Tuesday, October 20, 2009
फिर कटघरे में कानून का शासन!
संदेह शत-प्रतिशत स्वाभाविक है। 23 करोड़ रुपए के पीएफ घोटाले का मुख्य आरोपी आशुतोष अस्थाना की जेल में मौत कैसे हुई? सब कुछ ठीक-ठाक था, फिर अचानक वह मुर्दा कैसे हो गया? जेल अधिकारी कहते हैं, शायद उसने कोई जहरीली चीज खा ली होगी। कैसे संभव है यह? जेल में कथित जहरीली चीज पहुंची तो कैसे और अस्थाना ने उसे कैसे खा लिया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे वह कथित जहरीली चीज खिला दी गई? जेल, पुलिस प्रशासन और इन सबसे ऊपर न्यायपालिका को यह घटना एक सीधी चुनौती है। कानून के शासन को सुनिश्चित करने की जिम्मेदार न्यायपालिका इस मामले में स्वयं कटघरे में है। इस बड़े पीएफ घोटाले की जांच कर रही सीबीआई की एक रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाईकोर्ट के छह जज और निचली अदालतों के बारह जजों के घोटाले में शामिल होने की आशंका व्यक्त की गई थी। आरोप आशुतोष अस्थाना ने लगाए थे। तब इसी स्तंभ में टिप्पणी की गई थी कि न्यायपालिका से जुड़े लगभग तीन दर्जन लोगों का नाम घोटाले में आना ही पूरी न्यायपालिका के लिए शर्मनाक है। प्रशंसा करनी होगी सर्वोच्च न्यायालय की जिसने इस संवेदनशील मामले की जांच सीबीआई को सौंपी। लेकिन, वैसे खतरनाक तत्व समाज में मौजूद हैं जो सर्वोच्च न्यायालय तक की पहल को पैरों तले रौंद रहे हैं। अस्थाना की जेल में मौत कहीं इन्हीं तत्वों की करतूत तो नहीं? आशुतोष ने भारतीय न्यायपालिका के इस सबसे बड़े शर्मनाक घोटाले का पर्दाफाश करते हुए साफ-साफ कहा था कि उसने मात्र चार-पांच लाख रुपए ही अपने पास रखे, शेष करोड़ों रुपए न्याय की मूर्तियों ने हजम कर लिए थे। तब देश स्तब्ध रह गया था जब उसने देखा कि चार-पांच लाख रुपए हड़पने वाले अस्थाना को तो गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया किन्तु न्यायपालिका की पवित्रता को रौंदने वालों पर हाथ नहीं डाला गया। और अब स्वयं अस्थाना को मौत मिल गई। पुलिस प्रशासन को इस बात का जवाब देना होगा कि जब अस्थाना के परिवारवालों ने सूचना दी थी कि जेल में अस्थाना की जान को खतरा है तब उसे अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया क्यों नहीं कराई गई? क्या पुलिस किसी दबाव में थी? यह संभव है। निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश घपले में शामिल बताए जा रहे थे। उनके प्रभाव की कल्पना की जा सकती है। क्या इस मामले में न्यायपालिका 'सीजर की पत्नी' की सदृश परीक्षा के लिए तैयार है? हालांकि, देश के कानून मंत्री ने पीएफ घोटाले की जांच जारी रखने की घोषणा की है किन्तु इससे ही शक के बादल नहीं छंटेंगे। अस्थाना की मौत की पूरी जांच हो। यह दोहराना ही होगा कि भूतकाल में ऐसी ही संदिग्ध मौतों पर से पर्दे नहीं उठ पाए हैं। अगर अस्थाना की मौत पर से भी रहस्य का पर्दा नहीं उठा तो, क्षमा करेंगे, आम लोगों का कानून के शासन पर से विश्वास उठ जाएगा। क्या हमारी न्यायपालिका यही चाहती है?
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1 comment:
जांच तो होना ही चाहिये.
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