परिणति पर नरेंद्र मोदी ने प्रसन्नता जाहिर की थी। ठीक उसी प्रकार जैसे अब कहा जा रहा है कि 1992 में अयोध्या बाबरी मस्जिद ढ़ांचे को गिराए जाने पर लालकृष्ण आडवाणी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि 'बहुत बढिय़ा'। अगर मोदी और आडवाणी के उपर लगाए गए येआरोप सही हैं तब इनकी निंदा होनीचाहिए। लेकिन इसके साथ ही 1947 और 1984 के दंगों के समय तब के प्रधानमंत्रियों की टिप्पणियों की निंदा भी होनी चाहिए। 1947 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने टिप्पणी की थी कि 'हम सिर कटाकर,सिर दर्द से छुटकारा पा रहे हैं।' क्या इसकी व्याख्या की जरूरत है? अब बात 1984 की। तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सिखों के संहार पर कोई अफसोस जाहिर करने की बजाए अपरोक्ष में संहार का समर्थन किया था, यह टिप्पणी कर कि '...जब कोई बड़ा वृक्ष गिरता है,तब धरती हिलती ही है।' अर्थात इंदिरा गांधी की एक सिख द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद सिख संहार पर आश्चर्य क्या? गुजरात दंगों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने वाले सुप्रीम कोर्ट से यह पूछा जाना चाहिए कि तब सिख संहार की जांच के लिए उसने विशेष दल का गठन क्यों नहीं किया? प्रधानमंत्री राजीव गांधी से तब पूछ ताछ क्यों नहीं की गई। संहार के 26 साल बाद भी संहार के असली दोषी बेखौफ घूम रहे हैं। बल्कि सच तो यह है कि जनता की नजरों में संहार के दषियों को सत्ता की कुर्सियां सौंपी गईं। आज मोदी से इस्तीफा मांगने वाले अपने गिरेबां में झांकें। जनता की यादादाश्त को चुनौती देने की हिमाकत न करें।
3 comments:
आपने कांग्रेस को आईना दिखाया है. और निरपेक्ष पत्रकारिता की है.. बधाई.
निशब्द... बस ये ही कह सकता हूँ आपके इस लेख को पढकर. ये दोगलापन ही देश को खोखला कर रहा है. यहाँ जवाबदेही कोई नहीं समझता है और लांछन लगाकर खुद की गलती ढकने में कांग्रेस सबसे अव्वल है.
इन बेशर्मों के लिए किस शब्द का इस्तेमाल करें, शायद हर शब्द छोटा है.
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